Atmadharma magazine - Ank 221
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : २२१
पुद्गलपरिणामने जाणे छे खरो पण ते पुद्गलपरिणाममां व्यापतो नथी. व्याप्य–व्यापकपणुं सजातमां
होय, विजातमां न होय; भगवान ज्ञातानुं व्यापक ज्ञानमय होय, अज्ञानमय न होय. कर्तानुं जे कार्य छे
ते ज तेनुं व्याप्य छे, ज्ञातानुं जे कार्य छे ते ज तेनुं व्याप्य छे. ज्ञातानुं कार्य शुं छे? ज्ञानमय
वीतरागीपरिणाम ते ज ज्ञातानुं कार्य छे; जे रागादि छे ते तो विरुद्धभाव छे, ते ज्ञातानुं कार्य नथी.
विकल्पना कर्तापणे ज्ञानीने देखे तो ते खरेखर ज्ञानीने ओळखतो ज नथी. भगवान अमृतचंद्राचार्यदेव
के भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव आ शास्त्र रचे छे तेमां शब्दोनी क्रियाना कर्तापणे के विकल्पना कर्तापणे
तेमनो आत्मा नथी परिणमतो, तेमनो आत्मा भिन्न ज्ञानभावपणे ज परिणमे छे, निर्मळ
ज्ञाताभावमां तन्मयपणे ज तेमनो आत्मा परिणमे छे.–आवा कार्यवडे ओळखे तो ज ज्ञानीधर्मात्मानी
ओळखाण थाय अज्ञानीने एम ज लागे छे के ज्ञानी राग करे छे; पण भेदज्ञानी तो एम जाणे छे के
ज्ञानीनो आत्मा रागथी भिन्न ज्ञानभावने ज करे छे. ज्ञानथी भिन्न कर्म–नोकर्मने के रागने अंशमात्र
पण ते करतो नथी. ज्ञान अने राग एक साथे देखाय छे त्यां अज्ञानीने तेमनामां कर्ताकर्मपणानो भ्रम
थई जाय छे, पण ज्ञान तो ज्ञाता छे ने राग तो ज्ञेयपणे ज छे–ते कांई ज्ञानना कार्यपणे नथी,–एवी
भिन्नताने अज्ञानी जाणतो नथी, तेथी राग वखते ज्ञानी खरेखर शुं करे छे तेने पण ते जाणतो नथी.
अहा, राग वखते ज्ञानीनुं ज्ञान रागथी अधिकपणे परिणमी रह्युं छे, एने ओळखे तो भेदज्ञान थई
जाय. ज्ञानी रागने जाणती वखते पण ते रागने पोताना ज्ञानपरिणामथी बहार ने बहार ज राखे छे,
ज्ञानने तेनाथी जुदुं ने जुदुं राखे छे. ज्ञाननी एकता तो अंदरना चैतन्यस्वभाव साथे ज करी छे, ते
स्वभाव साथेनी एकतानुं परिणाम ज्ञानीने कदी छूटतुं नथी, ने रागादिभावो साथे एकपणुं कदी थतुं
नथी. अहो, आ भेदज्ञाननो महिमा छे; भेदज्ञानना बळे आ ज्ञानीआत्मा ज्ञानप्रकाशथी झळहळतो
अने रागना अकर्तापणे शोभे छे. तेनो विस्तार ज्ञानमां ज फेलाय छे, ए सिवाय बीजे क््यांय तेनो
विस्तार फेलातो नथी. जगतथी छूटापणुं जाणीने ज्ञान ढळ्‌युं छे अंतरमां; ज्ञानस्वभावमां वळेलो ते
जीव पर्यायमां पण रागना अकर्तापणे शोभे छे, ज्ञानप्रकाश एवो खील्यो छे के अज्ञानअंधकारने भेदी
नांख्यो छे, तेमां हवे विकार साथे कर्ताकर्मनी प्रवृत्तिनो संभव ज नथी.
आत्मस्वभावमां तन्मय थयेला एवा सम्यक्त्वादि परिणाम ते आत्मपरिणाम छे, ते ज्ञानीनुं कार्य छे
ने ज्ञानी स्वतंत्रपणे तेनो कर्ता छे.
आत्मस्वभावमां तन्मय नहि एवा जे विकारी परिणाम ते आत्मपरिणाम नथी, ते ज्ञानीनुं कार्य
नथी, ज्ञानी तेना कर्ता नथी. विकारी परिणाम ते आत्मपरिणाम नथी माटे तेने पुद्गलपरिणाम कही दीधा.
आत्मा साथे जेनी एकता न होय तेने आत्माना परिणाम केम कहेवाय? धर्मी पोताना धर्मपरिणामनो ज
कर्ता छे; रागादि तो अधर्म परिणाम छे, तेनो कर्ता धर्मी केम होय? न ज होय.
ज्ञानने अने रागने अतत्पणुं छे, जे ज्ञान छे ते राग नथी, जे राग छे ते ज्ञान नथी, तो ज्ञानीने
रागनुं कर्तापणुं केम होय? ने राग ज्ञानीनुं कार्य केम होय? न ज होय. आत्मा छे ते ज्ञान छे, ने ज्ञान छे ते
आत्मा छे–ए रीते आत्माने पोताना ज्ञानपरिणाम साथे तत्पणुं छे तेथी ज्ञानी पोताना ज्ञानपरिणामनो ज
कर्ता छे, ने ज्ञानपरिणाम ज तेनुं कर्म छे. आ रीते ज्ञानपरिणाम साथे ज कर्ताकर्मपणानुं होवुं–ते ज्ञानीनुं
चिह्न छे, ने तेना वडे ज्ञानी ओळखाय छे. अने जे जीव ए रीते ज्ञानीने ओळखे ते पोते पण ज्ञान अने
रागनुं भेदज्ञान करीने ज्ञानी थाय छे.
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