कर्तापणुं मानी अभिमान करे पण परनुं ते कांई करी शकतो नथी. केमके जड–
पुद्गल परमाणु कायमी तत्त्व जगतमां छे. ते तेनापणे टकीने, तेनी ताकातथी
नवी–नवी अवस्थापणे बदल्या करे छे.
ताकात छे. तेओ स्वयं पलटीने शरीरादिरूपे थाय छे. तेनुं कोई कार्य आत्मा
करी शकतो नथी अने तेओ एक समय पण तेना कार्य (परिणमन) माटे
कोईनी राह जोतां नथी. आम स्व–परनी त्रिकाळ स्वतंत्रता कबूले तो जे ज्ञान
परमां कर्ता–भोक्तापणुं, स्वामीपणुं, परथी सुखी–दुःखी थवापणुं मानी
अज्ञानवडे रागमां रोकातुं हतुं ते ज ज्ञान परथी भिन्न अनंतगुणनो जे पिंड
छे ने जेमां बेहद प्रभुता पडी छे तेवा आत्मामां जोडाण करे तो अतीन्द्रिय
आनंदनो अनुभव थाय.
बीजा मने मारी–जीवाडी शके छे, एम माने छे. ते जीव चैतन्यतत्त्वने
पोतापणे नहि मानतो शरीरने पोतापणे माने छे; अने दया, दान, पूजा, सेवा
आदि रागनी क्रियाने धर्म माने छे; अने ए ज संसारनुं मूळियुं छे.
दयानो भाव अथवा दानादिनो भाव थवो ते पुण्यतत्त्व छे, हिंसा, जूठ, चोरी,
कुशीलादि भ
तेम न मानतां तेने धर्मनुं, संवर–निर्जरा–मोक्षनुं कारण माने तेने नवतत्त्वनी
खबर नथी. शुभरागथी कदी पण संवर न थाय.
माटे प्रथम पुण्य करो, शुभराग करतां करतां प्रथम पाप टळशे ने पछी पुण्य–
पाप टळी जशे तो ते सत्यनो घात करनार द्रष्टांतभास छे. संसारनी
रुचिवाळाने रागनी वात ज गोठे छे.
अशुद्धिनी हानि थाय छे; अने