Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८८ आत्मधर्म : ११ :

कर्तापणुं मानी अभिमान करे पण परनुं ते कांई करी शकतो नथी. केमके जड–
पुद्गल परमाणु कायमी तत्त्व जगतमां छे. ते तेनापणे टकीने, तेनी ताकातथी
नवी–नवी अवस्थापणे बदल्या करे छे.
१४. जेना बे टुकडा शस्त्रथी पण न थाय, ज्ञानमां पण जेना बे भाग
न कल्पी शकाय तेने परमाणु कहे छे, ते एकेक परमाणुमां स्वतंत्र अनंती
ताकात छे. तेओ स्वयं पलटीने शरीरादिरूपे थाय छे. तेनुं कोई कार्य आत्मा
करी शकतो नथी अने तेओ एक समय पण तेना कार्य (परिणमन) माटे
कोईनी राह जोतां नथी. आम स्व–परनी त्रिकाळ स्वतंत्रता कबूले तो जे ज्ञान
परमां कर्ता–भोक्तापणुं, स्वामीपणुं, परथी सुखी–दुःखी थवापणुं मानी
अज्ञानवडे रागमां रोकातुं हतुं ते ज ज्ञान परथी भिन्न अनंतगुणनो जे पिंड
छे ने जेमां बेहद प्रभुता पडी छे तेवा आत्मामां जोडाण करे तो अतीन्द्रिय
आनंदनो अनुभव थाय.
स्व–परनुं भेदज्ञान जेने नथी ते जीव हुं बीजाने सुखी–दुःखी करी शकुं
छुं, बीजा मने सुखी–दुःखी करी शके छे हुं बीजाने मारी–जीवाडी शकुं छुं ने
बीजा मने मारी–जीवाडी शके छे, एम माने छे. ते जीव चैतन्यतत्त्वने
पोतापणे नहि मानतो शरीरने पोतापणे माने छे; अने दया, दान, पूजा, सेवा
आदि रागनी क्रियाने धर्म माने छे; अने ए ज संसारनुं मूळियुं छे.
१प. रागनी रुचिवाळो जीव पुण्य–पापने करवा जेवा माने छे तेथी
तेने नवतत्त्वमांथी एकपण तत्त्वनी साची समजण नथी. पर प्राणी प्रत्ये
दयानो भाव अथवा दानादिनो भाव थवो ते पुण्यतत्त्व छे, हिंसा, जूठ, चोरी,
कुशीलादि भ
व ते पापतत्त्व छे, बंने मलिनभाव भावआस्रव छे, तेनाथी
नवां कर्म आवे ते द्रव्य (जड) आस्रव छे. पुण्य आस्रव पण बंधनुं कारण छे.
तेम न मानतां तेने धर्मनुं, संवर–निर्जरा–मोक्षनुं कारण माने तेने नवतत्त्वनी
खबर नथी. शुभरागथी कदी पण संवर न थाय.
१६. अज्ञानी कुयुक्तिथी द्रष्टांत आपे छे के–कांटावडे कांटो नीकळे छे,
अथवा एरंडियुं पीए तो अंदरनो मळ नीकळे ने एरंडियुं पण नीकळी जाय.
माटे प्रथम पुण्य करो, शुभराग करतां करतां प्रथम पाप टळशे ने पछी पुण्य–
पाप टळी जशे तो ते सत्यनो घात करनार द्रष्टांतभास छे. संसारनी
रुचिवाळाने रागनी वात ज गोठे छे.
सम्यग्दर्शन थया पहेलां विकल्पवडे नव तत्त्वनुं स्वरूप यथार्थपणे
जाणवुं जोईए. निर्जरामां शुद्धात्माना आलंबनवडे अंशे शुद्धिनी वृद्धि अने
अशुद्धिनी हानि थाय छे; अने