मोक्षमां आत्माना परिपूर्ण आलंबनवडे संपूर्ण शुद्धता प्रगटे छे. एम
विकल्पथी नक्की करी, जेम छे तेम नव तत्त्वोने जाणे तो पण ते सम्यग्दर्शन
नथी.
१७. जीव पूर्णज्ञानघन छे. तेने शुद्धनयथी जाण्ये सम्यग्दर्शन छे. ज्यां
सुधी आ जीव शुद्धनयवडे निर्विकल्प अनुभवथी आत्माने न जाणे त्यां सुधी
रागमां, भेदमां अने परमां ममता कर्या करे छे. जीवनी पर्याय जडथी जुदी छे–
स्वतंत्र छे अने जड (अजीव) नी पर्याय जीवथी त्रणेकाळे जुदी छे स्वतंत्र छे–
अजीवथी जीवनी पर्याय नथी. अने जीवथी अजीवनी पर्याय नथी.
शुभाशुभराग जीवनी पर्यायनो अंश छे, राग रहित अंशे शुद्धता ते संवर–
निर्जरा छे अने पूर्ण शुद्धता ते मोक्ष छे एम बराबर स्वीकारे छतां ए राग
छे.
१८. ज्यारे भेदने गौण करी, भूतार्थद्रष्टिथी एक ध्रुवस्वभावने जाणे
त्यारे नवतत्त्वना ज्ञानने व्यवहारनय–व्यवहारज्ञान कहेवामां आवे छे.
नवतत्त्वनी भेदवाळी श्रद्धा ते शुभराग छे. तेनो भूतार्थद्रष्टिमां अभाव छे.
शुद्धनयनो विषय एकरूप शुद्धात्मा छे तेने कोईपण विकल्पनी अपेक्षा नथी.
१९. राजा गादीए बेठा पछी हुं राजा छुं एम शुं ते गोखतो हशे? तेने
तो प्रत्यक्ष हुं राजा ज छुं एवो अनुभव छे, धनवान थयो तेने हुं निर्धन नथी
एम गोखवुं पडतुं नथी. तेम त्रिकाळी ज्ञायक उपर जेनी द्रष्टि एकाग्र थई ते
जीव विकल्पनो कर्ता थतो नथी. ज्ञानीने नवतत्त्वना विकल्प आवे खरा पण
ते व्यवहारे ज्ञाननुं ज्ञेय छे. व्यवहारनो अभेद स्वभावमां प्रवेश नथी.
२०. परनुं कोई कार्य आ जीवने आधीन नथी. शरीरनी क्रियामां
आत्मानो व्यवहार नथी. व्यवहारथी पण शरीरनी अवस्था जीव करी शकतो
नथी, जो करी शकतो होय तो तेमां अपवाद न होय. कोईने लकवा थाय ते
वखते शरीरनी क्रिया करवानी घणी ईच्छा होय छतां पण शरीरनी क्रिया न
थाय. तेनो अर्थ ए थयो के जीव पोतामां ज्ञान करी शके, शुद्धता अथवा
अशुद्धता पोतानी वर्तमान पर्यायमां करी शके–पण परनुं तो कांई ज न करी
शके. ए सिद्धांतमां अपवाद नथी छतां जेने एवो भ्रम छे के परनुं हुं करी शकुं
छुं तेणे जीव–अजीवने स्वतंत्र मान्या नथी. बेने जुदा न मानतां एक मानी
मफतनो कर्ताबुद्धि करे छे ते दुःखी थाय छे.
२१. रागादि अशुद्धभाव जीवना अस्तित्वमां पर्यायमां थाय छे–ते करे
तो थाय अने न करे तो न थाय एम प्रथम वर्तमान विकारीभावनी
स्वतंत्रता कबूल करी ते क्षणिक–विकारथी त्रिकाळी स्वभावने जुदो अनुभववो
तेनुं नाम सम्यग्दर्शन छे. नवतत्वना भेदथी भिन्न आत्माने शुद्धनयवडे
एकरूप जाणवो ते सत्यार्थ छे.
२२. राग ते हिंसा छे, रागरहित त्रिकाळी स्वभावने श्रद्धामां लेवो ते
अहिंसा छे अने