: १४ : आत्मधर्म वैशाख : २४८८
२८. अज्ञानी बहारनी क्रिया देखी तेनी नकल करवा जाय तेथी
वीतराग धर्म जराय न थाय. श्रीमंत शेठाणी डांगर खांडती हती, चोखा
वजनमां भारे तेथी ते नीचे ऊतरता जाय अने उपर फोतरां देखाय. गरीब
बाई उपरनी चीज देखीने फोतरां लावीने खांडवा लागी, पण तेने
फोतरांमांथी चोखा न मळे; तेम आत्मा चैतन्य महिमावंत किंमती चीज छे,
अंतर निर्विकल्प द्रष्टिवडे तेने पकडी तेनो अनुभव करे तो धर्म थाय. अज्ञानी
बाह्य–पुण्यनी क्रियामां धर्म माने पण ते साचो धर्म नथी.
२९. ज्ञानीने वीतरागी द्रष्टिवडे चैतन्यस्वभावनुं आलंबन तो
निरंतर छे; पण चारित्रमां विशेषपणे ठरी शकतो नथी. तेथी तेने दया, दान,
पूजा, भक्ति, व्रतादिनो शुभराग आवे छे पण तेने ते धर्म मानतो नथी.
३०. नवतत्त्वना भेद तथा गुण–गुणीभेदरूप व्यवहारनो पक्ष नवो
नथी. अनादिथी छे. ज्ञानीए भेदनी द्रष्टि व्यवहारनी रुचि छोडी एकरूप
अखंडानंदनी द्रष्टि करे छे, ते अंतद्रष्टिना अध्यात्म–विषयने न जोतां अज्ञानी
बाह्यद्रष्टिथी रागनी क्रिया जुए छे ने तेमां धर्म मानी बाह्यनी वातमां वळगी
पडे छे. नवतत्त्वना भेदनी द्रष्टि छोडी (व्यवहारनो आश्रय–रुचि छोडी)
अखंड चैतन्यमां द्रष्टि अने एकाग्रता करवाथी चारित्र प्रगट थाय छे.
३१. वांदराने नकल करवानी टेव होय छे. जंगलमां ठंडीनी रात्रे
केटलाक लोको घास एकठुं करी दीवासळीथी सळगावी तापता हता–वांदराए ते
जोयुं अने आगिया नामे जीवडांने पकडीने घास सळगाववा घणी महेनत करी
पण तेमां अग्नि नथी तो क््यांथी प्रगट थाय? तेम अज्ञानी शरीरनी अथवा
रागनी क्रियाने पकडी कष्ट करे छे तो करो–शुभभाव होय तो पुण्य बंधाय पण
अपूर्व यथार्थ शान्तिरूप धर्म तेनाथी न थाय.
३२. ज्ञानीने नीचेनी भूमिकामां नवतत्त्वना विकल्प साचा देव, शास्त्र,
गुरुनी ओळख अने ते संबंधी राग होय छे पण तेमां अथवा तेना आश्रयथी
तेओ धर्म मानता नथी. राग होवा छतां तेनाथी ज्ञानने छूटुं पाडी
अरागीपणुं स्वभावनी द्रष्टि करतां नवे तत्त्वना भेदनी द्रष्टि टळी जाय छे.
भेदनो आश्रय छूटी जाय छे. श्रद्धाना विषयमां–शुद्धनयना विषयमां ते भेद
नथी.
३३. आ रीते भेदने गौण करनार शुद्धनयथी नवमांथी एक जीवने
जुदो तारवी तेनो अभेद अनुभव करवो ते आत्मख्याति–आत्म प्रसिद्धि छे.
जे आत्माए पूर्णरूप शुद्धात्मानी अनुभूति करी तेने अंतरना भगवान
मळ्या, तेने आत्म साक्षात्कार थयो. वर्तमान दशामां नवतत्त्वना विकल्पो अने
गुणभेद होवा छतां त्रिकाळी आत्माने अंतरमां एकरूपे अनुभववो ते
नियमथी सम्यग्दर्शन छे. आ शुद्धनयथी आत्मानी शुद्ध अनुभूतिनो नियम
कह्यो. तेने आत्मानुभूति कहो, शुद्धनय कहो, सम्यग्दर्शन कहो के आत्मा कहो–
ए बधुं एक ज छे.