वैशाख : २४८८ आत्मधर्म : १प :
३४. १८ दोष रहित सर्वज्ञदेवने पूर्ण शुद्धता प्रगटी ते मोक्ष छे:–
मोक्ष कह्यो निज शुद्धता ते पामे ते पंथ, समजाव्यो संक्षेपमां सकलमार्ग
निर्ग्रंथ.’
पूर्ण एकरूप आत्मवस्तु उपर द्रष्टि दीधा विना सम्यग्दर्शन न थाय,
भेदरूप विषयने लक्षमां न लेतां अंदर त्रिकाळी ज्ञायक सामान्य उपर द्रष्टि दई
एकाग्र थतां सम्यग्दर्शन थाय छे.
आत्मानी एक समयनी अवस्थामां विकारनी योग्यता छे. कोई तेने
विकार करावी द्ये–एम बने नहि, अने एकला स्वविषयमां स्वलक्षे अनेकभेद
पुण्यपाप वगेरे बने नहि.
तेमां विकारी थवा योग्य योग्यता जीवननी पर्यायमां लेवी अने विकार
करनार ते निमित्तपणुं जड कर्ममां लेवुं. दया–दानादिना शुभ भाव ते
भावपुण्य छे अने तेमां निमित्तरूप अजीवकर्म ते विकार करनार द्रव्यपुण्य छे.
शुभराग थवामां तो जूना मोहकर्मनो उदय ज निमित्त छे. ने ते तो पापकर्म
छे. छतां जीव तेने अनुसारे परिणमतो नथी पण पोतानी स्वतंत्र योग्यताथी
ज शुभराग (भावपुण्य) करे छे. तेथी मोहकर्मना उदयने द्रव्यपुण्यनो आरोप
अपायो–एम आमांथी साबित थाय छे. कर्मनो जेवो उदय आवे ते अनुसार
‘डिग्री टु डिग्री’ जीवमां विकार थाय ए मान्यता खोटी छे.
३६. जीवनी पर्यायमां पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने
मोक्ष ए सात भेद पडे छे ते निमित्त विना–निमित्तना आश्रय विना न पडे.
अने ते भेदना लक्षे अंतरमां जवानी अभेद द्रष्टि थती नथी. भेदरूप
व्यवहारना आश्रये सम्यग्दर्शन न थाय. एकला भेदनो अनुभव करनार
मिथ्याद्रष्टि छे. जीवनी वर्तमान दशामां नव प्रकारना भेदनी योग्यतानी
स्वतंत्रता न कबूले त्यां सुधी तेने निर्विकल्प अभेद अनुभव अने शुद्धनी
श्रद्धा सन्मुख थवानी पात्रता आवे नहि.
३७. दरेकमां जुदी जुदी योग्यता होय छे ने ते स्वतंत्र होय छे. जेम
दीवासळीना लाकडानो एक छेडो गरम थतां बीजो छेडो गरम न थाय, पण
लोखंडना सळियानो एक छेडो गरम थतां बीजो छेडो गरम थाय. मोटुं
वजनदार लाकडुं पाणीमां तरे ने लोढानी नानी कटकी बूडे तेनुं कारण शुं? के
तेनी ते प्रकारनी स्वतंत्र योग्यता; तेम आत्मामां पुण्य–पाप, आस्रव, संवर,
निर्जरा, बंध अने मोक्षरूप अवस्था उत्पन्न थाय छे. ते तेनी वर्तमान
पर्यायनी ते प्रकारनी योग्यता छे.
३८. वर्तमान व्यक्तदशानी स्वतंत्रता कबूले तो पछी तेनो नकार करी
ते व्यक्तदशा जेटलो ज हुं नथी पण हुं तो त्रिकाळी एकरूप शुद्ध ज्ञानघन छुं.
एम अंर्तअनुभवनी अभेदद्रष्टि करी शके; पण जे वर्तमान व्यक्त विकारनी
स्वतंत्रता न माने ते त्रिकाळी अव्यक्त अखंड निर्विकारने केम कबूली शके? न
ज कबूली शके.