Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : वैशाख : २४८८

‘शुद्धनय’ छे. रागनो जे भाग बाकी रह्यो तेने हेयरूपे जाणे ते ‘व्यवहारनय’
छे, तेम ज क्रमे थता शुद्धिना भेदने पण जाणे ते पण ‘व्यवहारनय’ छे.
जेम पीपरमां पूर्ण तीखाशनी शक्ति कायम छे एम जाणवुं ते शुद्धनय–
निश्चयनय; अने तेमां क्रमे क्रमे प्रगट थती तीखाशना भेदने जाणवा, कचाशना
भेदने जाणवा ते ‘व्यवहारनय’ छे.
–श्रद्धानो विषय अने शुद्ध निश्चयनयनो विषय एक ज छे. सर्व भेदने
गौण करीने, त्रिकाळी शुद्ध चिदानंदघन पूर्ण स्वभावने एकने ज रुचिमां
लईने तेमां ढळवुं तेनुं नाम ‘शुद्धनय’ छे.
“शुद्धनय त्यागवा योग्य नथी.” एनो अर्थ एवो छे के–आदर करवा
योग्य एवा आ आत्मानुं शाश्वतसत् चिदानंदस्वरूप छे ते तरफ द्रष्टि
(–रुचि) करीने अशुद्धनय–व्यवहारनो विषय आदर करवा योग्य–अनुसरवा
योग्य नथी एम जाणवुं. शरीर, मन, वाणी मारां नथी; हुं तेनो कर्ता,
करावनार के प्रेरक नथी; पुण्य पापरूप विकार ते जळमां सेवाळ जेम मेल छे.
ते मारुं स्वरूप नथी. वळी ते बंधनुं–दुःखनुं कारण छे पण धर्मनुं कारण नथी.
माटे तेनो (अशुद्धनयना विषयोनो) आदर–आश्रय–रुचि छोडवो–मात्र निज
शुद्धस्वरूपनो निजमां आदर–आश्रय करवो–आ करवानुं आव्युं. घणा पूछे छे
के साचुं जाणीने करवुं शुं? उत्तर के–आ साचा ज्ञाननी क्रिया करवी. अहीं ते
सत्यज्ञानक्रिया करवानी वात ज कहेवाय छे.
पीपरना दरेक दाणामां पूर्ण तीखाशनी शक्ति भरी पडी छे. तथा
लीलो रंग कायम एवो ने एवो छे. ते पीपरना दाणाने घसवाथी ज प्रगट
थाय छे. कटका करवाथी नहि. वळी अंदरनी शक्ति–सामर्थ्य, योग्यता छे तेथी
तेमांथी ते प्रगट थाय छे, बहारथी आवे एम नथी. तेम दरेक आत्मा देहथी
जुदो, पोतपोतानी अनंत ज्ञानानंद शक्तिथी सदाय एकमेक छे. तेने भूलीने
बाह्य वलण करे छे तेथी पुण्य–पाप, राग–द्वेष, हर्ष–शोकनी वृत्ति ऊठे छे. पण
तेवो अने तेटलो आत्मा नथी पण पीपरना द्रष्टांते पूर्णज्ञानघन शक्तिथी
भरेलो आत्मा छे, ते सदाय एवो ने एवो छे. तेने द्रष्टिमां लई, तेनां श्रद्धा–
ज्ञान अने तेमां एकाग्रता करवाथी तेनो ज्ञानानंद स्वभाव प्रगट थाय छे,
पण कोई निमित्त
[संयोग] अथवा शुभाशुभरागवडे ते प्रगट थाय एवो
नथी. अंदरमां ज्ञानानंद ध्रुवशक्ति कायम छे एवा ज्ञानस्वरूप आत्मानो
निश्चय करी तेना आश्रयवडे तेनी पवित्रदशा प्रगट करी शकाय छे.
पूर्ण शुद्ध स्वरूपनां श्रद्धा–ज्ञान होवा छतां, ज्ञानीने चारित्रपूर्ण नथी
त्यां सुधी दया, दान, पूजा, भक्तिनो शुभराग आवे खरो. पण ते राग करवा
जेवो छे एम ते न माने. कोई जडकर्म वगेरे मने रागद्वेष करावे के सुखदुःख
आपे एम ते न माने, परनुं हुं कांई करी शकुं छुं पर मारूं कांई करी शके छे
एम ते न माने. केम के त्रण, काळ त्रणलोकमां एम बनी शकतुं नथी.