Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८८ : १९ :
धर्म कांई बहारथी लाव्यो लवातो नथी. वस्तुनो स्वभाव ते धर्म छे.
अमुक क्षेत्रमां के अमुक काळमां ज थाय एवो नथी. मिथ्यात्व, शुभाशुभभाव
दुःखदाता छे, भूल–विकार क्षणिक छे दुःखरूप छे तेनो नाशक त्रिकाळी निर्विकार
स्वभाव छे. भेदविज्ञानद्वारा त्रिकाळी पूर्ण ज्ञानस्वभावी आत्मानो निर्णय करी
तेमां ज वर्तमान ज्ञानने वाळवुं ते शुद्धनय छे अने ते धर्म छे.
–ज्यां सुधी आ स्वाधीन स्वरूपने जीव न जाणे त्यां सुधी ते पुण्य–
पापनो कर्ता थई संसारमां रखडे छे. दया, दान, व्रत, तप करे तो पुण्य थाय अने
तेना फळमां धुळ मळे. पैसा मळ्‌या माटे पैसावाळो थई जतो नथी, केमके पैसा
खरेखर तेने मळ्‌या नथी.–जीव पैसानी ममता करे छे तेथी तेने ते ममता मळे छे–
जीव ममतावाळो अथवा वीतरागी समतावाळो थई शके छे; पण पैसावाळो तो
ते कदी थई शकतो नथी.
‘अमारे अपवित्रता जोईती नथी’–एनो अर्थ ए थयो के अमारे पवित्र
थवुं छे. एमां एम आव्युं के वर्तमान दशामां अपवित्रता छे खरी पण ते क्षणिक
छे, कायम रहे एवी नथी, दुःखरूप छे; माटे तेने टाळवी छे अने तेना स्थाने
सुखमय एवी पवित्रदशा लाववी छे. तो ते क््यांथी आवशे? के अंदर ध्रुवपवित्र
ज्ञानानंद स्वभाव नित्य छे; तेनो आश्रय करे तो तेनी एकाग्रताना बळवडे
अंदरनी शक्ति व्यक्त थाय छे. ए रीते अंतरमांथी पवित्रता आवे छे,
अपवित्रता उत्पन्न थती नथी. जेम पीपरमां उपर काळो रंग छे ते टळी शके छे ने
ते टळीने तेना स्थाने पूर्ण लीलाश–तीखाश प्रगट थई शके छे. एम आत्मामांथी
अपवित्रता टळी, पवित्रता प्रगट थई शके छे. वीतरागता करवा जेवी छे पण ते
न थाय त्यां सुधी तो पुण्य करवा जेवुं छे ने?–एम घणा पूछे छे; पण ए करवा–
न करवानो प्रश्न साचुं समजे तो रहे नहि, कारण के ज्यां सुधी रागनी भूमिका छे
त्यां सुधी अशुभथी बचवा शुभ आवे छे–होय छे, पण ज्ञानीने तेनी भावना
होती नथी केमके पुण्य–पाप बेउ आस्रव छे, बंधनां कारणो छे. ए रीते तेने
जाणवा ते व्यवहारनुं काम छे जेम छे तेम जाणवामां चैतन्य समजदार छे, उदार
छे. अंदरमां नित्य एकरूप सामान्य स्वभाव पड्यो छे, तेना उपर द्रष्टि देवी ते
शुद्धनय छे अने ते छोडवा योग्य नथी. केमके तेनुं ध्येय संसारनां सर्व दुःखथी
छोडावी पूर्ण पवित्रतामां पहोंचाडवानुं छे.
एक गामडामां गया हता. त्यां “अगाधगति” नामनुं पुस्तक कणबी
(खेडुत) भाईओ लईने समजवा आव्या. तेमणे कह्युं के–आमां शुं कहेवा मागे
छे? ए अमने समजातुं नथी. जवाब आप्यो के, तमे वांचो. वांचतां तेमां एम
आव्युं के–आणीकोरनी उपासनाथी अहींयानुं फळ मळशे...तेनो खुलासो २०
लीटीमां कर्यो हतो ते वांचतां तेमां एम नीकळ्‌युं के दया, दान, व्रत, जप, तप,
तीर्थ, नामस्मरण, भजन, स्तुति, प्रार्थना–सेवा, पूजा, शास्त्रवांचन वगेरेनुं फळ
संसार छे, ते जन्ममरणनी गति छे. आवुं करशो तो अहीं फळशे एटले के
जगतनी जंजाळमां ज रहेशो...वगेरे. पछी तेओने समाधानमां एम कह्युं के:–
आत्मानी