वैशाख : २४८८ : २१ :
वर्तमान दशामां मति–श्रुतज्ञान छे ते वडे त्रिकाळी स्वभाव अने
क्षणिक विभावनो विवेक करी, ज्ञानने अंतरमां–ध्रुवस्वभावमां वाळवुं ते धर्म
छे, ते प्रयत्न–साचो पुरुषार्थ छे.
जेने धर्मनो अने पुण्य–पापनी जुदाईनो विश्वास न आवे तेने
वर्तमान ज्ञानना सामर्थ्यनो विश्वास आवतो नथी.
“अपने को आप भूलके हैरान हो गया.” आत्मा सदाय ज्ञानमूर्ति छे.
शरीर, ईन्द्रियो अने तेना स्पर्शादि विषयो विनानुं निरपेक्ष ज्ञान अने सुख
तेनामां छे. ते शक्तिनो भरोसो करतां ज्ञान अंदरमां ढळवा लागे छे.
आत्मामां स्पर्श, रस, गंध, वर्ण नथी. सदाय अरूपी अतीन्द्रिज्ञान–आनंद ते
तेनुं रूप छे. एने भूलीने असंख्य प्रकारना पुण्यपापना भाव अनंतवार जीव
करी चूक््यो, धर्मना नामे अनंतवार त्यागी, बावो, साधु थयो पण पुण्य–
पापभाव मारा नथी, तथा ते दुःख दाता छे, एम कदी मान्युं नथी. मारो
सुखदाता भाव मारामां ज छे–एवी द्रष्टि अने अनुभव कर्या विना जरीए
आत्महित थाय नहीं.
उपवास शुं छे? आत्मभाववडे आत्मामां वसवुं; अंदर ईच्छा–
आकुळता विनानो ज्ञानानंदस्वभाव मारो छे. तेने द्रष्टिमां लईने विकल्प–
पुण्यपाप ते मारुं कार्य नथी, एम जाणी अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदथी भरेला
एकरूप ज्ञायकभावमां एकरूप थईने वसवुं तेनुं नाम उप=समीप,
वास=वसवुं–ते उपवास छे.
‘कषाय विषयाहारस्त्यागो यत्र विधीयते।
उपवासः स विज्ञेयः शेषं लंघनकं विदुः।।
मुख्य कषाय मिथ्यात्व छे. ज्यां कषाय, विषय अने आहारनो त्याग
करवामां आवे छे तेने उपवास जाणवो, बाकीनाने श्रीगुरु लांघण कहे छे.
प्रथममां प्रथम अतीन्द्रिय ज्ञानमय आत्मानो महिमा आव्या विना
विषय–कषायरूप पापमां तुच्छता कदी आवे नहि.
दरेक आत्मामां सदाय, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख, वीर्य, अस्तित्व,
वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व, प्रदेशत्व, प्रभुत्व, विभुत्व,
सर्वज्ञत्व, सर्वदर्शित्व आदि अनंतशक्ति (अनंतगुणो) एक साथे छे, पण
प्रथम तेनी रुचि न करे, कींमत न करे तो जिज्ञासाथी सांभळे शेनो?
आत्महितनो अवसर अत्यारे ज छे. मानवभव मळ्यो, सत्य काने
पडतां हा पाडे तेने सर्व अवसर आवी चूक््यो छे. रुचे तेमां वायदो न होय,
रागादि दोष होवाटाणे पण तेने गौण करनार त्रिकाळी ज्ञायक छुं एवी द्रष्टिना
जोरे स्वभावनो विश्वास करी गुलांट मार तो तारा