Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८८ : २३ :

धर्म माने अथवा धर्मनुं कारण माने, शास्त्रो वांची जाय, धर्मना नामे अमुक
वात करे तेथी शुं? मूळ प्रयोजनभूत रकममां सत्य असत्यनो निर्धार नथी तो
तेनुं बधुं मिथ्या छे.
अहीं आचार्यदेव तो अनादिना मिथ्यात्वना झेर उतारवा अमृत
पीरसे छे, के पुण्यपापनी रुचि छोडी त्रिकाळी निर्मळ स्वभावने जो–तेमां
रुचि–प्रितीवंत था, शुभअशुभ राग होवा छतां रागनी पाछळ
सर्वरागादि दोषनो नकार करनार विकारनो नाशक हुं ज्ञाता ज छुं एम
स्वानुभवथी निर्णय करे तेने ते ज क्षणथी सहजानंदनो दाता अमृतमय
धर्म शरू थाय छे.




अहो! सर्वोत्कृष्ट शान्तरसमय सन्मार्ग ––
अहो! ते सर्वोत्कृष्ट शान्तरस प्रधानमार्गना मूळ सर्वज्ञदेव अहो!
ते सवोत्कृष्ट शान्तरस सुप्रतीत कराव्यो एवा परमकृपाळु
सद्गुरुदेव–तमे आ विश्वमां सर्वकाळ जयवंत वर्त्तो! जयवंत वर्त्तो!!
(श्रीमद् द’ जचंद्र)
विशेष समाचार
पूज्य सत्पुरुष गुरुदेवश्री कानजीस्वामी सोनगढथी चैत्र वदी १०,
ता. २९–४–६२ना रोज राजकोट (सौराष्ट्र) पधारशे. अने वैशाख सुदी
पांचम ता. ७–प–६२ सुधी रोकावाना छे. राजकोटमां श्री दि. जिनमंदिर
पासे श्री मोहनलाल कानजी घीया स्वाध्याय मंदिरनुं उद्घाटन थवानुं छे.
तथा वैशाख शुद २ ने दिवसे पूज्य गुरुदेवश्रीनी ७३मी जन्मजयंति
महोत्सव थशे. आवा उत्तम अवसर पर धर्म जिज्ञासुओने धर्म श्रवणनो
लाभ लेवा विनंति छे.