हेतु छे, तेथी तेनाथी ते आगळ पाछळ करी शकाय एम नथी. उपादानने
गौण करीने उपचारना हेतुथी तेमां आगळपाछळ थवानुं उपचार कथन करवुं
ए बीजी वात छे.
अथवा तेना गुणो अने पर्यायोनो बीजा द्रव्य अथवा तेना गुणो अने पर्यायो
बीजा द्रव्यना साथे कोई पण प्रकारनो संबंध नथी. ए परमार्थ सत्य छे. तेथी
एक द्रव्यनो बीजा द्रव्य साथे जे संयोगसंबंध अथवा आधार–आधेयभाव
आदि कल्पवामां आवे छे तेने अपरमार्थ भूत ज जाणवो जोईए.
घीनी जेम वाटको पण छे तो अमे पूछीए छीए के वाटकाने ऊंधो वाळतां ते
पडी केम जाय छे? ‘जे जेनो वास्तविक आधार होय छे तेनो ते कदी पण
त्याग करे नहि.’ आ
वाळता घी वाटकाने छोडी ज दे छे. तेथी जणाय छे के वाटको घीनो वास्तविक
आधार नथी. तेनो वास्तविक आधार तो घी ज छे, केमके तेने कदीपण छोडतुं
नथी. ते वाटकामां रहे, के जमीन उपर रहे के उडीने हवामां अद्रश्य थई जाय
पण ते सदा घीज रहेशे. अहीं आ द्रष्टांत घीरूप पर्यायने द्रव्य मानीने
आपवामां आव्युं छे. तेथी घीरूप पर्याय बदलतां ते बदली जाय छे ए कथन
अहीं लागु पडतुं नथी. आ एक द्रष्टांत छे तेवी ज रीते कल्पित जेटला कोई
संबंध छे ते बधाना विषयमां आ ज द्रष्टिबिंदुथी विचार करवो जोईए. स्पष्ट
छे के मानवामां आवतां संबंधोमां एक मात्र तादात्म्य संबंध परमार्थभूत छे.
ए सिवाय निमित्तादिनी द्रष्टिथी बीजा जेटला संबंध कल्पवामां आव्या छे तेने
उपचरित होवाथी अपरमार्थभूत ज जाणवा जोईए. आम करवाथी
व्यवहारनो लोप थई जशे एम मानीने घणा विद्वानो आवा कल्पित संबंधोने
परमार्थभूत मानवानो प्रयत्न करे छे. परंतु ए ज एमनी सौथी मोटी भूल छ
थाय तो सारूं ज छे. आवा व्यवहारनो लोप कोने ईष्ट न होय? आ संसारी
जीवने स्वयं निश्चयरूप बनवा माटे पोतामां अनादिकाळथी चाल्या आवता
आ अज्ञानमूलक व्यवहारनो लोप तो करवानो ज छे. एने बीजुं करवानुं ज
शुं छे? वास्तविक रीते जोवामां आवे तो ए ज