Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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एनो परम (सम्यक्) पुरुषार्थ छे. तेथी व्यवहारनो लोप थई जशे ए
भ्रान्तिथी परमार्थथी दूर रहीने व्यवहारने ज पुरुषार्थरूप समजवानी चेष्टा
करवी योग्य नथी.
(प) जीवनी संसार अने मुक्त अवस्था छे अने ते वास्तविक छे
एमां शंका नथी. पण ए आधारे कर्म अने आत्माना संयोग संबंधने
वास्तविक मानवो योग्य नथी. जीवनो संसार एनी पर्यायमां ज छे अने
मुक्ति पण एनी ज पर्यायमां छे. ए वास्तविक छे अने कर्म तथा आत्मानो
संयोग संबंध उपचरित छे.
२३–संयोगसंबंध ए शब्द पोते ज जीव अने कर्म जुदा जुदा होवानुं
कहे छे. तेथी यथार्थ अर्थनुं कथन करतां शास्त्रकारोए ए वचन कह्युं छे के जे
वखते आत्मा अशुभभावरूपे परिणमे छे ते वखते ते स्वयं शुभ छे, जे वखते
स्वयं अशुभभावरूपे परिणमे छे ते वखते ते स्वयं अशुभ छे अने जे वखते
शुद्धभावरूपे परिणमे छे ते वखते ते स्वयं शुद्ध छे. आ कथन एक ज द्रव्यना
आश्रये कर्युं छे, बे द्रव्यना आश्रये नहि तेथी परमार्थभूत छे अने कर्मोने
कारणे जीव शुभ के अशुभ थाय छे अने कर्मोनो अभाव थतां शुद्ध थाय छे ए
कथन उपचरित होवाथी अपरमार्थभूत छे केमके ज्यारे आ बंने द्रव्य स्वतंत्र
छे अने एक द्रव्यना गुणधर्मनुं बीजा द्रव्यमां संक्रमण थतुं नथी तो पछी एक
द्रव्यमां बीजा द्रव्यना कारणरूप गुण अने बीजा द्रव्यमां तेना कर्मरूप गुण केवी
रीते रही शके अर्थात् रही शके नहि. आ कथन थोडुं सूक्ष्म तो छे. परंतु
वस्तुस्थिति ए ज छे. आ विषय स्पष्ट करवा माटे अमे तत्त्वार्थसूत्रनुं एक
वचन उद्धृत करीशुं. तत्त्वार्थसूत्रना १०मा अध्यायनी शरूआतमां केवळज्ञाननी
उत्पति केवी रीते थाय छे एनो निर्देश करतां कह्युं छे–
मोहक्षयाज्ज्ञानदर्श नावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम्।। १०–१।।
मोहनीय कर्मना क्षयथी तथा ज्ञानावरण–दर्शनावरण अने अंतराय
कर्मना क्षयथी केवळज्ञान थाय छे. १०–१.
२४–अहीं केवळज्ञाननी उत्पत्तिनो हेतु कोण छे एनो निर्देश करतां
बताव्युं छे के ते मोहनीय कर्मना क्षय थया पछी ज्ञानावरणादि त्रण कर्मोना
क्षयथी थाय छे. अहीं क्षयनो अर्थ प्रध्वंसाभाव अत्यंताभाव नहीं केमके
कोईपण द्रव्यनो पर्यायरूपे ज नाश थाय छे, द्रव्यरूपे नहीं. हवे विचार करो के
ज्ञानावरणादिरूप जे कर्मपर्याय छे तेना नाशथी तेनी अकर्मरूप उत्तर पर्याय
प्रगट थशे के जीवनी केवळज्ञान पर्याय प्रगट थशे. एक वात बीजी छे ते ए के
जे समये केवळज्ञान पर्याय प्रगट थाय छे ते समये तो ज्ञानावरणादि कर्मोनो