वास्तविक मानवो योग्य नथी. जीवनो संसार एनी पर्यायमां ज छे अने
मुक्ति पण एनी ज पर्यायमां छे. ए वास्तविक छे अने कर्म तथा आत्मानो
संयोग संबंध उपचरित छे.
वखते आत्मा अशुभभावरूपे परिणमे छे ते वखते ते स्वयं शुभ छे, जे वखते
स्वयं अशुभभावरूपे परिणमे छे ते वखते ते स्वयं अशुभ छे अने जे वखते
शुद्धभावरूपे परिणमे छे ते वखते ते स्वयं शुद्ध छे. आ कथन एक ज द्रव्यना
आश्रये कर्युं छे, बे द्रव्यना आश्रये नहि तेथी परमार्थभूत छे अने कर्मोने
कारणे जीव शुभ के अशुभ थाय छे अने कर्मोनो अभाव थतां शुद्ध थाय छे ए
कथन उपचरित होवाथी अपरमार्थभूत छे केमके ज्यारे आ बंने द्रव्य स्वतंत्र
छे अने एक द्रव्यना गुणधर्मनुं बीजा द्रव्यमां संक्रमण थतुं नथी तो पछी एक
द्रव्यमां बीजा द्रव्यना कारणरूप गुण अने बीजा द्रव्यमां तेना कर्मरूप गुण केवी
रीते रही शके अर्थात् रही शके नहि. आ कथन थोडुं सूक्ष्म तो छे. परंतु
वस्तुस्थिति ए ज छे. आ विषय स्पष्ट करवा माटे अमे तत्त्वार्थसूत्रनुं एक
वचन उद्धृत करीशुं. तत्त्वार्थसूत्रना १०मा अध्यायनी शरूआतमां केवळज्ञाननी
उत्पति केवी रीते थाय छे एनो निर्देश करतां कह्युं छे–
क्षयथी थाय छे. अहीं क्षयनो अर्थ प्रध्वंसाभाव अत्यंताभाव नहीं केमके
कोईपण द्रव्यनो पर्यायरूपे ज नाश थाय छे, द्रव्यरूपे नहीं. हवे विचार करो के
ज्ञानावरणादिरूप जे कर्मपर्याय छे तेना नाशथी तेनी अकर्मरूप उत्तर पर्याय
प्रगट थशे के जीवनी केवळज्ञान पर्याय प्रगट थशे. एक वात बीजी छे ते ए के
जे समये केवळज्ञान पर्याय प्रगट थाय छे ते समये तो ज्ञानावरणादि कर्मोनो