Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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अभाव ज छे अने अभावने कार्यनी उप्तत्तिमां कारण मानी शकातुं नथी. जो
अभावने पण कार्यनी उत्पतिमां कारण मानवामां आवे तो गधेडाना
शिंगडाने अथवा आकाशना फूलने पण कार्यनी उप्तत्तिमां कारण मानवुं पडे.
जो एम कहो के अहीं अभावनेसर्वथा अभाव तरीके लीधो नथी परंतु
भावान्तर स्वभाव अभाव तरीके लीधो छे तो अमे पूछीए छीए के अन्य
भावना स्वभावरूप अभाव शुं वस्तु छे? तेनो नाम निर्देश करवो जोईए. जो
कहो के अहीं अन्य भावना स्वभावरूप अभाव ज्ञानावरणादि कर्मोनी
अकर्मरूप उत्तर पर्यायने गणवामां आवेल छे तो अमे पूछीए छीए के ए
आप कया आधारे कहो छो? उक्त सूत्रमांथी तो एवो अर्थ फलित थतो नथी
माटे तेने निमित्त कथननी मुख्यतावाळुं वचन न मानतां हेतु कथननी
मुख्यतावाळुं वचन मानवुं जोईए. स्पष्ट छे के अहीं जीवनी केवळज्ञान पर्याय
प्रगट थवानो जे मुख्य हेतु उपादान कारण छे तेने तो गौण करवामां आव्युं
छे अने जे ज्ञाननी मतिज्ञान आदि पर्यायोना उपचरित हेतु हतो तेना
अभावने हेतु बनावीने तेनी मुख्यताथी आ कथन करवामां आव्युं छे.
२प–अहीं बताववानुं तो ए छे के ज्यारे केवळज्ञान पोताना
उपादानना लक्ष्यथी प्रगट थाय छे त्यारे ज्ञानावरणादि कर्मरूप उपचरित
हेतुनो सर्वथा अभाव रहे छे.
परंतु एने (अभावने) हेतु बनावीने एम
कह्युं छे के ज्ञानावरणादि कर्मोनो क्षय थवाथी केवळज्ञान प्रगट थाय छे. आ
व्याख्याननी पद्धति छे–जेनुं शास्त्रोमां पदे पदे दर्शन थाय छे. परंतु यथार्थ
वात समज्या विना एने ज कोई यथार्थ मानवा लागे तो तेने शुं कहेवुं? ए
तो अमे मानीए छीए के व्यवहारनी मुख्यताथी कथन करनारा जेटला कोई
शास्त्रो छे तेमां घणुं करीने उपादानने गौण करीने,
क््यांक निमित्तनी
मुख्यताथी कथन कर्युं छे कयांक लौकिक व्यवहारनी मुख्यताथी कथन कर्युं छे
अने कयांक अन्य प्रकारे कथन कर्युं छे. पण एवा कथननुं प्रयोजन शुं छे ते तो
समजे नहि अने तेने ज यथार्थ कथन मानीने श्रद्धा करवा मंडे तो तेनी ए
श्रद्धाने यथार्थ कहेवी
क््यां सुधी उचित छे एनो विचार विचक्षण पुरुष पोते ज
करे. वास्तवमां निमित्त ए उपचरित हेतु छे, मुख्य हेतु नथी. मुख्य हेतु तो
बधे पोतानुं उपादान ज होय छे केमके कार्यनी उत्पति तेनाथी ज थाय छे.
छतां पण ते बाह्य हेतु (उपचरित हेतु) होवाथी तेना वडे सुगमताथी
ईष्टार्थनुं ज्ञान थई जाय छे तेथी आगममां अने दर्शनशास्त्रमां मोटा
प्रमाणमां तेनी मुख्यताथी कथन करवामां आव्युं छे. तेथी ज्यां जे द्रष्टिकोणथी
कथन कर्युं होय तेने समजीने ज तत्त्वनो निर्णय करवो जोईए.
२६–आ उपचरित अने अनुपचरित कथनना केटलाक दाखला छे जे
गौणमुख्य भावथी प्रयोजन प्रमाणे शास्त्रोमां स्वीकारवामां आव्या छे.
दाखला तरीके जे दर्शनशास्त्रना ग्रन्थ छे तेमनी रच–