अभावने पण कार्यनी उत्पतिमां कारण मानवामां आवे तो गधेडाना
शिंगडाने अथवा आकाशना फूलने पण कार्यनी उप्तत्तिमां कारण मानवुं पडे.
जो एम कहो के अहीं अभावनेसर्वथा अभाव तरीके लीधो नथी परंतु
भावान्तर स्वभाव अभाव तरीके लीधो छे तो अमे पूछीए छीए के अन्य
भावना स्वभावरूप अभाव शुं वस्तु छे? तेनो नाम निर्देश करवो जोईए. जो
कहो के अहीं अन्य भावना स्वभावरूप अभाव ज्ञानावरणादि कर्मोनी
अकर्मरूप उत्तर पर्यायने गणवामां आवेल छे तो अमे पूछीए छीए के ए
आप कया आधारे कहो छो? उक्त सूत्रमांथी तो एवो अर्थ फलित थतो नथी
माटे तेने निमित्त कथननी मुख्यतावाळुं वचन न मानतां हेतु कथननी
मुख्यतावाळुं वचन मानवुं जोईए. स्पष्ट छे के अहीं जीवनी केवळज्ञान पर्याय
प्रगट थवानो जे मुख्य हेतु उपादान कारण छे तेने तो गौण करवामां आव्युं
छे अने जे ज्ञाननी मतिज्ञान आदि पर्यायोना उपचरित हेतु हतो तेना
अभावने हेतु बनावीने तेनी मुख्यताथी आ कथन करवामां आव्युं छे.
हेतुनो सर्वथा अभाव रहे छे.
व्याख्याननी पद्धति छे–जेनुं शास्त्रोमां पदे पदे दर्शन थाय छे. परंतु यथार्थ
वात समज्या विना एने ज कोई यथार्थ मानवा लागे तो तेने शुं कहेवुं? ए
तो अमे मानीए छीए के व्यवहारनी मुख्यताथी कथन करनारा जेटला कोई
शास्त्रो छे तेमां घणुं करीने उपादानने गौण करीने,
अने कयांक अन्य प्रकारे कथन कर्युं छे. पण एवा कथननुं प्रयोजन शुं छे ते तो
समजे नहि अने तेने ज यथार्थ कथन मानीने श्रद्धा करवा मंडे तो तेनी ए
श्रद्धाने यथार्थ कहेवी
बधे पोतानुं उपादान ज होय छे केमके कार्यनी उत्पति तेनाथी ज थाय छे.
छतां पण ते बाह्य हेतु (उपचरित हेतु) होवाथी तेना वडे सुगमताथी
ईष्टार्थनुं ज्ञान थई जाय छे तेथी आगममां अने दर्शनशास्त्रमां मोटा
प्रमाणमां तेनी मुख्यताथी कथन करवामां आव्युं छे. तेथी ज्यां जे द्रष्टिकोणथी
कथन कर्युं होय तेने समजीने ज तत्त्वनो निर्णय करवो जोईए.
दाखला तरीके जे दर्शनशास्त्रना ग्रन्थ छे तेमनी रच–