प्रतिपादननी मुख्यता न होतां स्वसमयनी साथे पर समयनी पण समान
भावे मीमांसा करवामां आवी छे. फळस्वरूप तेमां
स्थिति तेनाथी जुदी छे.
कराववामां आव्युं छे जे तेनी संसार अने मुक्त अवस्थानो मुख्य हेतु छे.
कारण के
संसारना बंधनथी छूटवानुं तो दूर रह्युं पण ते मोक्षमार्गने पात्र पण थई
शकतो नथी. माटे ए शास्त्रोमां हेय उपादाननुं ज्ञान कराववा माटे उपचरित
कथनने अने भेदरूप व्यवहारने गौण करीने अनुपचरित (निश्चय) कथनने
मुख्यता आपवामां आवी छे अने तेना वडे निश्चयस्वरूप आत्मानुं ज्ञान
करावीने एक मात्र तेनो ज आश्रय लेवानो उपदेश आपवामां आव्यो छे.
२७–ए तो सुनिश्चित (नक्की) वात छे के जेटलो कोई व्यवहार छे ते
उपादाननी संभाळ कर्या विना परनो आश्रय लीधो छे माटे संसारने पात्र
बन्यो छे. हवे एने जेमां पराश्रयपणानो अंश पण नथी एवुं पोतानुं
स्वाश्रयपणुं पोतानी श्रद्धा, ज्ञान अने चारित्रवडे पोतामां ज प्रगट करवानुं छे
त्यारे ज अध्यात्मवृत्त (आत्माचरणवाळो) थईने मोक्षनो पात्र बनी शकशे,
ए वात बराबर छे के शरूआतनी अवस्थामां आवा जीवने पोतानी
पर्यायमांथी पराश्रयपणुं सर्वथा छुटी जाय एम नथी केमके तेनामां
पराश्रयपणानी अंतीम परिसमाप्ति विकल्पज्ञान निवृत्त थतां ज थाय छे. छतां
पण सौथी पहेलां आ जीव पोतानी श्रद्धाथी पराश्रयपणानो त्याग करे छे,
त्यार पछी ते चारित्र अंगिकार करतो विकल्पज्ञानथी निवृत्त थईने क्रमेक्रमे
निर्विकल्प समाधिदशामां परिणमी जाय छे. जीवनी आ स्वाश्रयवृत्ति पोतानी
श्रद्धा, ज्ञान अने चारित्रमां केवी रीते उदय पामे छे तेनो निर्देश करतां छ
ढाळामां कह्युं पण छे–