Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : वैशाख : २४८८
नानुं प्रयोजन ज जुदुं छे तेथी त्यां मोक्षमार्गनी द्रष्टिए मात्र स्वसमयना
प्रतिपादननी मुख्यता न होतां स्वसमयनी साथे पर समयनी पण समान
भावे मीमांसा करवामां आवी छे. फळस्वरूप तेमां
क््यांक तो उपचरित अर्थनी
मुख्यताथी कथन करवामां आव्युं छे. क््यांक अनुपचरित अर्थनी मुख्यताथी
कथन करवामां आव्युं छे अने क््यांक उपचरित अने अनुपचरित बन्ने
अर्थोनी मुख्यताथी कथन करवामां आव्युं छे. परंतु साक्षात् मोक्षमार्गनी
द्रष्टिए स्वसमयनुं विवेचन करनार जे अध्यात्मशास्त्रना ग्रन्थो छे तेमनी
स्थिति तेनाथी जुदी छे.
जो विचारपूर्वक जोवामां आवे तो एनी रचनानुं
प्रयोजन ज जुदुं छे. एनाथी प्रत्येक जीवने पोतानी ते शक्तिनुं ज्ञान
कराववामां आव्युं छे जे तेनी संसार अने मुक्त अवस्थानो मुख्य हेतु छे.
कारण के
ज्यांंसुधी आ जीवने पोतानी उपादानशक्तिनुं बराबर रीते ज्ञान
थतुं नथी अने ते निमित्तोने छोडवा के मेळववामां लाग्यो रहे छे त्यांसुधी तेनुं
संसारना बंधनथी छूटवानुं तो दूर रह्युं पण ते मोक्षमार्गने पात्र पण थई
शकतो नथी. माटे ए शास्त्रोमां हेय उपादाननुं ज्ञान कराववा माटे उपचरित
कथनने अने भेदरूप व्यवहारने गौण करीने अनुपचरित (निश्चय) कथनने
मुख्यता आपवामां आवी छे अने तेना वडे निश्चयस्वरूप आत्मानुं ज्ञान
करावीने एक मात्र तेनो ज आश्रय लेवानो उपदेश आपवामां आव्यो छे.
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१. जुओ मूळाचार समयसार अधिकारनी प्रारंभनी उत्थानिका.
२७–ए तो सुनिश्चित (नक्की) वात छे के जेटलो कोई व्यवहार छे ते
पराश्रित होवाथी हेय छे, कारण के आ जीवे अनादिकाळथी पोतानी
उपादाननी संभाळ कर्या विना परनो आश्रय लीधो छे माटे संसारने पात्र
बन्यो छे. हवे एने जेमां पराश्रयपणानो अंश पण नथी एवुं पोतानुं
स्वाश्रयपणुं पोतानी श्रद्धा, ज्ञान अने चारित्रवडे पोतामां ज प्रगट करवानुं छे
त्यारे ज अध्यात्मवृत्त (आत्माचरणवाळो) थईने मोक्षनो पात्र बनी शकशे,
ए वात बराबर छे के शरूआतनी अवस्थामां आवा जीवने पोतानी
पर्यायमांथी पराश्रयपणुं सर्वथा छुटी जाय एम नथी केमके तेनामां
पराश्रयपणानी अंतीम परिसमाप्ति विकल्पज्ञान निवृत्त थतां ज थाय छे. छतां
पण सौथी पहेलां आ जीव पोतानी श्रद्धाथी पराश्रयपणानो त्याग करे छे,
त्यार पछी ते चारित्र अंगिकार करतो विकल्पज्ञानथी निवृत्त थईने क्रमेक्रमे
निर्विकल्प समाधिदशामां परिणमी जाय छे. जीवनी आ स्वाश्रयवृत्ति पोतानी
श्रद्धा, ज्ञान अने चारित्रमां केवी रीते उदय पामे छे तेनो निर्देश करतां छ
ढाळामां कह्युं पण छे–