Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४८८ : ३१ :
आत्मा ईन्द्रिय ग्राह्य नथी ते
अंतर्मुख ज्ञानथी जाणाय एवो छे.
[राजकोट शहेरमां नियमसार गाथा ३८ उपर पूज्य
गुरुदेवनुं प्रवचन]
(ता. १२–२–६१. शनिवार)
१. आ आत्मतत्त्व देहथी, वाणीथी भिन्न नित्यानंद शुद्ध छे, तेने भूलीने
पुण्य–पाप तथा देहमां अज्ञानी पोतापणुं–कर्तापणुं माने छे. तेथी तेने शुद्धभावनो
अनुभव नथी, ते दुःख ज वेदे छे; माटे सुखी थवुं होय तेणे प्रथम देहथी अने
रागादिथी भिन्न हुं चैतन्य छुं एवी प्रतीति करवी जोईए. आत्मा सदाय परिपूर्ण
ज्ञान–आनंद–शक्तिवाळो छे; तेने ओळखी, अंदर स्थिरताना बळवडे जेमणे
पूर्णशक्ति प्रगट करी, तेमणे (रागना आलंबन विना–ईच्छाविना, पूर्ण ज्ञानद्वारा
जगतना सर्वे पदार्थोने जाण्या, अने कह्युं के–एक समयमां परिपूर्ण ज्ञानमय आत्मा
छे, ते देहादिथी भिन्न छे, तेने रुचिमां लई तेनी श्रद्धा–तेनुं ज्ञान अने तेनो अनुभव
जे करशे ते ज सुखी थशे.
२. अंदरमां विचारशक्ति ज्ञान छे. १०० वर्षनी आयुवाळो मनुष्य ९०
वर्षनी वातो क्षणमां ज याद करी शके छे एवी ताकात दरेक क्षणे छे; ते ज्ञानने
पोतानां त्रिकाळीज्ञानस्वभाव तरफ वाळी, पोते पोताना स्वद्रव्यनो–(ध्रुवज्ञायक
स्वभावनो) आश्रय करे अने तेमां लीनता करे तो त्रणकाळ–त्रणलोकना समस्त
पदार्थोने एक समयमां जाणवानी जे पोतामां ताकात छे ते प्रगट थाय छे.
३. वर्तमान मति–श्रुतज्ञान छे ते द्वारा पूर्वना घणाभवनुं ज्ञान थाय छे, एम
पूर्वभवने याद करनारा आ काळे पण छे. पण ते अपूर्व नथी. परंतु शुद्ध ज्ञानानंद
स्वभावी आत्माने जाणवो ते अपूर्व छे अने ते ज हितनुं कारण छे.
श्रीमद् राजचंद्रजीए कह्युं छे के–“जीवद्रव्य एक अखंड–संपूर्ण होवाथी तेनुं
ज्ञानसामर्थ्य पण संपूर्ण छे. संपूर्ण वीतराग थाय ते संपूर्ण सर्वज्ञ थाय.” तेमणे
यथार्थ अनुभव द्वारा, अंतरना कपाट खोली आत्मसाक्षात्कार करेल; तेथी सहज
आत्माना वेदनद्वारा आवा सुंदर टुकडानी नोंध करेली हती.
४. अंतरमां रमे ते सर्वज्ञपदने पामे छे. मोक्षमार्ग केम प्रगटे–दुःखथी छूटकारो