Atmadharma magazine - Ank 223
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : वैशाख : २४८८

केम थाय? तेनो विचार करतां मोक्षमाळा नामे ग्रंथमां तेमणे काव्य लख्युं छे
के–‘ए दिव्य शक्तिमान जेथी जंजीरेथी नीकळे.’ पुण्य–पाप अने देहादिनी
एकता–बुद्धिनी बेडीमां पराधीन, दुःखी थई रह्यो छो तो हवे अंतरना
भानद्वारा ते बेडीने तोडी निर्दोष सुख ले, एम तेओ कहे छे. तेओ
गृहस्थदशामां रह्या छतां गृहस्थदशानी रुचि रहित त्रिकाळी ज्ञानभावमां द्रष्टि
राखीने साधकपणाने साधता हता.
प. हवे अहीं आचार्यदेव कहे छे के मोक्ष अने मोक्षना उपायनुं कारण
कारणपरमात्मा ध्रुव वस्तु छे. ते औदयिक, औपशमिकादि चार भावना लक्षे
जणाय एवो नथी. पण त्रिकाळएकरूप कारण स्वभाव शक्तिपणे छे तेनी
उपर द्रष्टि अने एकाग्रता करवाथी शुद्धिनो अंश अने पूर्णता प्रगट थाय छे–
एम पीपरमां पूर्ण तीखाशनी शक्ति पडी छे ते कारणस्वभाव अने ते
घूंटवाथी प्रगट थाय ते कार्य कहेवाय, तेम आत्मामां त्रिकाळी ध्रुव शक्तिरूप
शुद्धस्वभाव छे तेने कारण परमात्मा, कारण शुद्ध जीव, अंतःतत्त्व अथवा
शुद्धभाव कहेवामां आवे छे. (तेमां द्रव्यकर्म, भावकर्म नोकर्म तो नथी पण
औदयिकादि चार भाव पण नथी.)
६. प्रभु! तारी प्रभुता अंदर भरी छे, त्यां नजर कर. सर्वज्ञ परमात्मा
थया ते कहे छे के तुं पण मारी जातनो छो, जेम दशाश्रीमाळी नातमां
जमणवार होय ते नातनो गरीब माणस जमवामां मोटा श्रीमंतनी जोडे ज
बेसी शके छे; तेम परमात्मा कहे छे के तुं मारी समान–मारी नातजातनो छो,
मात्र वर्तमान दशामां फेर छे. त्रिकाळी स्वभावमां जराय फेर नथी, तेथी
वर्तमान अंशनी रुचि छोडी त्रिकाळी पूर्णस्वभाव तारामां भर्यो छे तेमां ज
रुचिकरद्रष्टि छे. आवा पोताना कारणपरमात्मामां द्रष्टि देवाथी ज
सम्यग्दर्शन
प्रगट थाय छे. वर्तमान पर्यायमां पुण्य–पापनी वृत्ति थती देखाय छे पण ते
रूपे ज्ञायकभाव थई जतो नथी. विकारी लागणी क्षणे–क्षणे ज्ञानीने टळती
जाय छे. ‘जे टळे ते तारुं स्वरूप नहि.’ ए सिद्धांत छे.
७. शांति, स्वतंत्रता, अतीन्द्रिय आनंदनो राह (उपाय–रस्तो) तने
मळेल नथी तेथी तुं संयोग अने पुण्यनी रुचिमां अटवाणो छो अने ते कारणे
ज अंतरनी वस्तु शुं छे तेनी सूझ पडती नथी. भगवानश्री कुन्दकुन्दाचार्ये
करुणा करी अंतरनो मार्ग खुल्लो करी बताव्यो छे. तेमनां रचेलां श्री
समयसार, श्री प्रवचनसार, श्री पंचास्तिकाय शास्त्रोनी सर्वोत्तम टीका हजार
वर्ष पहेलां थई गयेला श्री अमृतचंद्राचार्ये करी छे.
८. श्री कुन्दकुन्दाचार्य बे हजार वर्ष पूर्वे थया. तेओ सर्वज्ञ भगवाने
कहेलां आत्मतत्त्वोनो अनुभव करतां, आत्मानी शान्तिमां. (अतीन्द्रिय
आनंदनी रमणतामां) झूलता–(लीन रहेता) हता. मद्रास पासे ८० माईल
दूर पोन्नुरहिल नामे सुंदर टेकरी छे, त्यां