वैशाख : २४८८ : ३३ :
तेमनां चरणचिह्न छे. आसपासमां जैनोनी घणी संख्या छे. त्यांथी नजीकना
एक गामना मठमां बावाजी रहे छे तेने त्यां प्राचीन लेख छे के कुन्दकुन्दाचार्य
महान समर्थ ज्ञानी अने आकाशगमननी ऋद्धिवाळा दिगम्बर मुनि हता.
अन्य स्थळे जूना शिलालेखो घणा छे तेमां श्री कुन्दकुन्दाचार्य अने तेमने
जमीनथी अद्धर गमननी ऋद्धिनो उल्लेख मळी आवे छे.
९. दक्षिण यात्रा वखते त्यांना जाणकार पंडितो कहेता हता के–श्री
कुन्दकुन्दाचार्य आ पोन्नुर हिलनी गुफामां तप–ध्यान करता हता ने अहींथी
महाविदेह क्षेत्रमां गयेल; त्यांथी पाछा आवी शास्त्रो पण अहीं रचेलां. आठ
दिवस विदेहक्षेत्रमां साक्षात् सीमंधर परमात्मा पासे तेओ गयेला, तेओ
भरतक्षेत्रना महामुनि हता, ज्ञान–ध्यान आनंदमां लवलीन रहेता हता. एमां
एक वखत भगवाननी धर्मसभानुं चिंतवन करतां अरे...साक्षात् तीर्थंकर
परमात्मा अहीं नथी तेनो विरह लाग्यो अने वर्तमान साक्षात् तीर्थंकर
भगवान श्री सीमंधरदेव ज्यां बिराजे छे त्यां श्री कुन्दकुन्दाचार्यने जवानो
योग मळी गयो. आठ दिवस रहेला ए वात यथार्थ छे, त्रिकाळ सत्य छे. आ
वात कांई एकला शास्त्रोना कथनना आधारे नथी. आचार्यनी आ वात
सांभळता अने याद आवतां अमने खूब प्रमोद थयेलो के धन्य आ क्षेत्र अने
धन्य ए काळ...अहो! तेओ (पवित्र आत्माना) परमानंदमां झूलता हता,
पूर्णानंदनी प्रतीति अने आनंदना अनुभवमां लीन रहेनारा, महाऋद्धिधारी
समर्थ आचार्य हता. विदेहक्षेत्र छे त्यां साक्षात् सीमंधर भगवान् आजे
बिराजे छे. त्यां धर्मसभामां तेमनो दिव्यध्वनि छूटे छे, प्रत्यक्षनी आ वात छे.
१०. आ नियमसार शास्त्रमां अध्यात्मनी वात बहु ज स्पष्ट करी छे.
शुद्धभाव, परमस्वभाव त्रिकाळी–कारणस्वभाव, कारणद्रव्य, कारणशुद्धजीव,
कारणपरमात्मा कहो ए बधुं एक ज छे. जे खाणमां नजर करतां परमानंद
प्रगट थाय छे ते अंतःतत्त्व (ध्रुवस्वभाव) एवुं छे के–पुण्य–पाप रागादि
भावकर्म, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म के जडशरीर तेने नथी. आत्मा त्रिकाळी सहज
ज्ञायकभावपणे छे. तेने ओळख्या विना कदी धर्म न थाय. आत्माना धर्ममां
अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद आवे छे. धर्मी (गृहस्थ दशामां) चक्रवर्ती पण
होय, ते रागथी भेद पाडी अंतरज्ञायक भावमां द्रष्टि करे छे. आत्मस्वाद
आगळ छ खंडनुं राज्य तेने अत्यंत तुच्छ लागे छे.
११. ऋषभदेव भगवानना पुत्र श्री बाहुबलीनी मुनिदशानी मूर्ति
श्रवण–बेलगोला दक्षिणमां छे. ते अद्भूत सुंदर अने प७ फुटनी ऊंची छे.
दुनियामां नवमुं–आश्चर्य ते गणाय छे. आ प्रतिमानी मुखमुद्रा उपर यथार्थ
वीतरागता देखाय छे. दक्षिणनी यात्रा करीने पाछा वळतां एक पंडिते पूछयुं
के “आपे त्रण दिवस १।।–१।। कलाक ते प्रतिमाजीनां दर्शन कर्यां तो तेमां शी
विशेषता जोई?” जवाब आप्यो के:–अहो...ए तो नजरे तरवरे छे. अंदर
अद्भुत–बेहद पवित्रता अने बहारमां तेनां पुण्यनी उत्कृष्टता–पराकाष्टा
जोई. वळी एकाग्रताथी जोतां जाणे