Atmadharma magazine - Ank 224
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 25

background image
जेठ : २४८८ : ९ :
ज्ञान द्वारा प्रत्यक्ष जाणवावाळो ते आत्मा छे. तेमां ईन्द्रिय के शुभराग सहायदाता नथी. शुभराग ए काळे
होय छे पण तेना वडे आत्मामां ज्ञातापणुं नथी.
तारी स्वतंत्रता तें कदी सांभळी नथी. तीर्थंकरनी वाणीमां पण तारां गाणां पूर्ण गाई शकातां नथी
एवो तुं छो, पण संयोग अने शुभरागनी क्रियाथी कल्याण मानी ठगाया करे छे–व्रत, तप, दयाना भाव
करशुं तो आत्मानो अनुभव थशे एम कोई माने तो ते यथार्थ नथी. देव, शास्त्र, गुरु आदि परना आलंबन
वडे अंतरना स्वभावनुं महात्म्य थाय एम नथी.
कोईने प्रश्न थाय के जो आम छे तो मंदिर, मूर्ति अने पूजा–भक्ति शा माटे? तमारा कथनमां मेळ
देखातो नथी. तो तेनुं समाधान–प्रथम भेदज्ञान थतां श्रद्धाज्ञान तो सम्यक् थाय छे पण ते ज क्षणे चारित्रमां
पूर्ण वीतरागदशा थती नथी. ज्यां लगी पूर्ण वीतराग न थाय त्यां सुधी भूमिकानुसार शुभराग होय छे;
पण ए वडे आत्मानो अनुभव थाय एम नथी.
“दया धर्मनुं मूळ छे, पायमूल अभिमान” ए लौकिकमां पुण्यपापनी वात छे. अहीं तो कहेवाय छे के
राग–द्वेष मोहनी उत्पत्ति ते ज स्वनी हिंसा छे. त्रिकाळ ज्ञाता स्वभावनी द्रष्टि, तेनुं ज्ञान अने तेमां
स्थिरता–ते अहिंसा–स्वदया छे. परनी दया करवी ते तारा हाथनी वात नथी. पर प्रत्ये करुणानो भाव आवे
ते जुदी वात छे, पण ते वडे धर्म नथी तथा ते धर्मनुं कारण पण नथी. जो परनी रक्षा कोई जीव करी शकतो
होय तो वहाला पुत्र अने पत्नि वगेरे केम मरी जाय छे? तेने केम राखी शकतो नथी! प्रभु! तुं तारा ज्ञान–
अज्ञानमय भावने करी शके छे, परने तुं राखी शके नहि ने बीजो तारुं कांई करी शके नहि.
भगवान आत्मा देहमां रह्यो छतां देहथी जुदो आनंदधाम छे. तेणे अनादिथी पोताना बेहद ज्ञान–
आनंद स्वभावने धारी राखेल छे. अज्ञानी तेने भूलीने परनी आशावडे दुःखी थया करे छे, रागादि तथा
शरीर–ईन्द्रिय वगेरेमां पोतानुं होवापणुं मानी तेनो आश्रय करे छे ने तेथी दुःखी थई रह्यो छे. जो भेदज्ञान
करे के आ हुं नहि, हुं तो पूर्णज्ञाता, अतीन्द्रिय आनंदनुं धाम छुं. एवो महिमा लावी, स्वसन्मुख थाय त्यारे
स्वानुभव प्रत्यक्ष अनुभववडे आनंदमूर्ति आत्मा वेदनमां प्रत्यक्ष थाय छे.
भाई! तारुं घर तो तारी पासे ज होय ने! मामानुं घर केटले? तो कहे दीवा बळे एटले. एम
आत्मानुं घर क्यां? के अंदरमां चैतन्यमूर्ति जागृतवस्तु छे ते आत्मानुं घर छे. आत्मा चैतन्य प्रकाश
शक्तिनो पूंज छे, त्यां एकाग्र थाय तो अपूर्व शान्तिनुं वेदन करनारो आत्मा वेदनमां प्रत्यक्ष जणाय एवो
छे. आनंद ए तेनो गुण छे. रागनुं वेदन ए आत्मानो गुण नथी. बहारथी साधन मान्युं छे ते व्यवहारनी
श्रद्धा छोडी दे, केमके आत्मा तो अलिंगग्राह्य अर्थात् एना वडे (व्यवहार–निमित्तना आश्रयवडे) जणाय
एवो नथी.
आ अतीन्द्रिय ज्ञायक स्वभाव परिपूर्ण छे एम महात्म्य करतां अंदरमां अपूर्व वेदनसहित जे
भावभासन थाय छे तेने आत्म साक्षात्कार–स्वसंवेदन कहेवामां आवे छे. तेने ज मोक्षमार्गनी शरूआत थई;
ते मोक्षना पंथे वळ्‌यो–ढळ्‌यो एम कहेवामां आवे छे.
ईन्द्रियवाळो आत्मा माने तेणे आत्मा मान्यो नथी. निश्चयविना व्यवहारनुं ज्ञान खोटुं छे. ईन्द्रियो
वडे आत्मा परनां काम करी शकतो नथी, भ्रमथी माने भले. भाई! एनाथी तुं नथी तेनाथी (राग,
व्यवहार, निमित्तथी) तारुं साधन थतुं नथी ने तेना विना तारूं साधन अटकतुं नथी. तुं सदाय विज्ञानघन
प्रत्यक्ष ज्ञाता छे.
प्रभु! तुं देह, ईन्द्रिय अने रागना आश्रय विनानो पूर्ण छो. बहारनुं बधुं भूली जा. विकल्पोथी पार
एकलो ज्ञान शान्तिमय आत्मा छे एनुं महात्म्य लाव. आत्मा अखंड नित्य वस्तु छे, तेनां श्रद्धा, ज्ञान,
सुख, वीर्यं आदि बधा गुणो पूर्ण अने अखंड छे एम निर्णय करी अंतरमां वळे तेने भेदज्ञान अने
सम्यग्दर्शन कहेवाय छे. आवो प्रत्यक्ष ज्ञाता तेने आत्मा कहीए. विकल्प–रागना आलंबनथी खसीने
अंतर्मुख थतां प्रत्यक्ष संवेदन थाय छे–अतीन्द्रिय आनंदमूर्ति आत्मा प्रत्यक्ष वेदनमां आवे छे. आम पोताने
स्वसंवेदनप्रत्यक्ष करवो एनुं नाम धर्म छे.