Atmadharma magazine - Ank 224
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : २२४
उपयोग ते आत्मानुं लक्षण छे. बहारना पदार्थना आलंबनथी वर्ते तेने आत्मानो उपयोग न
कहीए. लक्षणना त्रण दोष छे. अव्याप्ति, अतिव्याप्ति, असंभव लक्ष्यना एक अंशमां (कोई काळे) व्यापे ते
लक्षणने अव्याप्ति दोषवाळुं कहे छे जेमके जीवनुं लक्षण रागादि अथवा केवळज्ञान अतिव्याप्ति–लक्ष्य तेम ज
बीजामां पण व्यापे. जेमके जीवने अमूर्तिक मानतां आकाशादि अजीवद्रव्यमां ते लक्षण चाल्युं जाय छे.
असंभवदोष, जेमके देहने आत्मा मानवो, आत्मा परनुं कांई करी शके ए असंभव लक्षण छे. तेना वडे
आत्मा ओळखाय नहि. आत्मानो उपयोग जाणवा–देखावरूपे छे.
परनिमित्तने अवलंबीने जाणवानुं काम करे तेने आत्मानुं उपयोग लक्षण कहेता नथी. परलक्षी
ज्ञानने आत्मानो–उपयोग गण्यो नथी. भगवान आत्मा एक समयमां परिपूर्ण आनंदकंद छे. परश्रयथी
काम करे ते आत्मानुं लक्षण नथी. ईन्द्रियो, देव, शास्त्र, गुरु, सम्मेदशिखर वगेरे बधां परज्ञेय छे, तेने
अवलंबे एवा ज्ञानने आत्मानो उपयोग कहेता नथी, केमके ते वडे आत्मा ओळखातो नथी. ज्ञानीने पण
राग होय त्यां सुधी साचा देव–गुरु–शास्त्रादि प्रत्ये राग होय पण तेने पोतानुं स्वरूप मानता नथी, हितकर
माने नहीं.
आत्मानुं सत्य स्वरूप समज्या विना अनंतवार अनंता अवतार एळे गया, गलूडियां अने कीडा
मरे तेम मयोेर्. बहारमां दया, दान, पूजा, भक्ति, व्रतादिमां आत्मानो धर्म मानी क्रियाकांडनी धमालमां
आत्मानुं भगवानपणुं भूली गयो. ११ अंग, नव पूर्वनुं ज्ञान पण परावलंबी छे तेनाथी अंतर उपयोग
प्रगट थतो नथी. चैतन्यनी जागृति रोके तेने आत्मसंपदा–आत्मानो उपयोग कहेता नथी.
देहादि, स्त्रीधनादि तथा देवादि परपदार्थमां उपयोगने रमाडे, तेने ठीक माने तेने आत्मानी अने तेना
लक्षणनी खबर नथी. आ समज्या विना आरो नथी. आरो अहीं ज छे. बीजे क््यांय नथी. तारा अंतर
घरमां जाणवानी क्रिया छे, परने अवलंबवारूप ज्ञानने आत्मानो उपयोग कहेता नथी. पराश्रयथी खसी
स्वसन्मुख थाय तेने उपयोग कहीए.
उपयोग तारा आत्मानो एने अवलंबन ले परनुं–तेने उपयोग कहेवाय नहि, केमके तेणे परसाथे
संधी करी अने स्वनी संधी तोडी. अंतरमां वळीने (ढळीने) स्वसन्मुखतानुं काम करे तेने उपयोग कहीए.
आत्माने छोडी, शास्त्रमां जती बुद्धिने व्यभिचारिणी कहेल छे. शुभ विकल्प ऊठे छे त्यां परज्ञेयनुं आलंबन
आवे छे.
प्रश्न:– शास्त्रो न वांचे, तेमां उपयोग न लगावे तो ज्ञान क्यांथी थाय? समाधान–जिज्ञासा अने
रागमां ए अवलंबन होय पण तेने स्वालंबी ज्ञान न कहेवाय. स्वरूप समजवा माटे के विशेष ज्ञाननी
निर्मळता माटे शास्त्र भणवानो विकल्प ऊठे ए जुदी वात छे, पण जेओ तेमां संतोष मानी ले तेने
समजवानुं छे. साचुं श्रवण छोडी पापनुं अवलंबन करवानी वात नथी पण शास्त्रादि परज्ञेय सन्मुख
ज्ञानथी अंतर्मुख थवातुं नथी.
जेणे परनिमित्तना लक्षमां ज्ञानने गोठवी दीधुं छे. अने माने छे के आ द्वारा हळवे–हळवे धर्म थशे, ते
ऊंधी मान्यतामां बेठो छे. ते आत्महित शुं छे ते जाणतो नथी. मोक्षमार्ग प्रकाशकमां कह्युं छे के शास्त्रमां
बुद्धिने भमाव्या करे छे तेने अंतरमां आत्मानो अनुभव कराववा माटे तेनो निषेध कर्यो छे, त्यां बिलकुल
निषेध करीये तो महा अविवेक छे, पापना परिणाम थाय. शुभनो निषेध करवानो हेतु स्वमां लीनता
करवानो छे. सम्यग्दर्शननो मूळ विषय समजाववो छे, अशुभथी बचवा माटे शुभ आवे छे, छतां श्रद्धामां
प्रथमथी ज पुण्यनो निषेध छे. तेनुं आलंबन छोडी स्वरूपमां ढळवा माटे ए उपदेश छे. कह्युं छे के पंडितोनो
संसार शास्त्र छे. मन–ईन्द्रिओना अवलंबनवाळुं ज्ञान आत्माने नथी पण अखंड स्वभावी आत्मामां
जोडाय ते आत्मानो उपयोग छे.
भगवान महावीरे आवो पुरुषार्थ कर्यो तेथी तेमनां मंगळमय कल्याणक उजवाय छे. जे दशा पूर्ण
स्वभावना अवलंबनथी प्रगटी ते चालु रहेशे, तेनो हवे कदी अंत नहि आवे, परना लक्षे विकारमां अटकतो
हतो तेनो नित्यस्वभावना लक्षे अंत आवे छे. अंतर्मुखद्रष्टि, लक्ष अने स्थिरता अखंड थयां तेमां
मलिनतानो प्रवेश कदीपण थशे नहि. देव, शास्त्र, गुरु, छ द्रव्य नव तत्त्व आदि तरफनो उपयोग ते व्यवहार
छे, तेओ निश्चयथी आदरणीय नथी. श्रद्धामां के चारित्रमां तेनो आश्रय करे तो लाभ थाय एम ज्ञानी कदी
मानतो नथी. एकला स्वद्रव्यस्वभावना अवलंबने काम करे तेने आत्मानो उपयोग कहेवामां आव्यो छे.