विधि–निषेधसे वस्तु यों वरते सहज स्वरूप.
मोक्षना श्रद्धानने सम्यग्दर्शन कहीने जीवाजीव अधिकार पछी कर्तृकर्म अधिकार लख्यो छे. तेनुं कारण ए ज
छे. तथा पूज्यपाद आचार्ये सर्वार्थसिद्धिमां ‘
छे.
नथी. ते आ पुस्तकनो विषय पण नथी. अहीं तो फकत जैनदर्शनना आधारे विचार करवानो छे.
तत्त्वार्थसूत्रमां द्रव्यनुं लक्षण सत् कहीने तेने उत्पाद, व्यय अने ध्रौव्य स्वभाववाळुं बताव्युं छे. गुणअन्वय
स्वभाव होवाथी ध्रौव्यनो अविनाभावी अने पर्याय व्यतिरेक स्वभाव होवाथी उत्पाद अने व्ययने
अविनाभावी छे. तेथी बीजा प्रकारे त्यां द्रव्यने गुण, पर्यायवाळुं पण कहेवामां आव्युं छे. द्रव्यने गुण
पर्यायवाळुं कहो के उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यस्वभाववाळुं कहो बन्ने कथननो अभिप्राय एक ज छे.
अनंतागुणा छे, धर्म, अधर्म अने आकाश द्रव्य एक एक छे तथा काळ द्रव्य असंख्यात छे. छतां पण द्रव्यना
आ बधा भेद प्रभेदोमां द्रव्यनुं पूर्वोक्त एक लक्षण लागुं पडतुं होवाथी ते बधा एक द्रव्य शब्दथी कहेवामां
आवे छे.
विनाश पामे छे. कर्मे जीवने बांध्यो छे के जीव पोते कर्मथी बंधायो छे? एवी ज रीते कर्म जीवने क्रोधादिरूपे
परिणमावे छे के जीव पोते क्रोधादिरूपे परिणमे छे? आ बन्ने पक्षोमांथी क््यो पक्ष जैनधर्ममां तत्त्वरूपे ग्राह्य
छे ए