जेठ : २४८८ : ७ :
प्रसंगे पूज्य गुरुदेवनुं मंगळ प्रवचन
(सोनगढ, ता. ३०–३–६१ चैत्र शुद १३)
आज भगवान महावीरनो जन्मकल्याणक दिवस छे. तेओ भरतक्षेत्रना छेल्ला तीर्थंकर हता, तेमना
जन्मोत्सवने ईन्द्रो पण ऊजवे छे. तीर्थंकर होवाथी तेमनो जन्म घणा जीवोने संसारथी तरवानुं निमित्त छे.
तेमनामां एवी महानयोग्यता हती के तेओ पोताना उन्नति क्रममां आगळ वधतां छेल्ले पुरुषार्थ उग्र करीने
परमात्मा थया.
महावीर प्रभु, अहीं जन्म्या पहेलां पूर्वना भवमां देहथी भिन्न आत्मानुं ज्ञान तो हतुं ज. सम्यग्दर्शन
पामी आत्मामां अपूर्व वीररसने प्राप्त कर्यो हतो. आत्मामां अनंत शक्ति एकसाथे छे, एवी द्रष्टि वर्तती
हती.
सम्यग्दर्शन पछी, हुं पूर्ण थाउं अने बधा जीवो धर्म पामे एवो विकल्प आवतां तीर्थंकर नामकर्म
बंधायेलुं–कुन्डलपुरमां सिद्धार्थ राजाने त्यां त्रिशला देवीनी कूखे तेमनो जन्म थयो. खरेखर तो आत्मामां
बेहद सामर्थ्य छे तेनुं अंतरमां वेदन करनारनो जन्म थयो. अंतरमां भगवान आत्मानी किंमत करी, पूर्वे
अनंतकालमां आत्मानी किंमत करी नहोती, पण संयोग अने पुण्यपापना विकारनी ज किंमत करी तेनां
गाणां गायां हतां. गुलाट मारी अंतर अवलोकन करवामां वीर्य फोरव्युं के आ आत्मा अनंतज्ञानमय पूर्ण
सामर्थ्यवाळो छे, परमात्मा थवाने लायक छे, स्वभावद्रष्टिए जोतां अत्यारे ज हुं परमात्मा छुं. एवा सम्यक्–
श्रद्धान–ज्ञानपूर्वक उग्र पुरुषार्थ वडे आत्मामां स्थिर थतां अनंतज्ञान–दर्शन–सुख–वीर्य प्रगट थयां.
अनंतगुण संपदाथी भरेलां अखंड स्वभावमां एकाग्र थई पूर्ण थया माटे तेमने जन्मथी महान अने
तीर्थंकरपदवडे पूज्य मानीने ईन्द्रो जन्मकल्याणक मनाववा मेरु पर्वत उपर लई जाय छे. जन्मथी ज तेमने
वज्रकाय(वज्र जेवुं मजबूत शरीर) होय छे. जन्माभिषेक वखते क्षीरसागरना हजारो मण पाणीथी भरेला
हजारो घडाथी स्नान करावे छे तोपण तेमने जराय बाधा थती नथी.
तेमना देहनुं रूप अने तेमना आत्मानो महिमा अचिन्त्य छे. ईन्द्र हजार नेत्रवडे जुए छे तोपण तेने
तृप्ति थती नथी. तीर्थंकर पुण्यमां पूर्ण अने पवित्रतामां पूर्ण छे. तेमने ओळखीने तेमनो जन्मकल्याणक
असंख्य देवो सहित ईन्द्रो ऊजवे छे. अहो! केवो आत्मा! धन्य अवतार! एम तेओ प्रशंसा करे छे.
अज्ञानना कारणे अनंतवार शरीर, वाणी, पुण्य, पापना विकार अने तेना फळमां अधिकाई मानी,
तेनी किंमत–महिमा करतो ने तेनी ममतामां मरतो हतो. तेमांथी गुलांट मारी, रागथी अधिक अर्थात् रागथी
जुदो अने स्वभावमां परिपूर्ण थई, अंदरमां एकाग्रता करी पूर्ण स्वरूप जोवामां वीर्यने फोरव्युं ते पूर्ण
परमात्मा थई गया. एवा भगवान महावीरनो जन्म कल्याणक महोत्सव ईन्द्रो द्वारा उजवाय छे.