Atmadharma magazine - Ank 225
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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अशाड : २२प : ९ :
अनुभवरूप निश्चय थया पछी अंतरमां एकाग्रताना बळथी स्थिर थतां राग छूटतो जाय छे त्यां
भूमिकानुसार परद्रव्यनुं आलंबन मटवानी अपेक्षाए परद्रव्यनुं ग्रहण–त्याग व्यवहारथी कहेवामां आवे छे
पण खरेखर एम नथी. आत्मामां निश्चय अने शरीरनी क्रियामां तेनो व्यवहार एम नथी.
आत्महितना मार्गमां प्रथमथी ज तत्त्वज्ञानद्वारा शुभाशुभनुं स्वामीत्व तथा आश्रय छोडी धु्रव
ज्ञातास्वभावनुं स्वामीत्व अने आश्रय करवानी विधि छे पछी तेमां विशेष स्थिरता करे ते अपेक्षाए (परनुं
आलंबन छूटवानी अपेक्षाए) शरीरनी क्रिया व्रत, शील, संयमादिकने उपचार–व्यवहारथी मोक्षमार्ग कह्यो
त्यां तेने ज मोक्षमार्ग मानी न लेवो, कारण के जो परद्रव्यना ग्रहण त्याग आत्माने होय तो आत्मा
परद्रव्यनी क्रियानो कर्ताहर्ता थई जाय. पण कोईद्रव्य कोईने आधीन छे ज नहीं. आत्मा तो पोताना
रागादिभावने छोडी वीतराग थाय छे तेथी निश्चयथी वीतरागभाव ज मोक्षमार्ग छे. नीचली दशामां अंशे
वीतरागता अने अमुक प्रकारनी सरागता एक साथे होय छे तेथी ते वीतरागभावोने अने व्रतादिकोने
कदाचित्त निमित्त–नैमित्तिकपणे मेळ होय छे के आवो आटलो वीतरागभाव ज्यां होय त्यां आ जातनो
शुभराग निमित्तरूपे होय छे (पण तेनाथी विरूद्ध एवा गमे तेवा निमित्त–व्यवहार न होय) एम बताववा
उपचारथी व्रतादिक शुभास्रवने मोक्षमार्ग कह्यो पण ते कहेवा मात्र ज छे. परमार्थथी ते मोक्षमार्ग नथी एवुं
ज श्रद्धान करवुं. ए ज प्रमाणे अन्य ठेकाणे पण व्यवहारनयनी कथन पद्धति जाणवी तेनुं नाम
व्यवहारनयनुं ग्रहण छे. पण व्यवहारनयनो आश्रय करवाथी मोक्षमार्ग थशे ए मान्यता मिथ्यात्व छे.
मिथ्याज्ञानमां निश्चय–व्यवहारनय होता ज नथी.
निश्चय एटले खरेखर वीतरागभाव ज मोक्षमार्ग छे. पण नीचली भूमिकामां अमुक राग होय छे. ते
होय छे माटे मोक्षमार्ग छे एम नथी. व्रतादिनो राग शुभ छे, अव्रतनो राग अशुभ छे, बेउ आस्रवतत्त्व छे,
मलीन छे, बंधना ज कारण छे, दुःखदाता छे, वीतरागताथी विरुद्ध ज छे एम अकषाय स्वभावनी द्रष्टिवान
माने छे, छतां चारित्रमां राग सर्वथा छूटतो नथी एम जाणी अशुभमां–पापमां न जवा माटे अमुक अंशे
शुभरागमां जोडाय छे. पण ते शुभरागवडे, व्यवहार रत्नत्रयवडे, अथवा शरीरनी क्रियाथी वीतरागभाव छे
एम मानतो नथी.
लूगडांं छोडयां, घर छोडयुं एनो अर्थ तेनुं ममत्व छोडी वैराग्य धारण कर्यो. बाह्यवस्तुमां, शरीरनी
क्रियामां शुभअशुभ नथी छतां व्यवहारथी कथन आवे के अशुभ द्रव्यनुं आलंबन छोडी साचा देव, शास्त्र
गुरुनुं आलंबन लेवुं, एवो शुभभाव आवे छे त्यां अमुक संयोग तथा रागनो त्याग आ आत्माए कर्यो
एम उपचारथी कथन आवे छे. पण तेनो अर्थ एम नथी. खरेखर तो ज्ञान स्वभावनुं श्रद्धा ज्ञान अने
चारित्रमां ग्रहण थतां ते जातनो राग ते भूमिकानुसार उत्पन्न थतो ज नथी पण वीतरागता उत्पन्न करी त्यां
तेटलो राग मटयो, निमित्तनुं आलंबन मटयुं एम बताववा निमित्तकर्तानुं कथन करवानी पद्धति छे–ते
व्यवहार छे.
“ उपादानविधि निर्वचन, है निमित्त उपदेश” उपदेशमां शुं आवे? जिनमंदिरमां नित्य दर्शन करवा
जवुं. चंपल छोडी, पग धोईने जवुं, आम मस्तक नमावी अष्टांग नमस्कार करवा. तो शुं आत्मा परद्रव्यनी
क्रिया करी शकतो हशे? ना. पण ए जातनो शुभराग भक्तिवानने आवे छे. भगवान वीतराग छे तेनी
ओळख थतां तेमना प्रत्ये बहुमान–विनयनो एवो शुभराग होय छे.
मंदिरमां चामडुं, लाकडी, तलवार आदि लईने न जवुं एनो अर्थ–ए टाणे एवो राग न होय.
व्यवहारनयना कथननो अर्थ आत्माने शुभरागवडे भलुं थाय अथवा परनुं ग्रहण त्याग करी शकाय छे एम
न समजवो.
शास्त्रमां कह्युं छे के दरेक कथनना पांच प्रकारे अर्थ समजवा जोईए. शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ,
आगमार्थ, अने भावार्थ.
(१) शब्दार्थ–प्रकरणानुसार शब्दनो अर्थ.
(२) नयार्थ–निश्चयनय अथवा व्यवहारनय एमांथी कई द्रष्टिथी निरूपण छे?