: १० : आत्मधर्म : २२प
(३) मतार्थ–अहीं सांख्यादिक कोण एकान्त मतनो निषेध अने सम्यक् अनेकान्तनुं स्थापन करनार
कथन छे?
(४) आगमार्थ–सर्वज्ञ वीतराग कथित शास्त्रमां तत्त्वार्थोनुं स्वरूप आम कह्युं छे एम आधार
आपवो.
(प) भावार्थ–तात्पर्य; हेय उपादेय शुं?
जेओ शब्दने ज पकडे पण शास्त्रना गुढ अर्थने समजवानो प्रयत्न न करे तेनो श्रम व्यर्थ जाय छे.
तेनुं द्रष्टांत पिता लखी गयेला के शंकरना मंदिरना शीखर उपर ईंडामां किमती हीरा दाटया छे. चैत्र सुदी ८
सवारे ८ वाग्ये, आणे मंदिर खरीधुं, तोडयुं, धन न मळ्युं. पिताना मित्रने घेर जई पूछयुं तो तेमणे कह्युं के
तारा पिता पोतानुं धन बीजाना स्थानमां राखे एवा मुर्ख न हता. पण पानामां लख्युं छे ने? हा, तेनो
अर्थ एम नथी पण चैत्र सुदी ८ सवारे ८ वाग्ये तारा आंगणामां ते मंदिरनी टोचनी छांयापडे त्यांज
खोदवाथी धन मळशे. एम ज्ञानीना कथन शा माटे छे ते प्रथम जाणवुं जोईए अने दरेक कथननो
निश्चयनयथी अर्थ समजवो जोईए. शास्त्रमां व्यवहारनयनुं कथन होय तो पण तेमांथी निश्चयनयद्वारा अर्थ
ग्रहण करवो.
मिथ्यात्व रागादि परतंत्रता तारा अपराधथी छे तेनी निवृत्ति अने स्वतंत्रता–भेदविज्ञानद्वारा
अंतरमां एकाग्रताथी छे तेथी एवी स्वतंत्रतानी प्राप्तिनो पुरुषार्थ करवा शास्त्रमां आज्ञा छे.
वीत्यो काळ अनंत ते कर्म शुभाशुभ भाव,
तेह शुभाशुभ छेदता उपजे मोक्षस्वभाव.
जैनधर्म रागना आश्रयरहित वीतराग विज्ञानमय छे. अतीन्द्रियज्ञानमय आत्मामां संयोग अने
विकारनी अपेक्षारहित निर्मळ श्रद्धा ज्ञान अने स्थिरता ते जैनधर्म छे. वच्चे व्रतादि शुभराग आवे छे ते
जैनधर्म नथी. धर्मीजीवने नीचे एवो शुभराग होय छे माटे तेने मोक्षमार्ग छे एम नथी.
जो वीतरागता (–मोक्षमार्ग) नी साथे व्रतादि शुभरागने खरेखर मेळ होय अर्थात् ते खरेखर
मोक्षनुं कारण होय तो मोक्षदशामां पण ते रहेवा जोईए.
प्रश्न:– जो व्रतादि मोक्षमार्ग नथी तो तेनुं आचरण करवानो उपदेश शास्त्रमां केम छे?
उत्तर:– व्रतादिनुं निरूपण बे प्रकारे छे. खरेखर तो वीतरागीद्रष्टि अने चारित्रवडे
ज्ञानानंदस्वभावमां वींटावुं स्थिर थवुं ते निश्चयव्रत पुरेपुरो स्थिर न रही शके त्यां भूमिकानुसार ए जातनो
शुभराग होय छे ते व्यवहार व्रत छे. मुनिदशामां २८ मूळगुणनुं पालन नग्नशरीर ते ज निमित्तरूपे होय छे,
निश्चयश्रद्धा ज्ञानसहित अंश चारित्रमां शुद्धता वर्ते छे त्यां व्रतादि आवा होय छे ते बताववा व्रतादिकने
व्यवहारनयद्वारा मोक्षमार्ग कह्यो पण ते कहेवामात्र ज छे. शास्त्रमां तेने ए अपेक्षाथी कारण कहेल छे पण ते
कहेवामात्र कारण छे. ते जो खरेखर कारण होय तो वीतरागता ते मोक्षमार्ग अने तेनाथी विरुद्ध रागभाव ते
पण मोक्षमार्ग ठरे. माटे व्यवहारनयद्वारा जे निरूपण कर्युं होय छे ते निमित्त नैमित्तिकनो यथास्थाने मेळ
बताववा माटे ज छे. तेटलुं जाणवा माटे व्यवहारनय प्रयोजनवान् छे पण ते खरेखर मोक्षमार्ग छे एम
बताववा माटे व्यवहारनय नथी एम श्रद्धा करवी.
परद्रव्यनी अवस्था, देहनी क्रिया व्यवहारथी पण कोई करी शकतो नथी. मात्र बे द्रव्यमां एकता
माननार ऊंधुं ज देखे छे ने माने छे के हुं परथी कांई करी शकुं छुं. परनुं करी शकाय छे पण तेनुं अभिमान न
करवुं ए मान्यता पण मिथ्या ज छे. ज्ञानीने परना ग्रहणत्यागनो विकल्प आवे पण तेनो ते कर्ता नथी,
स्वामी नथी. व्यवहारनयथी जीवने परनो कर्ता, भोक्ता के स्वामी कहेवो ते कहेवामात्र ज छे एम ते जाणे छे.
शुभाशुभ राग थाय छे ते जीवनी अवस्थामां थाय छे. परिणमन अपेक्षाए तेनो कर्ता जीव छे. ज्ञानी
पण एम माने छे पण श्रद्धा–ज्ञान अपेक्षाए तेनो कर्ता–भोक्ता के स्वामी नथी.
मोक्षमार्गनुं खरूं कारण व्रतादि शुभ व्यवहार नथी तो खरूं कारण कोण छे? शास्त्रमां बे कारण कह्या
छे ने? संयोग अने विकारथी भेदज्ञान करी त्रिकाळी शुद्धज्ञायकस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान अने वीतरागभावरूप
चारित्र तो