अशाड : २२प : ११ :
१४मां गुणस्थान सुधी व्यवहार कारण छे; अने अंतरंगमां प्रगट अतिसूक्ष्म चैतन्यस्वभाव–कारण परमात्मा
छे ते निश्चयकारण छे, एम स्वीकार्या पछी–अधुरी निर्मळतारूप वीतरागताना भेद व्यवहार कारण अने
अभेद तथा स्वाश्रय अपेक्षाए ते ज निश्चयकारण छे. १४मां गुणस्थानना छेल्ला समयनी शुद्धपर्यायने पण
मोक्षनुं निश्चयकारण अने व्यवहारकारण गणी शकाय छे तथा नीचे तेनी भूमिकाने योग्य व्रतादि शुभराग
होय छे ते तो असद्भूतव्यवहारनयथी उपचार कारण छे. खरूं कारण नथी, शास्त्रना अर्थ नहीं
समजनाराओ जीवनो अंश अजीवमां, अने अजीवनो अंश जीवमां मेळवीने व्यवहारना निरूपणने
निश्चयनी जेम सत्यार्थ माने छे तेथी तेने शास्त्रमां कहेल व्यवहारनयनी पण खबर नथी. व्यवहार रत्नत्रय
अभूतार्थ मोक्षमार्ग छे एटले के खरेखर मोक्षमार्ग नथी. छतां अज्ञानी जीवपोतानी बुद्धिना दोषथी ते
रागभावने भूतार्थ मोक्षमार्ग माने छे.
आ खास मुदनीवात छे. आ अधिकार बराबर भगवान श्री महावीर जन्मकल्याणकनी जयंति उपर
आव्यो छे. भगवान थवा माटे ज आ वात कही छे. कोईना घरनी कल्पना नथी. बाह्यक्रिया, व्रतादिना
शुभभाव ज्ञानीने पण होय छे अने ते तेनी भूमिका मुजब एवो ज मेळ होय छे, तेनो निषेध नथी पण
तेने जे खरेखर साधन अर्थात् मोक्षनुं कारण माने छे ते मिथ्यामान्यतानो निषेध छे.
कोई जुठा आक्षेप करे छे के सोनगढमां तो देव–शास्त्र–गुरुनी श्रद्धाने मिथ्यात्व कहे छे; व्रत पूजा,
उपवासने मिथ्यात्व कहे छे तो तेम नथी पण ते शुभराग छे, पुण्य छे, आस्रवतत्त्व छे तेने तेम नहीं मानतां
ज, शुभराग खरेखर मोक्षनुं कारण छे; हितकर छे एम मानवुं ते मिथ्यात्व छे एम कहेवामां आवे छे. जे
शुभआस्रव छे तेने धर्म मानवारूप मिथ्याश्रद्धानो निषेध करी, सत्यार्थ धर्म शुं छे ते बताववामां आवे छे.
अनंतवार धर्मना नामे एवा शुभभाव कर्या पण ते खरेखर मोक्षनुं कारण थई शक््या नथी. केमके जेटली
शुभ वा अशुभ वृत्ति ऊठे छे ते राग छे–दोष छे.
आ वात रुचिपूर्वक सांभळी नथी तेने कठण लागे, जाण्ये मुनि थया पछी ऊंची दशानी आ वात हशे.
आ वात समाजमां चालती नथी, सांभळतां ज अरेरे धर्म रसाताळ चाल्यो जशे. अमारा मानेला धर्मने
कोण मानशे? निमित्ताधीन द्रष्टिवाळाने नवतत्त्वोना भिन्नभिन्न नवस्वरूप शुं छे तेनी खबर पडती नथी.
हिंसादि अथवा दया, अहिंसादिना भाव आवे छे ते पाप अथवा पुण्यबंधनुं कारण छे. ते जीव
द्रव्यनी विकारी अवस्था छे पण तेना कारणे बाह्यमां क्रिया थई एम नथी, शरीरनी क्रियाना कारणे जीवमां
पुण्यपाप धर्म अधर्म नथी, दया दान, सत्य आदिनो शुभभाव आव्यो ते आस्रव तत्त्व छे–आत्मानो धर्म
नथी जो होय तो सिद्ध परमात्मामां ते रहेवा जोईए. परमार्थे तत्त्वद्रष्टिथी जोतां शुभ अशुभभाव अशुद्धता
होवाथी हितरूप नथी धर्म नथी एम प्रथमथी श्रद्धा करवी जोईए. दया–दानादिना शुभभाव आवे खरा पण
धर्मी तेने मोक्षमार्ग न माने. वीरला जीव वीतरागमार्गनो आदर करी शके. वीरनो पंथ संसारमार्गथी विरुद्ध
होवाथी कायरने कंपावी दे छे.
पावैया (नपुंसक) लश्करनो वेश पहेरीने लडाईमां उभा न रही शके, एम जेणे आत्मबळ (–वीर्य)
ने पुण्यपापमां धर्म मानीने जोडयुं ते आत्महितना कार्यमां नालायक छे, असमर्थ छे. पुण्य जोईए; प्रथम
शुभरागरूप व्यवहार जोईए, निमित्त जोईए एम पराश्रयनी श्रद्धा करनार वीर्यहीन नपुंसक छे. अनादिरुढ
व्यवहारमां विमुढ छे तेथी तेओ प्रौढ विवेकवाळा निश्चयमां अनारूढ छे–अर्थात् आत्महितरूप स्वकार्यमां
आळसु थई ऊंधे छे.
जेओ वीतरागभावथी ज धर्म थाय ए श्रद्धा छोडी पुन्यमां, दया, दान, पूजाना शुभरागमां खरेखर
धर्म माने छे ते चैतन्यनी जागृति रहित होवाथी वीर्यहीन नपुंसक छे.
चैतन्यस्वभावनुं आलंबन ते धर्म छे, धर्मनुं कारण छे, नीचे व्रत, तपादि, दान, पूजा, भक्ति आदि
शुभभाव होय छे पण ते पराश्रयरूप राग छे, बंधनुं ज कारण छे–स्वयं बंधभाव छे, तेने कंथचित
व्यवहारथी, मोक्षमार्ग कह्यो होय त्यां एम समजवुं के एम नथी. केमके ते