: १२ : आत्मधर्म : २४८८
मलीन भाव आस्रवतत्त्व छे. तेने जे धर्म माने–मनावे ते हिंसा करनार मिथ्याद्रष्टि छे, अधर्मी छे, रागने
धर्म मनावनारा जैनशासनना लुंटारा–डाकु छे.
श्री टोडरमलजीए पूर्वाचार्योना कथनना आधारे निश्चयव्यवहारनुं स्वरूप जेम छे तेम स्पष्ट करेल छे.
श्री कुन्दकुन्दाचार्य तथा श्री अमृतचंद्राचार्ये पण एम ज कह्युं छे. व्यवहारनय अभूतार्थदर्शी छे.
शुद्धनय भूतार्थदर्शी छे. भूतार्थनो आश्रय करनार सम्यग्द्रष्टि छे.
व्यवहारनयनो विषय ज्यां जेम होय तेम जाणवा योग्य छे पण मोक्षमार्ग माटे व्यवहारनय आश्रय
करवा योग्य नथी.
आ वाततो जेने संसार दावानळ जेवो लाग्यो होय, जन्म जरा मरणना अंत करवा होय, तेने माटे छे.
प्रश्न:– शुभ रागथी कल्याण थतुं नथी छतां धर्मात्मा भक्ति पूजा दया दान व्रतादि केम करे छे?
उत्तर:– श्रद्धामां तेने कर्तव्य मानता नथी छतां अशुभथी बचवा शुभ आवे छे. ईन्द्रो पण
भगवाननी भक्ति करे छे. शुभभावना काळे एवोराग होय छे; पण एवो राग होय छे माटे शरीरनी क्रिया
थाय छे एम नथी. “ हे नाथ? तारी भक्तिथी मुक्ति मळी जशे” एटले के एम नथी पण ए जातनो राग
वच्चे आवे छे तेने वीतरागताना बळवडे तोडीने तमारा जेवो पूर्ण वीतराग थवानो छुं, प्रथमथी ज रागनो
अभाव करवानी श्रद्धा छे, तो तेना शुभरागने उपचारथी परंपरा मुक्तिनुं कारण कहे छे पण ते कहेवा मात्र
छे. खरेखर ते कारण नथी. एम निर्णय करवो जोईए.
महा मंगळ परिवर्तन दिने अपरिवर्तनशील ज्ञायक स्वभावनो अने मोक्षमार्गनो अफर आदर
करवाथी अने पंच परावर्तन रूप संसारनो अभाव करनार श्री सद्गुरुदेवनो जय हो.
जगतना जीवने भवमां
भ्रमण अने दुःख केम छे?
व्यवहारिक धंधे फस्या, बहुधा जगना जीव,
आत्महितनी शुद्धि नहीं, तेथी भमे सदैव.
(योगीन्द्रदेव)
जेओ आत्मस्वरूपना ज्ञानथी रहित छे, सर्वज्ञ कथित पदार्थनुं
विपरीत श्रद्धान करवावाळा छे, हित–अहितना विवेकथी रहित अने
देहादि–रागादिमां एकताबुद्धिरूप मोहथी मोही छे तेओ संसारनो
व्यवहार के जे आधि (मानसिक पीडा) व्याधि (रोग, वृद्धत्व,
जन्ममरणादिनी चिंता) अने उपाधि (बाह्य परपदार्थना संयोगवियोग
तेनी चिंता) रूप छे ते अज्ञानमय व्यवहारमां फसाया करे छे. परमां
कर्तापणारूप मिथ्या अभिप्रायवडे परथी भलुं बुरूं थवुं माने छे, परने
ईष्ट–अनिष्टरूपे देखे छे. एम मोहवशे खेदखिन्न थतो रहे छे.
पोताना असली स्वरूपने भूली जवुं अने परने पोतानुं मानवुं
एवा मोहथी ज जगतना अज्ञानी जीवो दुःखी छे.