अशाड : २२प : १३ :
आ त्म हि त नी क था
निर्मळ
भेदज्ञान
(जे कोई सिद्धने पाम्या ते भेदविज्ञानथी ज पाम्या छे.)
(निर्जरा अधिकार गाथा २२८ उपर
पू. गुरुदेवनुं प्रवचन....ता. १प–४–६२ चैत्र सुदी १०)
आत्मा अने मिथ्यात्वादि आस्रवोना भेदनुं ज्ञान थतां अखंडज्ञानस्वभावमां अभेदबुद्धि थाय छे
अने मिथ्यात्वरागादि मलिनभावरूप आस्रवभावनो क्रमे क्रमे अभाव थाय ज छे. शुभाशुभ आस्रवभाव
मलिन छे, तेनाथी विरोधी संवरभाव शुद्ध छे. तेनुं फळ निर्जरा अने मोक्ष छे. संवर निर्जरा साथे ज होय छे.
भेदज्ञानमां अंशे विभावथी मुक्तिरूपदशा चोथा गुणस्थानथी शरू थाय छे.
आत्मा सदाय देह–मन–वाणीथी भिन्न ज्ञानस्वभावी छे. क्षणिक विकार अने देहादि संयोग आत्माथी
भिन्न छे आत्मा तेनाथी अत्यंत अभावरूपे छे–त्रणे काळ भिन्न छे. राग–द्वेष–मोहरूप वर्तमान क्षणिक दशा ते
मलिनभाव छे, आस्रवतत्त्व छे ते आत्मा (जीवतत्त्व) नथी.
आत्माने तेना कायमी स्वस्वरूपनी द्रष्टिथी देखवो ते साची द्रष्टि छे. आत्मा अनंत परपदार्थनी
क्रियाथी जुदो, अनंत अन्यत्व स्वरूप छे. पुण्य, पाप अने मिथ्यात्वरूप अनंत विभाव क्रियाथी पृथक्,
पराश्रय विनानो, त्रिकाळ अविकार ज्ञानमय आत्माने जोवो एटले के आ हुं छुं, एम निर्विकल्प श्रद्धावडे
तेनो आश्रय करवो तेनुं नाम भेदज्ञान छे.
संवर अधिकारमां, भेद विज्ञानतः सिद्धाः सिद्धाः ये किल केचन। यस्य एव अभावतो बद्धाः
बद्धाये किल केचन।।
अर्थात्–अनादिकाळथी अत्यार सुधी जे कोई सिद्धपदने पाम्या छे ए बधा भेदज्ञानथी पाम्या छे.
अने संसार दुःखमां जे कोई रखडया छे, रखडे छे, अने रखडशे ते बधाय भेदज्ञानना अभावथी ज–एम
समजवुं. अनंत अनंत पदार्थ अने तेना कार्यथी हुं जुदो छुं, तेनो कर्ता–प्रेरक हुं नथी. शुभाशुभभाव आस्रव
छे, मलिनतारूप होय छे; ते आत्मा नथी. केमके ते क्षणिक दोष जेटलो ने जेवडो आत्मा नथी. अने ते भावो
आत्माना नथी. स्वभावमां संयोग अने विकारनो अत्यंत अभाव छे. एवुं अनुभव सहितनुं भेदज्ञान कदी
कर्युं नथी. अर्थात् तेना अभावना कारणे एकेन्द्रियथी मांडीने पंचेन्द्रिय–निगोदथी मांडीने नवगै्रवेयिक सुधीना
अनंताभव आ संसारी जीवे अनंतवार कर्या छे. पोताने भूली जवो ने परने पोतानुं मानवुं ते मिथ्यात्व ज
मोटामां मोटो अपराध छे अने ते वडे ज जीव दुःखने भोगवे छे.
जे अविनाशी परमानंदमय सिद्धिपदने पाम्या छे