पछाडया छे. ए मिथ्यात्वने सम्यग्दर्शनरूपी संवर जीते छे. एमां विशेष शुद्धिरूप निर्जरा फेलाय छे.
निर्जराना त्रण प्रकार छे. (१) अंशे शुद्धिनी वृद्धिरूपभाव, (२) अंशे अशुद्धिनी हानि, अने (३) जड
कर्मोनी अंशे हानि.
अधिकपणे वर्ते ते ज्ञानी छे. कर्मनुं जोर होय ते आत्मामां न वर्ती शके एवुं कोई काळे बनतुं नथी, पण
अज्ञान वडे आ जीव ज ऊंधी मान्यता कर्या करे छे. राग, द्वेष, पुण्य, पाप मारां अने हुं एनो कर्ता, एम
आस्रवनी भावनारूप अपराध जीव पोते ज करे छे. एकेन्द्रिय निगोद दशामां पण जीव पोताना दोषथी रखडे
छे. गोम्मटसार शास्त्रमां लख्युं छे के “भाव कलंक सुप्रचुरा निगोद वासं न मुंचति” त्यां पोताना मलिन
भावोनी उग्रताथी निगोदस्थानने जीव छोडतो नथी. एम कह्युं छे. कोई एम माने छे के असंज्ञी पंचेन्द्रिय
सुधीना जीवने जडकर्मनुं जोर छे. त्यां स्वतंत्र नथी, पुरुषार्थ नथी. तो ए वात त्रणे काळे जूठ छे.
विरुद्ध जाति छे–तेम नहि मानतां तेमां एकत्वबुद्धि करवी, पराश्रयथी लाभ मानवो ए संसारमां रखडवानुं
कारण छे, कोई बीजाए रखडाव्यो छे एम नथी.
छे. सर्वत्र हितनो उपाय एक ज प्रकारे छे. हितनुं कारण पोते ज छे. अहितनुं अर्थात् रखडवानुं कारण पोते
ज छे. कांई जडकर्म अने कुगुरुथी रखडयो एम नथी.
अने रागादि परभावो परपणे–विरुद्धपणे जणाय छे.
शब्दोनी धारणा राखी माने के अमने साचुं ज्ञान छे तो ते भ्रम छे. (युक्ति–नय–प्रमाणद्वारा)
पोतामां एकमेक वर्ते छे. पुण्य–पाप, व्रत–अव्रतना भाव बधा आस्रवतत्त्व छे, चैतन्य तेनाथी भिन्न छे.
वर्तमान भूमिकाना (दशाना) प्रमाणमां भिन्न भिन्न विकल्प आवे छे ते रूपे थनारो हुं नथी, पण तेने
जाणनार हुं छुं, स्वाश्रये वर्ततुं ज्ञान सर्व रागादिथी अधिक छे अने स्वभावमां अभेदता–एकताने अभिनंदे
छे.
तेना ज्ञानमां त्रणकाळ–त्रणलोकवर्ती समस्त द्रव्य–गुणपर्याय एक साथे अत्यंत स्पष्टपणे जणाय छे, एवो
आत्मा अत्यारे पण पोताना सकल व्यक्त स्वभाव सहित छे. आनो निर्णय करवामां क्रमबद्ध पर्यायनुं ज्ञान
अने ज्ञातापणानो साचो पुरुषार्थ आवे ज