छे. सर्वज्ञ भगवानना ज्ञानमां बधुं वस्तु तरीके अने पर्याय तरीके सकल व्यक्त छे. सर्वज्ञ भगवाने
जेवुं जोयुं तेवुं विश्व (छ द्रव्य स्वरूप छे ते) क्रमसर दरेक द्रव्यनी पर्यायमां व्यक्त थाय छे. भेदज्ञानीने
सकलप्रत्यक्ष केवलज्ञाननी प्रतीति वर्ते छे. जेनी जे काळे जे अवस्था थवानी छे ते सर्वज्ञना ज्ञानमां
अने तेमां क्रममां नियतपणे थाय छे. एवो जेने पोताना सर्वज्ञ स्वभावना आलंबनथी निर्णय थाय छे
तेने ज परथी विभक्त अने स्वथी एकत्व आत्मानी स्पष्ट प्रतीति अने भेदज्ञान थाय छे.
ज्यारे पुण्यपापना विकल्पथी पार, समस्त रागादिनो अकर्ता त्रिकाळी ज्ञायक छुं, तेमां ढळीने
स्वभावमां ज एकता बुद्धि थाय. सर्वज्ञनी सत्तानो अंतरमां निश्चय थाय त्यारे ज संयोग अने
विकारमांथी कर्तृत्व–ममत्व छूटी क्रमबद्ध पर्यायनो निर्णय थाय छे. अने मारो शाश्वत चैतन्य स्वभाव ज
निर्मळ पर्यायनो आधार छे. तेनी अपेक्षाए थाय छे. आवुं जाणतो ज्ञानी परनो कर्ता थतो नथी, पण
ज्ञाता ज रहे छे.
नथी. परनी व्यवस्था राखुं, फेरफार करुं, आम बोलुं, आम न बोलुं, ए मान्यतामां ज परना
कर्तापणानुं अभिमान छे. ते अभिमान सर्वज्ञस्वभावने स्वीकारे तो ज टळे. सर्वज्ञनुं स्वरूप अने
त्रिकाळवर्ती पदार्थनुं स्वरूप जाणे तो दरेकनी क्रमबद्ध पर्याय छे. एम समजे, कोई कोईनो कर्ता नथी,
सहु पोताना परिणामोरूपे थनार होवाथी पोताना परिणामोना ज कर्ता छे. एम माननारने परनुं
अकर्तापणुं, रागनुं अकर्तापणुं अने ज्ञाता स्वभावमां एकता बुद्धि पूर्वक सम्यक्भेदज्ञान थाय छे.
ज होई शके, नीचली भूमिकामां शुभाशुभभाव ज्ञानीने पण होय छतां तेने हुं अनुसरनारो नथी. एम
ते माने छे. प्रथम श्रद्धामांथी विकार अने संयोगनुं कर्तृत्व–स्वामीत्व सर्वथा टळे ज छे. पछी स्वपर
प्रकाशक ज्ञान चारित्रना दोषने हेयपणे जाणे छे. पण शुभरागने हितरूप जाणतो नथी. शुभ व्यवहारना
आश्रयथी हळवे हळवे कल्याण थशे एम ज्ञानी मानतो नथी. मोक्षमार्ग तो वीतरागभाव छे. तेने
शुभरागरूप व्यवहार मददगार छे, एम माने तेने भेदज्ञान नथी. अने भेदज्ञान विना जैन नाम
धरावी साधु थाय, शास्त्र भणे तो पण आत्म कल्याण नथी.
मेळवुं, रक्षण करुं, टाळुं; शुभराग धर्ममां मदद करे छे; शरीरनी क्रिया व्यवहारनयथी हुं करी शकुं छुं,
एम जेने परमां कर्तृत्व–ममत्व छे तेओ भले द्रव्यलिंगी मुनि होय तो पण अनंतभवमां भ्रमण करे
एवो संसारतत्त्व छे.
हजारोवार छठ्ठा–सातमां गुणस्थानमां झूलता होय छे, अतीन्द्रिय आनंदमां मोज करतां होय छे. एवा
मुनिने क्रोडवार वंदन–नमस्कार करीने मानीए छीए. प्रवचनसारजीमां एवा साधुने मोक्षतत्त्व कहेल
छे. “साधु हुवा तो सिद्ध हुवा.” अहो! चार ज्ञानना धारक श्री गणधरदेव, धर्मना वजीर छे. तेओ पण
नमस्कार मंत्र बोलती वेळा