Atmadharma magazine - Ank 225
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : २२प
जैनमतानुयायि
मिथ्याद्रष्टिनुं
स्वरूप
(मोक्षमार्ग प्रकाशक आ० ७
उपर पू. गुरुदेवना प्रवचन)
ज्ञानीने ज साची भक्ति होय छे
सर्वज्ञदेव, निर्ग्रंथ गुरु अने शास्त्रनी भक्तिने धर्मी बाह्य निमित्त माने छे, मारुं स्वरूप रागरहित–
एवा स्वरूपमां केलि करवी ते मोक्षमार्ग छे. अज्ञानी बाह्य क्रियाकांड ने तथा पुण्यथी धर्म माने छे. संप्रदायमां
जन्मवाथी जैन थवातुं नथी, पण गुणथी जैन थवाय छे. जैन मोह–राग–द्वेषने जीतवावाळो छे. धर्मी जीव
भक्तिना रागने उपादेय मानतो नथी, पण हेय माने छे. राग ते हितकर्ता नथी. त्रिलोकनाथनी भक्ति पण
हेय छे. अशुभथी बचवा शुभ आवे छे ते उपदेशनुं कथन छे ज्ञानी शुभरागने हेय समजे छे तेवा
धर्मीजीवना निश्चय ने व्यवहार बंने साचा छे. आत्मानुं भान थयुं होय ने सिद्धसमान अंशे आनंदनो
अनुभव करता होय ते अविरति सम्यग्द्रष्टि छे. छठ्ठा गुणस्थानवाळा मुनिनी वात तो अलौकिक छे. तेओ
अंतर आनंदमां झूले छे. घडीमां देहथी आत्मानो गोळो छूटो पडी जाय छे, एवी तेमनी दशा होय छे. अहीं
सम्यग्दर्शननी वात छे. सम्यग्द्रष्टि जीव रागने उपादेय मानतो नथी. साचो जैन भक्तिना परिणाम छोडी
शुद्धमां रहेवानो प्रयत्न करे छे. शुद्धमां न रही शके तो शुभ करे छे. शुभने हेय माने छे. छतां आव्या विना
रहे नहीं.
भगवाननी भक्तिथी मोक्ष थशे एम माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. भगवाननी भक्तिमां ज तल्लीन
थाय छे पण पोताना ज्ञानस्वभावने ध्येय करतो नथी, तेने मोक्ष थतो नथी. अज्ञानी जीवने भक्तिमां अति
अनुराग छे. भगवानने कहे छे के ‘हे प्रभु! हवे तो तारो!’ एनो अर्थ एम थयो के अत्यार सुधी भगवाने
डुबाडया ने भगवानने हजी सुधी तारतां आवडयुं नहि; पण ते वात मिथ्या छे. पोताना कारणे जीव रखडे छे
ने तरे छे. भक्तिने लीधे मोक्ष माने तो अन्यमतिनी जेवी द्रष्टि थई. आत्मानुं भान थयुं छे एवा जीवने
शुभरागनो व्यय थई शुद्धदशा थशे त्यारे मोक्ष थशे. तेथी धर्मी जीवना शुभ रागने मोक्षनुं परंपराकारण कह्युं
छे. अज्ञानी जीव भक्तिथी सम्यग्दर्शन माने छे ते भूल छे. ते भक्ति तो बंधमार्ग छे ने सम्यग्दर्शनादि
मुक्तिनो मार्ग छे. बंधमार्गने मुक्तिमार्ग मानवो ते मिथ्यात्व छे. जीवोए साचो निर्णय करवो जोईए. धर्मी
जीवने भक्तिनो शुभराग आवे छे पण तेने ते मुक्तिनुं कारण मानतो नथी. भगवाननी भक्ति राग छे,
विकार छे, पुण्य छे, उपाधि छे; तेथी बंध थाय छे. एम श्रद्धा होवा छतां एवो राग आवे छे.
पोते शुभभाव करे तो पुण्य बंधाय, पण ते मोक्षनुं कारण नथी. मुनिना आहारदान वखते शुभराग
करे तो