Atmadharma magazine - Ank 225
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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अशाड : २४८८ : २३ :
पुण्य बंधाय छे. भावलिंगी संतने निर्दोष आहार आपे तेना माटे वेचातुं न लावे, उदेशिक आहार न आपे,
नवधा भक्तिनी विधि सहित आपे तो पुण्य बंधाय छे. धर्मीनी द्रष्टि पुण्य उपर नथी छतां साचा गुरु प्रत्ये
आहारदान देवानो भक्तिभाव आवे छे.
पुण्य ने धर्म बंने भिन्न चीज छे. सात तत्त्वो छे. भगवाननी भक्ति आस्रवतत्त्व छे. संवर–निर्जरा
धर्म छे. सात तत्त्वो प्रथक छे. चिदानंद स्वभावना आश्रये जे दशा प्रगट थाय ते संवर–निर्जरा छे. आस्रवथी
संवर थतो नथी. भक्तिथी अथवा पुण्यथी धर्म माने तेने नवतत्त्वनी श्रद्धा नथी, ते अज्ञानी मिथ्याद्रष्टि छे.
अज्ञानी जीव आस्रवमां मजा माने छे. आत्मा तो सुंदर आनंदकंद छे, तेनी पर्यायमां राग द्वेषना परिणाम
थाय ते मेल छे. अशुभभाव तो मेल छे, शुभराग पण मेल छे, रागरहित अंर्तपरिणाम थवा ते धर्म छे.
धर्मी जीव भक्तिना परिणामने उपादेय मानतो नथी पण शुद्धोपयोगनो उद्यमी रहे छे.
पं. टोडरमल्लजी पंचास्तिकाय गाथा १३६ नी अमृतचंद्राचार्य नी टीकानो आधार आपे छे–
अयं हि स्थूललक्ष्यतया केवलभक्तिप्राधान्यस्याज्ञानिनो भवति। उपरितनभूमिकायामलब्धास्पदस्या–
स्थानरागनिषेधार्थ तीव्ररागज्वरविनोदार्थ वा कदाचिज्ज्ञानिनोऽपि भवतीति।
अर्थ:– आ भक्ति, केवळ भक्ति ज छे प्रधान जेने एवा अज्ञानी जीवोने ज होय छे, तथा तीव्र
रागज्वर मटाडवा अर्थे वा अस्थाननो राग निषेधवा अर्थे कदाचित् ज्ञानीने पण होय छे.
भक्तिथी कल्याण थशे एवी मान्यतासहित भक्ति अज्ञानी जीवोने ज होय छे. ज्ञानीने तीव्र
अशुभराग मटाडवा भक्तिनो शुभराग आवे छे; छतां शुभरागने ते हेय समजे छे.
ज्ञानी अने अज्ञानीनी भक्तिमां विशेषता
प्रश्न:–
जो एम छे तो ज्ञानी करतां अज्ञानीने भक्तिनी विशेषता थती हशे?
उतर:– जेने सम्यग्दर्शन थयुं छे, जे पुण्य–पापने हेय समजे छे, देहादिनी क्रियाने ज्ञेय समजे छे,
चिदानंद स्वभावने उपादेय समजे छे एवा धर्मी जीवने साची भक्ति होय छे. मिथ्याद्रष्टि जीव भक्तिने
मुक्तिनुं कारण माने छे; तेथी तेना श्रद्धानमां अति अनुराग छे. भगवाननी भक्तिथी सम्यग्दर्शन थशे ने
मुक्ति थशे–एम ते माने छे. सम्यग्दर्शन अरागी पर्याय छे. रागनी पर्यायमांथी अरागी पर्याय आवशे?–ना.
तेनो निश्चय खोटो छे माटे व्यवहार पण खोटो छे. अज्ञानी जीव भक्तिमां अति अनुराग करे छे, भक्ति
करतां करतां कोईवार कल्याण थई जशे एम ते माने छे. राग करतां करतां सम्यग्दर्शन थतुं नथी. सर्व
प्रकारना रागने हेय समजी, आत्माने उपादेय माने तो सम्यग्दर्शन थाय छे. श्रुतज्ञान प्रमाण थया पछी
निश्चय ने व्यवहार एवा बे नयो होय छे. निश्चयनुं भान नथी तेने व्यवहारभासी मिथ्याद्रष्टि कहे छे.
धर्मी जीव श्रद्धानमां भगवाननी भक्तिने बंधनुं कारण माने छे तेथी तेने अंतरमां अज्ञानीना जेवो
भक्तिमां अनुराग आवतो नथी. हवे ब्राह्यमां कदाचित् ज्ञानीने घणो अनुराग होय छे. नंदीश्वर द्वीपमां
शाश्वत प्रतिमा छे, त्यां ईन्द्रो नाची ऊठे छे. तेओ एकावतारी छे. निश्चयभक्ति सहित भगवाननी भक्ति करे
छे, ज्ञानानंद स्वभावनी द्रष्टि छूटती नथी; छतां राग आवे छे त्यारे भक्ति करे छे–बाह्यमां घणी भक्ति करता
देखाय. रामचंद्रजीए महान उत्सवपूर्वक शांतिनाथभगवाननी भक्ति करेल हती. जडनी क्रिया आत्मानी
ईच्छाथी थती नथी. अज्ञानीने पण एवो अनुराग होय छे पण ते भक्तिने मुक्तिनुं कारण माने छे.
अज्ञानीनी गुरुभक्ति
जे जीव आज्ञानुसारी छे, तेओ आ जैनना साधु छे ते अमारा गुरु छे, माटे तेमनी भक्ति करवी–
एम विचारी तेमनी भक्ति करे छे, पण गुरुनी परीक्षा करतो नथी. जैनमां जन्म्या माटे देखादेखीथी गुरुनी
भक्ति करे छे. अन्यमतवाळा पण पोताना संप्रदायना गुरुने माने छे. कुळना हिसाबे गुरुने माने तेने सत्य
असत्यनो विवेक नथी.