: २४ : आत्मधर्म : २२प
हवे कोई परीक्षा करे छे के आ मुनि दया पाळे छे. तेमना माटे बनावेल आहार तेओ लेता नथी; तो ते
साची परीक्षा नथी. उदेशिक आहारमां छ कायनी हिंसा थाय छे एम मानी ते न ले तो ते कांई मुनिनुं साचुं
लक्षण नथी. अन्यमतमां पण दया पाळे छे; तो दया लक्षणमां अतिव्याप्ति दोष आवे छे. अव्याप्ति,
अतिव्याप्ति ने असंभव–ए त्रण दोषरहित लक्षण द्वारा गुरुने ओळखवा जोईए. जे दया पाळता नथी, जे
उदेशिक आहार ले छे तेनी तो वात नथी, पण बाह्यथी दया पाळवी ते पण साचुं लक्षण नथी रागरहित
आत्माना भान विना बधुं व्यर्थ छे.
मुनिने परिणाम आवे छे पण दयाथी पर जीव बचतो नथी. संप्रदायनी रूढी मुजब दयाना लक्षणथी
गुरु माने तो ते बराबर नथी. जेओ उदेशिक आहार ले छे तेनो तो व्यवहार पण साचो नथी, पण जे
बाह्यथी दया ने ब्रह्मचर्यादि पाळे छे तेनी वात छे बाह्य ब्रह्मचर्यथी मुनिनुं लक्षण माने तो अतिव्याप्ति दोष
आवे छे. अन्यमतवाळा पण बाह्यब्रह्मचर्य पाळे छे, माटे ते साचुं लक्षण नथी. जेने ज्ञाताद्रष्टानुं भान छे
उपरान्त वितरागता प्रगटी छे. ने जे २८ मूळगुणनुं पालन करे छे ते मुनि छे. एषणासमितिमां दोष लगावे
तो २८ मूळगुणमां दोष छे.
मुनिव्रतधार अनंत बार ग्रीवक उपजायो।
पै निज आतमज्ञान विना खुल लेश न पायो।।
मुनिव्रत अनंतवार धारण कर्यां पण आत्मभान विना सुख पाम्यो नहि. माटे बाह्य शुभभावथी
गुरुनी परीक्षा करे तो ते साची परीक्षा नथी.
व्यवहार समिति ते आस्रव छे, तेमां आत्माने धर्म नथी. निश्चय समिति ने व्यवहार समिति, निश्चय
गुप्ति अने व्यवहार गुप्ति एम बे प्रकार छे. शुद्ध स्वभावमां लीनता ए ज निश्चय गुप्ति छे ने ए ज
निश्चय समिति छे. आत्मामां लीन न होय त्यारे जे शुभराग आवे ने अशुभथी बचे, ते व्यवहार गुप्ति छे;
ने शुभमां प्रवृत्ति होय ते व्यवहार समिति छे.
गुरुनुं स्वरूप समज्या विना गुरु मानवा ते अज्ञान छे
जैन संप्रदायमां जन्मीने केटलाक जीवो आज्ञानुंसारी होय छे पण परीक्षा विना तथा अंतर्मुख ढळ्या
विना सम्यग्द्रष्टि थवातुं नथी.
जैन शास्त्रमां जेवुं गुरुनुं स्वरूप कह्युं छे तेवुं समजीने मानतो नथी. पण आ अमारा गुरु छे, माटे
अमारे तेमनी भक्ति करवी एम माने छे तेने साधुना स्वरूपनी खबर नथी. आत्मभान थया पछी मुनिदशामां
पण तेने योग्य व्यवहार आवे छे. व्यवहार आवतो ज नथी–एम माने तो मिथ्याद्रष्टि छे. कोई परीक्षा करे छे तो
बाह्यमां नग्न छे ‘आ मुनि महाव्रतादि पाळे छे दया पाळे छे’ एम मानी तेनी भक्ति करे छे.
मुनि ४६ दोष रहित आहार ले छे, २८ मूळगुणमां जे समिति छे ते पण आस्रव छे. निर्विकल्प
आनंद दशामां लीन थवुं ते निश्चय समिति छे. साचा भावलिंगी मुनिना महाव्रत तथा समिति ते पण
आस्रव छे पोता माटे बनावेल आहार पाणी मुनि ले नहि. एवो नहि लेवानो भाव ते शुभभाव छे पण
तेना आधारे धर्म नथी. मुनिने निश्चय ने व्यवहार बन्ने होय छे. पण श्रावकने व्यवहार होय छे ने मुनिने
निश्चय होय छे–एम नथी. देह, मन, वाणीथी रहित अने रागथी पण रहित आत्मामां निर्विकल्प अनुभव
सहित प्रतीति थवी ते सम्यग्दर्शन छे, ते निश्चय छे आत्मामां जेटला अंशे लीनता रहेवी ते पण निश्चय ने
जे जे राग आवे छे ते व्यवहार छे. बन्नेनुं ज्ञान होवुं जोईए. अज्ञानी जीव दया पाळवाना परिणामथी ने
निर्दोष आहारथी मुनिपणानी परीक्षा करे छे, पण ते बराबर नथी. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकता ते
मुनिपणुं छे. मात्र बहारथी परीक्षा करवी ते यथार्थ नथी. परीक्षा विना मानवुं ते अज्ञान छे. निश्चय ते
व्यवहारना भाव विना सम्यग्दर्शन नथी, सम्यग्दर्शन विना सम्यग्ज्ञान नथी, सम्यग्दर्शन–ज्ञान विना
चारित्र ने ध्यान नथी, ध्यान विना केवळज्ञान नथी.
तीर्थंकरदेव कहे छे के परीक्षा कर्या विना मानवुं ते मिथ्यापणुं छे. अहीं साचा मुनिनी वात छे.
भावलिंगी मुनिने निर्दोष आहार लेवानो विकल्प ऊठे छे ते चारित्रनो दोष छे, आस्रव छे. शुद्ध आहार नहीं
होवा छतां शुद्ध