Atmadharma magazine - Ank 225
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १९ अंक ९) तंत्री जगजीवन बाउचंद दोशी (अषाढ: २४८८
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शुद्ध चैतन्यप्रकाशनो महिमा
ते परमज्योति सर्वोत्कृष्ट शुद्ध चेतना प्रकाश जयवंत वर्ते
छे. जे शुद्ध चेतना प्रकाशमां बधाय जीवादिक पदार्थोनी पंक्ति
प्रतिबिम्बित थाय छे. केवी रीते? के पोतानां समस्त अनंत
पर्यायो सहित प्रतिबिम्बित थाय छे. भावार्थ–शुद्ध
चैतन्यप्रकाशनो कोईएवो ज महिमा छे के जेमां जेटला पदार्थो
छे ते बधाय पोताना आकार सहित प्रतिभासे छे.
जेम दर्पणनां उपरना भागमां घट पटादिक प्रतिबिम्बित
थाय छे. दर्पणना द्रष्टांतनुं प्रयोजन एम जाणवुं के दर्पणने
एवी ईच्छा नथी के हुं ए पदार्थोने प्रतिबिम्बित करुं, जेम
लोढानी सोय चुंबक पाषाण पासे स्वयमेव जाय छे तेम दर्पण
पोताना स्वरूपने छोडी तेमने प्रतिबिम्बित करवा माटे पदार्थो
पासे जतुं नथी तथा ते पदार्थो पण पोतानुं स्वरूप छोडी ते
दर्पणमां पेसता नथी. अने जेम कोई पुरूष कोईने कहे के
अमारूं आ काम करो ज करो तेम ते पदार्थ पोताना
प्रतिबिम्बित थवा माटे दर्पणने प्रार्थना पण करतो नथी, सहज
एवो ज संबंध छे के जेवो ते पदार्थनो आकार छे ते ज
आकाररूप थईने ते दर्पणमां प्रतिबिम्बित थाय छे.
प्रतिबिम्बित थतां दर्पण एम न माने के आ पदार्थ मने भलो
छे, उपकारी छे, राग करवा लायक छे. दर्पणने सर्व पदार्थोमां
समानता होय छे.
दर्पणमां केटलाक घट पटादिक पदार्थ प्रतिबिम्बित थाय छे
पण ज्ञानदर्पणमां समस्त जीवादिक प्रतिबिम्बित थाय छे, पण
एवुं कोई द्रव्य अथवा पर्याय नथी के जे ज्ञानमां न आवे.
एवो शुद्ध चैतन्यप्रकाशनो सर्वोत्कृष्ट महिमा छे अने ते ज
स्तुति करवा योग्य छे. (श्री अमृतचंद्राचार्य विरचित पुरूषार्थ
सिद्धि उपायनी स्व. पं. टोडरमल्लजीकृत टीका मांथी)