Atmadharma magazine - Ank 225
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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शुद्धात्माना आश्रये ज मोक्षमार्ग;
निश्चयव्यवहारनी मर्यादा
मोक्षमार्ग प्रकाशक अ० ७ पृ–२प७ उपर पू० गुरुदेवनुं
प्रवचन वीर सं–२४८८ चैत्र सुदी–१३ महावीर जयंति
(मोक्षमार्ग तो वीतराग भाव छे. ते शुद्ध
निश्चयनयना विषयभूत त्रिकाळीपूर्ण ज्ञानघन
ज्ञायक स्वभावनो आश्रय करवाथी प्रगटे छे.
संयोग, शुभराग, व्यवहार–भेदना आश्रये कोईने
मोक्षमार्ग प्रगटे नही. आ नियमने जेओ मानता
नथी तेने निमित्ताधिन द्रष्टि होवाथी संयोग अने
विकार (शुभराग) पण आत्माना हितमाटे
कार्यकारी छे; बेउ नय समकक्षी छे; उपादेय छे एम
तेओ माने छे तेथी तेओ कदि पण वीतरागनी
आज्ञा मानता नथी, मोक्षमार्ग शुं छे, नव तत्त्वोना
भिन्न लक्षण शुं छे केम छे ते जाणता ज नथी.)
निश्चयनय अने व्यवहारनय ए बे नयोना अर्थमां केम भूल्या छे? जैन मतमां रहीने पण, शास्त्रना
अर्थ नहीं समजवाथी केम भूल्या छे तेनुं वर्णन चाले छे.
निमित्त नैमित्तिकनो यथायोग्य मेळ गुणस्थानक अनुसार होय छे. त्यां ज्ञानीजीवने स्वद्रव्यनुं
आलंबन जेटलुं वधारे छे तेटलो राग अने रागनुं निमित्त मटे छे. त्यां निमित्तनुं आलंबन छोडवानी
अपेक्षाए भूमिकानुसार आणे आनो त्याग कर्यो एम व्यवहारथी कथन आवे. गुणस्थान मुजब उपादान
कार्य परिणत थाय त्यां केवुं निमित्त अने केवो राग होय ते बताववा निमित्तनुं कथन आवे छे. शास्त्रमां
ज्यां शुभराग व्यवहार रत्नत्रयनुं स्वरूप बताववा माटे तेने निमित्त गणीने उपचारथी–व्यवहारथी
मोक्षमार्गपणे निरूपण करवामां आवे छे त्यां तेने ज मोक्षमार्ग न मानी लेवो कारण के ते तो बंधना
कारणरूप आस्रवभाव छे.