Atmadharma magazine - Ank 225
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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अशाड : २४८८ : प :
आत्मा तो सदाय अतीन्द्रिय ज्ञानमय छे छता तेने मूर्तिक कहेवो; परनो कर्ता, हर्ता के स्वामी कहेवो ते स्थूळ
व्यवहारनयनुं कथन छे. कोई जीव परनो कर्ता, प्रेरक के स्वामी थई शकतो नथी पण एवो विकल्प–रागभाव
करे छे. ते विकल्पनो पण ज्ञानी स्वामी थतो नथी, कोईपण प्रकारनो राग करवा जेवो माने नहि, परवडे,
जडकर्म वडे रागद्वेष सुखदुःख थवानुं माने नहीं. निमित्त नैमित्तिकनो मेळ बताववा शास्त्रमां व्यवहारना
कथन घणा आवे छे. जोईने चालवुं–ऊठवुं–बेसवुं, आम लेवुं मुकवुं वगेरे, रात्री आहार पाणी छोडुं एम
राग आवे खरो, पण खरेखर आत्मा परनी क्रियाने करी शकतो नथी. अज्ञानथी बे द्रव्यमां एकताबुद्धि
वाळो माने छे के में वनस्पति खावी छोडी छे, में आजे आहार छोडयो, अमुक द्रव्यनो त्याग कर्यो, एम
त्यागनुं अभिमान करे छे. हुं आहार लई शकुं–छोडी शकुं, हाथ ऊंचे उठावी शकुं छुं, हुं परवस्तुने मेळवी शकुं
छोडी शकुं ए मान्यता मिथ्याद्रष्टिनी छे.
आत्मा सदाय पोताना भावनो कर्ता–हर्ता छे. पण आहार पाणी आदि पर द्रव्यना ग्रहण त्यागनुं
कार्य परनुं कार्य छे तेने करवानुं सामर्थ्य कोई आत्मामां नथी.
प्रश्न:– तो ज्ञानी आ बधा कार्यो केम करे छे?
उत्तर:– संयोगने देखनार बे द्रव्यनी एकता बुद्धिथी एम माने छे पण तेनो ए मिथ्या प्रतिभास छे.
तेना विकल्प व्यवहारथी एम बोलाय के आणे आनुं कर्युं पण खरेखर एम नथी. केमके जीव तो शरीरथी
तद्न जुदा स्वरूपे छे.
जीव पोतानां ज्ञानरूपे होवाथी पोताना भावने ज करी शके छे. अमुक दशामां राग मंद पडे छे, ज्यां
सुदेवादिना आलंबनरूप राग होय छे त्यां कुदेव–कुशास्त्र–कुगुरु आदिना आलंबननो त्याग थई जाय छे,
अमुक आहार न लउं, आनो त्याग करूं ए प्रकारे चरणानुयोग शास्त्रना कथन छे अने एवो राग ज्ञानीने
पण आवे छतां खरेखर ते मोक्षमार्ग नथी पण बंधमार्ग छे.
कोई निमित्तने लावी छोडी शके एवी ताकात आत्मामां नथी छतां व्यवहारथी एम बोलाय छे–ते
कहेवा मात्र छे, आवो राग लावुं अने छोडुं ए पण व्यवहारनुं कथन छे. जो रागनुं ग्रहण–त्याग आत्मामां
(त्रिकाळी स्वभावमां) होय तो ते कदि छूटी शके नहि, पण ते पराश्रयवडे थतो क्षणिक अने विशुद्धभाव
होवाथी स्वाश्रय वडे छूटी जाय छे माटे रागादि आत्मानो स्वभाव नथी. जे स्वभावमां नथी ते पोताना
हितमां मोक्षमार्गमां मदद केम करे?
बहु मुदनी वात आवी छे. आजे महावीर भगवाननी जन्म कल्याणक जयंतिनो दिवस छे. जन्म
जयंति तो साधारण प्राणीनी पण उजवाय छे पण तीर्थंकरभगवानना जन्म कल्याणक प्रसंगे ईन्द्रो आवीने
महोत्सव उजवे छे. सम्यग्दर्शन प्राप्त कर्युं त्यारथी ज्ञायक स्वभावनी वीरता प्रगट थाय छे. सर्वज्ञ भगवान
क्षुधा तृषादि १८ दोष रहित होय छे, सर्वज्ञ दशा प्राप्त थतां तीर्थंकरने तो वाणीनो योग होय छे. पात्र जीवने
आत्म स्वभाव तरफ प्रेरे, वीतरागता अने ज्ञातापणुं ए ज कर्तव्य छे एम बतावे, एवा आत्माने वीर
कहेवामां आवे छे.
वीर प्रभुनो मार्ग अंदरमां छे पूर्ण स्वरूपनी रुचि महिमा वडे–मिथ्यात्व रागादिनी उत्पति थवा न दे
रागनी रुचिरूप दिनता थवा न दे एटले के ज्ञाता रहे तेमां वीर प्रभुनो मार्ग छे.
महावीर भगवाने कहेलो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप हितनो उपाय–मोक्षमार्ग छे, तेने
अनियट्टगामी एटले पाछा न फरे एवा वीर धर्मात्मा संतो अंदर आत्मतत्त्वमां एकाग्रताना बळ वडे
(मोक्षमार्गने) साधे छे. वीरप्रभुना पंथे चडेला महापुरुषार्थी अफर गामी होय छे. जे पंथे चडया ते चडया
केवळज्ञान लीध्ये छुटको एवो निःसंदेह अपूर्वमार्ग आ काळे पण स्पष्ट समजी शकाय छे. मुनि हो के गृहस्थ
हो, देव, नारकी अथवा पशुनुं शरीर होय पण हुं परनुं ग्रहण त्याग करी शकुं, परथी कोईनुं कार्य थई शके,
रागथी भलुं थई शके एवो अभिप्राय कोई ज्ञानीनो होतो नथी. शुभाशुभ राग नीचली दशामां होय पण
तेनाथी आत्मानुं हित थाय; भगवाननी भक्तिथी कल्याण थाय एम कोई ज्ञानी माने नहीं. छतां अशुभ
रागमां न जवा भक्ति वगेरेनो राग आवे खरो.