: ६ : आत्मधर्म : २४८८
में एटला द्रव्य छोडया लीलोतरी छोडी, आटली वस्तु खपे छे एनो अर्थ–ए तरफना आलंबनरूप राग
छोडयो. रागने छोडयो ए पण व्यवहार कथन छे. खरेखर तो रागद्वेषादि मलीनभावनो त्याग करवो पडतो
नथी पण वीतरागी द्रष्टि सहित जेटला अंशे स्वरूपमां स्थिरता थई तेटला रागादि उत्पन्न थता ज नथी
एवी मर्यादा छे.
हिंसादी अव्रत छोडया, व्रत ग्रहण कर्या, आटलुं मारे खपे, में स्त्री आदिनो त्याग कर्यो त्यां एम
समजवुं के ए जातना रागने त्याग क््र्यो छे अथवा मंद कर्यो छे. पण जो तेनाथी भलुं थवुं माने तो तेणे
मिथ्यात्वनुं ग्रहण कर्युं छे. शास्त्रमां परद्रव्यना ग्रहण त्यागना कथन आवे छे पण तेनो अर्थ ए छे के ए
एम नथी पण निमित्त नैमित्तिकनो एवो मेळ बताववा उपचारथी एम कहेल छे.
खरेखर जो आत्मा परद्रव्यनो कर्ता हर्ता–स्वामी होय तो जुदो न रहे. शास्त्रमां आवे के धर्मात्मा जीव
विशेष वैरागी थई नग्न थाय छे, वस्त्रादि छोडे छे तेनो अर्थ एम नथी के आत्मा परनुं ग्रहण त्याग करे छे,
अथवा ईच्छाने लीधे वस्त्रादिनो त्याग थयो पण तेनो अर्थ ए छे के महाव्रत धारण करवानी प्रगट योग्यता
आवे त्यारे आवा प्रकारना विकल्प आवे के आ छोडुं ग्रहुं पण जो कोई खरेखर एम माने के–में लुगडां
छोडया, हुं नग्न थयो, शरीरनी क्रिया व्यवहारथी करी शकाय छे. तो ते बे क्रियावादी छे, बे द्रव्यने एक
माननार मिथ्याद्रष्टि छे, जैनमतथी बाह्य छे.
में आ छोडयुं ए मान्यतामां एम आव्युं के पहेला हुं आने लई शकतो हतो, में आटला रस छोडया,
पण तुं क््यारे परनुं ग्रहणत्याग करी शकतो हतो? हा माने के में परमां कांई कर्युं अशुभ राग छोडी शुभ
राग ग्रहण कर्यो एम व्यवहारथी कथन छे. विकल्प एवो आवे के आ छोडयुं; छोडुं, लउं, पण खरेखर परनुं
कांई करी शकतो नथी केमके ईच्छा अथवा ज्ञान परनुं कांई कार्य करवामां अकिंचित्कर छे, बे द्रव्यने जुदा नही
माननारने कर्तापणानो भ्रम थाय छे.
शरीर नग्न छे, अमुक संयोग नथी, बाह्यमां ब्रह्मचर्यना शुभभाव छे माटे तेना आत्मामां वीतरागी
चारित्र छे एम नथी. शुभरागना आधारे चारित्र नथी पण आ गुणस्थानमां केवो राग होय, केवा रागनो
अभाव होय ते बताववा व्यवहारनयथी ग्रहणत्यागना कर्तापणानुं कथन होय छे पण एनो अर्थ–ए एम
नथी पण आ रीते कथन करवानी पद्धति छे एम जाणवुं तेनुं ज नाम व्यवहारनयनुं ग्रहण छे.
निश्चयनय तो जेवुं वस्तुनुं स्वरूप छे तेवुं ज निरूपण करे छे माटे सत्यार्थ छे व्यवहारनय तो एकने
बीजारूपे, अथवा कोईना कारण कार्य कोईमां मेळवीने निरूपण करे छे माटे असत्यार्थ ने कहेनार छे माटे बेउ
नय समकक्षी नथी.
सनातन दिगम्बर वीतरागपंथ जैन धर्म छे एनी परंपरामां जन्म लईने, तत्त्व अतत्त्वने समजे
नही, बे नयोना अर्थने–प्रयोजनने समजे नहीं, तेओ भ्रमथी आत्माने परनो कर्ता, हर्ता, स्वामी मानीने
शरीरादिमां एकता बुद्धि करे छे. जेवुं तत्त्व छे तेम नथी मानता पण नथी एवुं माने छे. हुं वचनबोली शकुं
छुं, मौन रही शकुं छुं परनुं कांई करी शकाय छे ए मान्यता मिथ्याद्रष्टिनी छे.
शास्त्रमां परद्रव्यनुं निमित्त मटवानी अपेक्षाए (अर्थात् स्वाश्रयद्वारा निमित्तनुं आलंबन छोडी
केटली वीतरागता थई ए बताववा माटे) व्रत, तप, शील, संयमादिने मोक्षमार्ग कह्यो पण ते मोक्षमार्ग
नथी, बाह्य वस्तु तो निमित्तमात्र छे तेने छोडवा लेवानो अधिकार आत्मानो नथी, परनी कोई क्रिया
आत्माने आधीन नथी ज.
में राग मंद कर्यो माटे आहार न आव्यो, में आहार लीधो–मुक््यो एम माननार मिथ्याद्रष्टि छे भले
ते साधु नाम धरावतो होय पण जैनधर्मने मानतो नथी.
आत्मा परद्रव्यनुं ग्रहण त्याग करी शकतो नथी पण पोताना मिथ्याभावने–रागभावने छोडी,
सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्ररूपभाव पोतामां करी शके छे. अथवा मिथ्याभाव वडे विकारनो कर्ता भोक्ता थई
शके छे. उंधु मानी शके छे. आवी मर्यादा छे.