Atmadharma magazine - Ank 225
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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असाड : २२प : ७ :
दरेक द्रव्य त्रणे काळ परथी भिन्न अने पोताना त्रिकाळी भावोथी अभिन्न छे, पररूप थया विना परनुं
कांईपण करे एम माननारा बे द्रव्यने भिन्न मानवाथी कोईने स्वतंत्र सत्रूप मानता नथी. एक द्रव्य
बीजानुं कांई न करी शके ए वात सांभळीने केटलांक तो जैनधर्मनो (वस्तु स्वभावनो) निषेध करे छे.
अथवा आ वात एकांत नियतिवाद छे एम कही, शकडाल कुंभारनी कथा द्वारा महावीरभगवाने पुरुषार्थथी
परनुं थई शके अमे कह्युं हतुं, एम पोतानी मानेली वात महावीरने नामे चडावे छे. पण ते सर्वज्ञभगवाने
शुं कह्युं अने जीवनो पुरुषार्थ शुं? जीव शेमां पुरुषार्थ करी शके तेनी तेने कांई खबर नथी. आत्मा शुं करी शके
छे, वस्तु निरन्तर निजशक्तिथी पोतानी नवी नवी पर्यायनी प्राप्तिरूपउत्पति अने पूर्वनी पर्यायनो व्यय
कर्या ज करे छे तेने कोईना टेकानी जरूर नथी. आ सत्यनी संयोगी द्रष्टिवानने जराय खबर पडती नथी.
आत्मा तो भेद विज्ञान वडे रागादि छोडी, स्वरूपमां एकाग्रतानो अभ्यास करी वीतरागता प्रगट करे
ते पुरुषार्थ आत्मामां होय छे. राग–ईच्छा–विकल्पो करवामां ऊंधो पुरुषार्थ पण पोतामां होय छे.
वीतरागता प्रगट करे त्यां राग मटतां निमित्तनुं आलंबन मटवानी अपेक्षाए बोलाय के भगवान
नेमिनाथे वस्त्रा भूषण छोडया, पण खरेखर एम नथी. केमके तेमणे पण परनुं ग्रहण–त्याग करेल नथी,
रागनो त्याग अने स्वभावनुं ग्रहण करेल छे.
गिरनारजी यात्रा गया त्यां चडयो–उतर्यो एम व्यवहारथी बोलाय (अर्थात् एवो राग आवे) पण
एम नथी. आत्मा शरीरने उपर लई जाय. नीचे उतारे एवुं सामर्थ्य कोई आत्मामां नथी मात्र ए वखते
निमित्त नैमित्तिकनो मेळ देखी ए प्रकारनो विकल्प होय तेने उपचारथी कर्ता बोलाय छे पण खरेखर
शरीरनी क्रिया में करी में रोकी एम माननार मिथ्याद्रष्टि छे. निमित्त नैमित्तिकनो तेना काळे मेळ केवो होय छे
ए बताववा व्यवहारनयना कथन शास्त्रमां घणां आवे छे पण के कथनना कारणे भ्रम नथी, पोते संयोगी
द्रष्टिथी बे द्रव्यनी एकता माने छे, बे द्रव्यनी स्वतंत्र जुदी क्रिया मानतो नथी, संयोगने ज देखे छे तेथी भ्रम
छे.
दरेक वस्तु तेना कारणे निरन्तर परिणमे छे एम तेना स्वभाव तरफथी वस्तुने नथी देखतो, पण
तेनी संयोगी द्रष्टिथी देखे छे तेथी ज्यां देखे त्यां बधुं विपरीत ज देखे छे. भावलिंगी मुनि होय तेने दरेक
प्रतिज्ञामां द्रढता होय छे, भावलिंगी मुनि होय तेने दरेक प्रतिज्ञामां द्रढता होय छे, आहार लेवानो विकल्प
ऊठे, जवानुं बने, संकल्प–प्रतिज्ञा करे के आहार देनारना हाथमां अमुक वस्तु होय, आवी चेष्ठा होय,
प्रार्थना करे तो आहार लउं नहींतर न लउं पण तेनो अर्थ परने ग्रही शके छे एव० नथी. केमके परना ग्रहण
त्यागनुं कथन व्यवहारनुं छे. शरीर, आहार अने तेनी क्रिया, संयोगनुं मळवुं रागनुं थवुं ए दरेकनुं तेना
आश्रित स्वतंत्र छे, कोई बीजाना कारणे कोईनी क्रिया थई नथी. संयोगथी कोईनी क्रिया थई नथी छतां
बीजाना कारणे बीजामां कार्य बताववुं ते मात्र व्यवहारनयनी रीत छे. व्यवहारनुं कथन कथन अपेक्षाए
व्यवहारमां साचुं क््यारे कहेवाय के निश्चयथी जे हकीकत छे तेनो स्विकार करी तेने ते रूपे माने, पण जे
बेउनयना कथनने समान अने सत्यार्थ माने तेने बे नयो नथी पण मिथ्यात्व ज छे.
व्यवहारनय अभूतार्थ दर्शीत शुद्धनय भूतार्थ छे; भूतार्थने आश्रित जीव सुद्रष्टिथी निश्चय होय छे.
(समयसार गा० ११)
शास्त्रमां सर्वत्र व्यवहारनय माटे एम कह्युं छे के ते पर द्रव्यने आश्रित कथन करे छे, कोईना कारण
कार्य कोईमां मेळवीने कथन करे छे माटे एवी श्रद्धाथी तो मिथ्यात्व छे, माटे व्यवहारना कथनने सत्यार्थ मां
नवानी श्रद्धा छोडवी अने निश्चयनयनो विषय सत्यार्थ छे एम श्रद्धा करवी–व्यवहारनयनो विषय छे खरो
तेने ज्यां जेम होंय तेम जाणवुं प्रयोजनवान छे पण सर्वत्र व्यवहारनय अभूतार्थ– असत्यार्थ दर्शीत छे एम
श्रद्धा करवी अने व्यवहारथी जेटला कथन होय तेनो निश्चयनय प्रमाणे अर्थ समजवो.