श्रावण : २४८८ : ७ :
चीज छे. तेने कारण क््यारे कहेवाय के उपादान कार्यरूपे परिणमे त्यारे. अर्थात् कार्य विना कारण कोनुं? दरेक
समये सामे पर्यायनो कार्य काळ छे छतां संयोग द्रष्टिवाळो मानी ले छे के हुं छुं तो तेमां कार्य थाय छे,–एम
माननार स्वतंत्र सत्नी हिंसा करे छे.
निमित्त एटले संयोगी चीज, उपादान एटले निज शक्ति जे स्वयं कार्यरूपे परिणमे तेने उपादान
कारण कहे छे. सोनुं ज तेनां कंकण आदि परिणामोनुं कर्ता छे. अन्यने तेनो कर्ता कहेवो ते उपचार छे.
अज्ञानी ते उपचारथी कहेवामात्र कर्त्ताने खरेखर कर्ता माने छे. अज्ञानी ने ते वातनी कांई खबर पडती नथी
पण ज्ञानी जाणे छे के ए वस्तु सत् छे तेना प्रत्ये रागनी वृत्ति थई ते रागने जाणवारूप ज्ञान परिणामथी ते
जीव द्रव्य व्याप्त छे. पण पर वस्तुनी साथे कोई प्रकारे एकमेक नथी माटे कोई जीव परनो कर्ता नथी, आवुं
अनादि अनंत वस्तु स्वरूप जेम छे तेम सर्वज्ञ भगवाने जाण्युं अने तेम कह्युं छे भगवाने कह्युं ते साचुं पण
पोते निर्धार न करे तो अज्ञाने ओळख्याविना बधुं नकामुं छे. निमित्तनुं ज्ञान कराववा माटे निमित्तनी
मुख्यताथी कथन आवे पण निमित्तनां लीधे उपादाननुं कार्य थतुं नथी, आम अर्थ न समजे तो ऊंधुं ज थाय.
जेम
पिताश्रीए चोपडामां लखेलुं के चैत्र सुदी ८ ना सवारे आठवागे सामे मंदिरना शिखर उपर ईंडामां
धन दाटयुं छे ए शब्दो वांची अर्थ समज्यो नहि अने मंदिर खरीधुं, अने तोडयुं तो धन मळ्युं नहि पछी
पितानां मित्रने मळ्यो अने पूछयुं तो तेणे खुलासो कर्यो के तारा पिता मूर्ख न होय के पारका क्षेत्रमां धन
माटे, पण ते मंदिरनां शीखरनी टोचनी छाया चैत्र सुदी ८ ना सवारे आठ वाग्ये तारा आंगणामां पडे छे
त्यां खोदवाथी धन मळशे, अने मळ्युं तेम सर्वज्ञ पिताना शास्त्र कथित भावने जे समजे नहि ने व्यवहार
कथनने पकडे तो भाव भासे नहि तेथी विपरीत मान्या विना रहे नहि.–जगतमां पदार्थोनी स्वतंत्रता माने
तो ज परथी भिन्न अने पोताना त्रिकाळी पर्यायोथी अभिन्न दरेक वस्तु छे तेने अन्य कर्तानी–अपेक्षा नथी
एम जाणे अने तो ज अकर्तापणुं–ज्ञातापणुं समजाय अने पराश्रयनी दिनता–छूटी प्रभुता भासे.
द्रव्यनी व्याख्या–द्रवणशील, टकीने प्रवाहीत रहेवुं छे. द्रव्यतीति द्रव्य, जेम पाणीना तरंग एक पछी
एक उपज्या ज करे छे, तेम दरेक द्रव्यो पोतानी जात जाळवीने नवी नवी पर्याये पलटाय छे. ए रीते दरेक
वस्तु तेना क्रमे थता तेना वर्तमान परिणामो साथे एकमेक छे. बीजी वस्तु तेमां पेसी शके नहीं लोढानी
अवस्थाने आत्मा करे तो आत्मानो स्वभाव तेमां आववो जोईए. अने जुदापणानी सत्ता खोई बेसे,
ज्ञानी के अज्ञानी पोतामां पोताना भावने करे पण परमां कर्ता थई शके नहीं मात्र अभिमान करे छे. कर्तानी
व्याख्या छे के–
“ जे परिणमे ते ज कर्ता” पण कोनो? के पोताना परिणामनो, केम के कोई पण जीव अथवा अन्य
जीव–अजीव पोताना परिणाम–(भाव) रूपे ज परिणमे छे अन्यना परिणामरूपे परिणमता ज नथी माटे
कोई पण जीव अगर अजीवने अन्यना कार्यनो कर्ता न प्रतिभासो. दरेक द्रव्यने पोताना परिणामोना
कर्तापणे प्रतिभासो. एक द्रव्य अन्यनुं कांई पण करी शके छे एम माननारे ज्ञाता स्वभावी आत्मा छे एम
जाण्युं ज नथी.
“करे करम सोही करतारा, जो जाणे सो जाननहारा;
जाणे सो कर्ता नही होई, कर्ता सो जाने नही कोई.”
पोताने भूली अज्ञानभावे परिणमे ते कर्तापणाना विकल्पने करे छे अने माने छे के शरीर, वस्त्र,
मकान, धनादिनी व्यवस्थामां हुं कर्ता छुं ज्ञानी छे ते भेद विज्ञान द्वारा जेवुं छे तेवुं जाणे छे. दरेक तेना कारणे
परिणमे छे तेना कारणे टकीने बदले छे तेमां मारो अधिकार नथी. हुं तो ज्ञाता ज छुं, कर्ता नथी, अल्प
नबळाईथी राग आवे के आम करूं, आ ठीक आ अठीक एवो विकल्प आवे पण तेनो ज्ञाता ज छे, कर्ता
नथी, स्वामी नथी.
रागनो भाग वर्तमान नबळाईथी होवा छतां, हुं