: ६ : आत्मधर्म : २२६
द्रव्य उपजे छे. बीजा द्रव्यनो अंश तेमां आवतो नथी. माटे एकद्रव्य बीजामां कांई करे एम मानवुं ते अनंता
सत्ने नही मानवारूप मिथ्याद्रष्टिपणुं ज छे.
जेम सोनुं सुवर्णपणे उपजे छे अने कंकण, वींटी आदि अवस्थापणे उपजतुं थकुं सोनुं ज छे केम के
सोना साथे तेनी दरेक पर्याय एकमेक छे. आ होवाथी सोनानी अवस्थाने सोनुं उपजावे छे, सोनी नहि.
सोनी उपजावे छे एम कहेवुं ते उपचार छे.
कुंभार माटीमांथी घडो उपजावतो नथी पण माटी स्वयं पलटीने घटरूपे थाय छे, लोटनां कारणे रोटली
थाय छे. स्त्री कहे माराथी थाय छे एम खरेखर माने तो मिथ्याद्रष्टि छे. केमके जगतना दरेक द्रव्यो सत् छे,
तेथी ते स्वयं तेना पर्यायधर्मना कारणे अनेक अवस्थारूपे पलटीने नवी नवी अवस्थाओने पोतामां करे छे.
आम होवा छतां जे तेनाथी विरुद्ध माने छे के माराथी आ काम थाय छे. हुं छुं तो घर, धंधा संस्था वगेरेनी
व्यवस्था चाले छे तो तेम माननारा बे द्रव्यने एक माननार मिथ्याद्रष्टि छे. अज्ञानीने निमित्ताधीनपणुं
मानवानी द्रष्टि होवाथी रागनी अने कर्तापणानी रुचि होय छे तेथी संयोग तरफथी देखे छे. द्रव्य–गुण–
पर्यायनी स्वतंत्रता मानी शकतो ज नथी.
दरेक वस्तु अनादि अनंत छे तेथी स्वतंत्र सत्पणुं राखीने उत्पाद व्यय धु्रवस्वभावी रहे छे. कोई
क्षेत्र, काळ, संयोगना कारणे तेमना उत्पाद, व्यय धु्रव स्वभाव नथी, आवुं वस्तु स्वरूप न माने ते सर्वज्ञता
मतथी बहार छे मिथ्याद्रष्टि छे.
नास्ति सर्वोऽति संबंध परद्रव्यात्मतत्त्वयोः।
कर्तृकर्मत्वसंबंधाभावे तत्कर्तृता कुतः।। २००।।
पर द्रव्यने अने आत्माने कांईपण संबंध नथी, तो पछी तेमने कर्ता कर्मपणुं केम होई शके?
व्यवहारथी निमित्त कर्ता कहेवो ते तो कहेवा मात्र छे.
जेओ व्यवहारनयना कथनने पकडीने परमां पोतानुं कर्तापणुं, माने छे, एक द्रव्य बीजानुं कांई करी
शके छे एम माने छे. तेओ सर्वने परतंत्र माने छे. सर्वज्ञदेवे जेम कह्युं छे तेम मानतो नथी.
भगवान......तारी महिमां तें यथार्थपणे सांभळी नथी. जगतना तत्त्वो छे के नथी? आ छे अने वळी
तेनां काम मारे करवा छे तो ते पोतापणे छे के परपणे छे? जो तेओ पोतापणे छे अने परपणे नथी तो बधा
द्रव्यो तेनी शक्ति सहित छे, रहित नथी, माटे तेमनामां तेनुं काम करवानी परिणमन शक्ति छे ज. माटे तेनां
काम तेना आधारे तेनां कारणे छे, एम नक्की थाय छे.
दरेक चीज सत्तात्मक होवाथी पोतानां परिणामथी ज उपजे छे एम नहि मानतां तेनां कार्यने में कर्युं
एम माने छे ते सत्नो लोप करे छे. एक एक समयमां दरेक द्रव्य उत्पाद, व्यय, ध्रौव्ययुक्त सत् छे तेथी कोई
द्रव्यने कोई काळे बीजानी जरूर पडती नथी. वस्तुने उत्पादव्यय अने धु्रवपणुं क््यारे न होय?
सत्रूप वस्तुने जगते सांभळी नथी–कह्युं छे के–
“स्थिरता एक समयमें ठाणे, उपजे विणसे तबहीं, ऊलट पलट धु्रव सत्ता राखे, या हम सुनि न
कबहि, अबधु नट नागर की बाजी,”
दरेक समये नवी नवी अवस्था थाय जूनी जाय, अने वस्तु धु्रव नित्य टकी रहे छे एवो ज वस्तु
स्वभाव छे, कोईए करेलो नथी.
पैसा धूळ छे, कोने लईने आवे छे? पूर्वना पुण्यथी आवे छे. मारे लीधे आवे छे–एम माने छे ते–
अनंता सत्नो निषेध करे छे, सत्यनी हिंसा करे छे.
दरेक पदार्थ पोतानी वर्तमान वर्तती पर्यायथी अभिन्न छे, जेम घडानी पर्यायथी–माटी तन्मय छे पण
कुंभारथी तद्रुप नथी माटे कुंभार तेनो कर्ता नथी, तेम जगतनां पदार्थो तेनी अवस्थाथी तद्रुप छे पण तेनी
साथे निमित्तरूप पदार्थो तद्रुप नथी माटे निमित्त ते उपचार मात्र कारण छे, खरूं कारण नथी. निमित्त
नैमित्तिक संबंध एक समय पुरतो छे खरो. पण निमित्त पर