Atmadharma magazine - Ank 226
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण : २४८८ : प :
तेमां एकाग्रता करवी पडे छे. बाह्यक्षेत्रे पहोळुं थवुं पडतुं नथी. अंदरनो विकास अंदर ज थाय छे. बहार थतो
नथी. बहारथी कांई आवतुं नथी.
जेम ६४ पहोरी पीपरमां दाणे दाणे पूर्ण तीखाशनी शक्ति छे तेने घसवाथी प्राप्तनी प्राप्ती थाय छे.
तेम भगवान आत्मामां पूर्ण ज्ञानानंद शक्ति छे. पराश्रयनी श्रद्धा छोडी अंदरमां पूर्ण ज्ञानानंद स्वभावी ज
छुं, एमां ढळीने तेनो निश्चय अने आश्रय करे तो भेद अने रागादि गौण थई स्वाश्रय द्रष्टि अने स्थिरता
प्रगट थाय छे अने ज्ञानादिशक्तिनो विकास थई अपूर्व आनंद प्रगट थाय छे. गृहस्थ दशा होय छतां
आत्मानुभवरूपी स्वकार्य थई शके छे. जे तेनाथी थई शके ते ज बताववामां आवे छे.
अनंतागुण आत्मामां एकमेकपणे छे. ते पूर्ण स्वरूपनी श्रद्धा अने एकाग्रता वडे तेनो विकास थाय छे,
परना कार्यनो ते ते पदार्थ कर्ता छे, परनो कर्ता, हर्ता के भोक्ता कोई जीव नथी. अने अजीव, जीवना कार्यनो
कर्ता नथी. कोई कोईनुं निमित्त कर्ता थई शकतुं नथी. स्वतंत्र ज्ञाता स्वभाव बतावनार क्रमबद्ध पर्यायनी
स्वतंत्रतानो अधिकार चाले छे. दरेक द्रव्य स्वकाळे पोतपोतानी योग्यतानुसार पोताथी उपजे, बदले अने टके
छे. कोई कोईना कर्ता नथी, कारण नथी, आधार नथी. मिथ्याद्रष्टि जीवने ज्ञातास्वभाव रुचतो ज नथी तेथी हुं
परना काम करी शकुं अने पर मारा कार्य करी शके एम माने छे. पोताने भूली परने पोतानुं माने छे. द्रव्य
गुण अक्रम छे क्रमे नथी. अने प्रगट थती पर्यायो पोतपोताना काळे क्रमसर छे अक्रम नथी.
द्रव्यमांथी द्रव्यना आश्रये पर्यायो दरेक समये नवी नवी उपजे छे अने पूर्व पर्यायो बदले छे. एकेक
द्रव्यमां दरेक द्रव्यमां अनंतगुण छे, तेथी एक समयमां अनंतगुणनी अनंत अवस्था उत्पाद–व्ययरूप थईने
स्वद्रव्यमां भळे छे. परद्रव्य साथे कोईनो एक अंश पण मळे नही एवी मर्यादा छे. जेम द्रव्य गुण पर्याय
कोईथी करायेला नथी तेम द्रव्यना अनंत गुणोनी क्रमे क्रमे थती पर्यायो पण कोई वडे नथी, कोईना आधारे
नथी. पोताथी ज छे, स्वकाळे प्रगट थाय छे. कोई पर्याय वहेली मोडी अथवा आडी अवळी थाय एम नथी.
आम साची वस्तुस्थितिनो निर्णय करे तो पर्यायना भेदना आश्रये लाभ मानवानी श्रद्धा छुटी जाय, ग्रहण
त्यागनी कर्ताबुद्धि छूटी, अंशमां आखुं मानवारूप पर्यायबुद्धि छूटी हुं सर्वज्ञ स्वभावी आत्मा छुं एमां
एकताबुद्धि थाय अने मिथ्या अहंकार जाय.
अंदरमां असंग अरागी–स्वभाव ज्ञानानंदपणे परिपूर्ण छे. ते असली स्वभावमां द्रष्टि दे तो क्रमबद्ध
पर्याय अने दरेकनुं स्वतंत्र परिणमन छे एम ख्यालमां आवे. ज्ञानीने नीचे अल्प रागादि थाय पण तेनो हुं
कर्ता अने रागादि मारूं कार्य एम मानतो नथी. वर्तमान दशामां अल्पज्ञता अने राग छे तेना लक्षे सर्वज्ञ
स्वभावनो निर्णय थतो नथी. हजारो शास्त्र जाणे तोपण तेनुं मिथ्याज्ञान ज्ञाननुं काम करतुं नथी.
भूतार्थ स्वभावने आश्रित भेदज्ञान कदि कर्युं नथी, सुखना नामे अनादिथी दुःखना उपाय कर्यां छे,
एक सेकन्ड मात्र पण ज्ञाननुं काम कर्युं नथी. रागादिनो कर्ता छुं, पुण्यथी, शुभरागथी भलुं थाय छे एम
मानतो आवे छे पण रागादि विकारथी पेलेपार त्रिकाळ ज्ञाता छुं, रागादिनो अकर्ता छुं असंग ज्ञायक छुं
एम भासतुं नथी तेथी ते मिथ्याद्रष्टि छे.
जीवनो अंश अजीवमां नथी जेम सुवर्ण छे ते तेना रंग तथा आकारोथी अभेद छे तेथी तेना स्पर्श
रंग अने आकारमां हथोडी वगेरे लोखंडनो स्पर्श रंग अने आकार आवी शकतो नथी तेम जीवने क्षणे क्षणे
ईच्छा, राग, विकल्प उपजे तेनाथी पर्यायबुद्धिवान अज्ञानीजीव अभेद छे. ज्ञानी स्व–पर प्रकाशक पोताना
ज्ञान परिणामथी अभेद छे तेमां पर द्रव्य, पर गुण, पर क्षेत्र, पर काळनो अंश आवी शकतो नथी.
त्रणे काळनी अर्थपर्याय (गुणोनी अवस्था) अने व्यंजन पर्याय (पोताना आकारनी अवस्था)नो
पिंड ते द्रव्य छे आम होवाथी तेनी दरेक समयनी पर्याय क्रमबद्ध छे. अक्रम नथी. अने क्रमबद्ध थती
पर्यायोरूपे ते