: ४ : आत्मधर्म : २२६
अनादि अनंत दरेक वस्तुनी स्वतंत्र अवस्था
अने
भेदज्ञान वडे नक्की थतुं जीवनुं अकर्तापणुं
समयसार सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार गा–३०८ थी ३११
उपर पू. गुरुदेवना प्रवचन–राजकोट ता. प–प–६२
आ भगवान आत्मा देहना रजकणथी जुदो छे.
अनादि अनंत धु्रव वस्तु छे. छे तेनी आदि अंत न होय.
देहथी भिन्न चैतन्यमात्र वस्तु आत्मा छे. आत्मा ज्ञाननो
कर्ता छे. शरीर, मन, वाणी आदि कोई पण पर पदार्थना
काम करी शकतो नथी. जगतना जेटला पदार्थो छे, ते छे छे
ने छे. छे ते पोताथी छे. परथी नथी. आटलुं नक्की करता
तेनी पर्याय पोताथी छे. परथी नथी. परना आधारे नथी
एम नक्की थई जाय छे.
णमो अर्हंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आईरियाणं
णमो उव्वज्जायाणं, णमो लोए सव्व साहुणं
ओकारं बिन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिन;
कामदं मोक्षदं चैवं ओंकाराय नमो नम:
एक पदार्थ बीजानुं कांई करी शके नहीं एम अकर्तापणुं बताववा आ अधिकार छे.
प्रथम तो जीव छे. ते क्रमबद्ध एवा पोताना परिणामोथी उपजतो थको जीव छे. अजीव नथी. केमके
दरेक द्रव्य पोतानी जातने जाळवीने निरंतर नवी नवी अवस्था बदले छे. जो अवस्था बदले नहीं तो
आनंदनो अनुभव थई शके नहीं. आत्मामां पूर्ण स्वभाव भर्यो छे. जेम ६४ पहोरी पीपरमां पूर्ण तीखास
भरी छे. अंदर शक्ति छे तो प्रगट थाय छे. पीपरना दाणे दाणे शक्तिरूपे पूर्ण तीखाशने लीलाश पडी छे. तेम
दरेक आत्मामां ज्ञानानंद शक्ति छे, चैतन्यधाममां सर्वज्ञत्व सर्वदर्शीत्व, वीर्य (बल), सुख, प्रभुत्व,
विभुत्व, स्वच्छत्व, असंकुचितविकासत्त्व, आदि गुणरूप अनंत शक्तिओ एकसाथे छे, अनादि अनंत छे.
विभुत्वशक्ति एटले सर्वजगत व्यापक एम नहीं पण दरेक आत्मा पोतानी विभुत्वशक्तिथी पोतपोताना
स्वक्षेत्रमां स्वद्रव्यना आश्रये पोताना अनंत गुणोमां सदाय व्यापक छे अने आत्मामां पोताना सर्वगुण
सदाय व्यापक छे. पण जगतमां–विश्वमां सर्व व्यापक एवो कोई आत्मा नथी. याद करवुं होय तो अंदर
देहमां बीराजमान जे चैतन्यभाव छे. तेटलामांज