Atmadharma magazine - Ank 226
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : २२६
तो जाणनार देखनार छुं, पोते ज्ञाता छे. अल्पराग, अल्पज्ञान, अने नबळाईनो स्वामी नथी. केमके
त्रिकाळीज्ञाता सबळ स्वभावना स्वामीत्वभावे परिणमे छे.
जे परनुं कार्य हुं करी शकुं छुं, रोकी शकुं छुं, एम माने छे ते ज्ञातास्वरूपने जाणतो नथी. झीणी वात
छे. संयोगथी जोनार स्वभावने जोई शकतो नथी. जे जेमां नथी ते तेनो कर्ता केम होय? राग ऊठे छे, तेनो
त्रिकाळी स्वभावमां अभाव छे. त्रिकाळी स्वभावमां विभावने रचवानी योग्यता नथी, एम न मानता
रागनो हुं कर्ता छुं, शुभराग ते मारुं कर्तव्य छे. परना कार्यों हुं करी शकुं छुं, एम माने ते पापद्रष्टि छे,
अधर्मद्रष्टि छे. भगवान आत्मा ज्ञाता छे. तेने रागना–परना काम सोंपवा ते चेतननो अनादर छे.
अनासक्तिथी परना काम करवा तेम माने छे, तेने परमां एकता बुद्धिनी तीव्र आसक्ति छे. अनासक्तिना
नामे परमां कर्त्तापणुं माने ज छे, हुं परथी जुदो ज्ञाता छुं एम ते मानतो नथी.
भाई तुं क््यां हीत–अहीत मानी रह्यो छे. नक्की तो कर! कोईथी तारुं भलुं भुंडुं थई शके नहीं. दरेक
पदार्थ परिणामी स्वभाववान होवाथी पोताना परिणामे ज परिणमतो थको तेना पोताना परिणामथी तद्रूप
छे. तेथी परनो कर्ता नथी, पररूपे थनार नथी माटे कदी परना परिणाम साथे तन्मय नथी. जेमां तन्मय
नथी तेनो ते कर्ता थई शके नहीं. जेम कुंभार अहंकारथी माने के हुं घडानो कर्ता छुं पण खरेखर ते तेनो कर्ता
नथी. केमके माटी, माटीना घडा आदी आकारथी तद्रुप छे, कुंभार साथे तद्रुप नथी. माटे तेनो कर्त्ता कुंभार छे
नहीं छतां निमित्त देखीने कर्ता कहेवो ते व्यवहार छे. कोई जीव देहनी क्रियाओनो के वाणीनो कर्ता छे नहीं
छतां अहंकारी जीव माने छे ए अपेक्षाए तेने उपचारथी कर्तापणे ओळखावे छे. खरेखर कोई परना कार्यनो
कर्ता थई शकतो नथी. पण आ वात नक्की करे कोण? जुदा जुदामां परना कर्त्तापणाने जोनारो बे द्रव्योने
जुदा मानतो ज नथी.
शास्त्रमां निमित्त कारणना कथन आवे छे पण नय विभागने नहीं समजनाराओ शास्त्रना अर्थने
विपरीतपणे समजे छे. कुंभारे घडो कर्यो एटले एम नथी पण माटी घडारूपे थई छे माटे कुंभारे घडो कर्यो ए
कथन उपचार व्यवहारथी छे, दवानी शीशी, अमे कथन आवे पण एनो अर्थ ए कथन प्रमाणे नथी पण
व्यवहारनी ए रीते छे, तेम निमित्त देखीने एक द्रव्यने बीजाना कार्यनो कर्ता कहेवो ते एम नथी पण
व्यवहारथी कहेवा मात्र छे. खरेखर दरेक द्रव्य पोताना ज परिणामना कर्ता छे एम निर्णक करे तो ज नित्य
परिणामी द्रव्य अने क्रमबद्ध स्वतंत्र पर्यायनो ज्ञाता थई शके, स्वसन्मुख थई शके, रागादिनो अकर्ता–एटले
ज्ञाता ज छुं एवा असली स्वरूपमां विश्रान्ति लई शके.
एक आकाश क्षेत्रमां छये द्रव्यो एक साथे, एक काळे पोत पोतामां परिणमी रह्या छे. तेने जाणवाथी
भ्रम थतो नथी पण जेम छे तेम न जाणता, छे तेनाथी ऊंधुं माने छे, ते पोतानी मान्यताथी भूल करे छे.
परमां कर्तृत्व–ममत्वभाव राखीने जाणे छे तेथी पर वडे लाभ नुकशान माने छे, तेने स्वसन्मुख ज्ञातापणे
रहेवानो अंतरमां विश्रान्ति लेवानो अवसर नथी. “स्व प्रकाशक शक्ति हमारी तातै बचन भेद भ्रम भरी;
ज्ञेय शक्ति द्विविधा प्रकाशी स्वरूपा निजरूपा भासी.”
आत्मामां स्वपर प्रकाशक ज्ञान छे ते निश्चय छे, परने जाणे छे तेम कहेवुं ते व्यवहार छे, स्वने
स्वपणे अने परने परपणे जाणे एवी ज्ञान शक्तिवाळो छे पण परना काम व्यवहारथी करी शके एवी शक्ति
आत्मामां नथी. केमके परना कार्यनो कर्ता तो ते ज होई शके के जे तेरूप–तन्मयपणे परिणमे पण जीव
शरीररूपे–तेनी कोई अवस्थारूपे, पररूपे थई शकतो नथी. मात्र व्यवहारनयद्वारा निमित्त कर्ता कहेवाय छे ते
कहेवामात्र ज छे.
प्रश्न:– एक क्षेत्रे बधा द्रव्यो रहे छे तेथी एकना कार्यमां बीजानुं कर्तृत्व हशे एम भ्रम थाय छे?
उत्तर:– ना, एक आकाश क्षेत्रे अनेक भेळा थाय