Atmadharma magazine - Ank 226
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 27

background image
श्रावण : २४८८ : ९ :
तेथी कांई परनुं करी शके एम नथी. एकेन्द्रिय निगोदना जीव एक शरीरमां अनंता छे, कोईना
परिणाम एक नथी, सरखा नथी, तथा कोईना कारणे कोई परिणमता नथी. केमके त्रणेकाळ माटे नियम
छे के दरेक द्रव्यने पोताना परिणाम साथे संबंध छे बीजा साथे संबंध नथी. आम नक्की थतां ज अनंता
परना कार्य स्वतंत्र छे, हुं कोईना कार्यनो कर्ता नथी, प्रेरक नथी, एम त्रिकाळी ज्ञाता स्वभावना
आश्रये अकर्त्ता ज्ञाता स्वभावनो निर्णय थाय छे अने रागादि तथा अनंता परनो हुं कर्ता एवी
मिथ्याबुद्धि टळी, असंग ज्ञायकस्वरूप आत्मामां द्रष्टि थाय छे. अनादि विभावमां रमतुं मन अंतरमां
विश्राम पामे छे.
परथी अने सर्व प्रकारना रागादिथी भिन्न असंग ज्ञानानंद छुं क्षणिक रागादि जेवो ने जेटलो
नथी एम जाणवुं ते मारूं कार्य छे, एम जाणी स्वसन्मुख द्रष्टी करवी एनुं नाम सम्यग्दर्शन छे अने
क्रमबद्ध पर्याय ने जाणी मिथ्याकर्त्तापणानी श्रध्धाछोडी स्वसाथे संबंध राखतुं ज्ञान करवुं ते सम्यग्ज्ञान
छे दरेकमां जे काम थाय छे ते स्वतंत्रपणे ज थाय छे. परमां अने रागमां कर्तापणानी द्रष्टि हठावी,
पर्याय द्रष्टि छोडी स्व द्रव्य स्वभावने ध्येय बनावे तो ज स्वमां ज्ञाता रही शके अने तेमां विशेष
एकाग्रताना बळथी केवळज्ञान प्रगटे छे, ए मार्ग छे.
हाथ, पगनुं चालवुं, आंखोनी पांपण हलवी ते परमाणुं पोते हलावे छे. ईच्छा होवा छतां
बीमारी मटाडी शकतो नथी. श्वास–दम चाले, हाथ उपाडी न शके, बोलवा धारे बोलाय नहि, माखी
बेसे ऊडाडी शके नहि, हाथमां योग्यता होय तो ज चाले.–अत्यारे शरीर जड अचेतन छे, तेना क्रिया
स्वतंत्र छे, तेमां जीवनो अधिकार नथी. मरण काळे श्वास दूंटीथी खसे छे ते ख्यालमां आवे पण नीचे
उतारी न शके जेने ऊभो श्वास कहेवाय छे, जीव भ्रमथी माने के निमित्तथी कार्य थाय छे पण एम
नथी, त्रणे काळ दरेक जीव–अजीव द्रव्यनी क्रिया स्वतंत्र तेनाथी थाय छे.
दरेक परमाणुनी क्रिया स्वतंत्र तेना आधारे थाय छे केम के तेमां तेनी अवस्था निरन्तर
उत्पादव्ययधु्रवपणाने पामे छे अने तेने ते परमाणु पहोंची वळे छे केमके तादात्म्यपणे ते परमाणुं छे
पण आत्मा जड साथे तादात्म्य नथी माटे जडना परिणामनो जीव कर्ता नथी.
द्रव्यमां पोतपोताना अवसरे ज परिणाम थाय, तेनी साथे ते पदार्थ अभेद छे, तादात्म्य छे,
तेनो कर्ता अन्य द्रव्य नथी छतां अन्यने कर्ता कहेवो ते उपचारनुं कथन छे.
रोटली देवता उपर फुले छे ते स्त्रीथी नथी थई पण तेना काळे तेनी शक्तिथी थाय छे, लुंगडुं
दबाववाथी रोटली फुलती नथी पण तेमां शक्ति हती ते प्रगट थाय छे. संयोगी द्रष्टि जोनार ऊंधु देखे
छे ने परनां कार्य पोताना माने छे, सर्वने पराधीन माने छे पण कोई कोईना कर्ता हर्ता के स्वामी नथी
आम जाणे तो ज अंदरमां पोते केवो छे, केवो नथी एम नक्की करी शके, अने पछी वर्तमान राग क्षणिक
छे. मारा त्रिकाळी स्वभावमां नथी अमे जाणी धु्रव स्वभावमां एकाग्र द्रष्टि वडे सम्यग्द्रष्टि थई शके छे.
बाह्य संयोग अने शुभरागनी क्रियावडे सम्यग्दर्शन थई शकतुं नथी.
चक्रवर्तीनी समस्त संपत्तिथी पण जेनो मात्र एक समय पण विशेष
मुल्यवान छे एवो आ मनुष्य देह अने परमार्थ ने अनुकूल एवो योग संप्राप्त
थवा छतां पण जो जन्ममरणथी रहित एवा परमपदनुं ध्यान राख्युं नही तो
आ मनुष्यत्वने अधिष्ठित एवा आत्माने अनंतवार धिक्कार हो!
जेणे प्रमादनो जय कर्यो तेमणे परमपदनो जय क््योेर्.
(श्रीमद् राजचंद्र)