तेथी कांई परनुं करी शके एम नथी. एकेन्द्रिय निगोदना जीव एक शरीरमां अनंता छे, कोईना
परिणाम एक नथी, सरखा नथी, तथा कोईना कारणे कोई परिणमता नथी. केमके त्रणेकाळ माटे नियम
छे के दरेक द्रव्यने पोताना परिणाम साथे संबंध छे बीजा साथे संबंध नथी. आम नक्की थतां ज अनंता
परना कार्य स्वतंत्र छे, हुं कोईना कार्यनो कर्ता नथी, प्रेरक नथी, एम त्रिकाळी ज्ञाता स्वभावना
आश्रये अकर्त्ता ज्ञाता स्वभावनो निर्णय थाय छे अने रागादि तथा अनंता परनो हुं कर्ता एवी
मिथ्याबुद्धि टळी, असंग ज्ञायकस्वरूप आत्मामां द्रष्टि थाय छे. अनादि विभावमां रमतुं मन अंतरमां
विश्राम पामे छे.
क्रमबद्ध पर्याय ने जाणी मिथ्याकर्त्तापणानी श्रध्धाछोडी स्वसाथे संबंध राखतुं ज्ञान करवुं ते सम्यग्ज्ञान
छे दरेकमां जे काम थाय छे ते स्वतंत्रपणे ज थाय छे. परमां अने रागमां कर्तापणानी द्रष्टि हठावी,
पर्याय द्रष्टि छोडी स्व द्रव्य स्वभावने ध्येय बनावे तो ज स्वमां ज्ञाता रही शके अने तेमां विशेष
एकाग्रताना बळथी केवळज्ञान प्रगटे छे, ए मार्ग छे.
बेसे ऊडाडी शके नहि, हाथमां योग्यता होय तो ज चाले.–अत्यारे शरीर जड अचेतन छे, तेना क्रिया
स्वतंत्र छे, तेमां जीवनो अधिकार नथी. मरण काळे श्वास दूंटीथी खसे छे ते ख्यालमां आवे पण नीचे
उतारी न शके जेने ऊभो श्वास कहेवाय छे, जीव भ्रमथी माने के निमित्तथी कार्य थाय छे पण एम
नथी, त्रणे काळ दरेक जीव–अजीव द्रव्यनी क्रिया स्वतंत्र तेनाथी थाय छे.
पण आत्मा जड साथे तादात्म्य नथी माटे जडना परिणामनो जीव कर्ता नथी.
छे ने परनां कार्य पोताना माने छे, सर्वने पराधीन माने छे पण कोई कोईना कर्ता हर्ता के स्वामी नथी
आम जाणे तो ज अंदरमां पोते केवो छे, केवो नथी एम नक्की करी शके, अने पछी वर्तमान राग क्षणिक
छे. मारा त्रिकाळी स्वभावमां नथी अमे जाणी धु्रव स्वभावमां एकाग्र द्रष्टि वडे सम्यग्द्रष्टि थई शके छे.
बाह्य संयोग अने शुभरागनी क्रियावडे सम्यग्दर्शन थई शकतुं नथी.