Atmadharma magazine - Ank 226
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 27

background image
: १० : आत्मधर्म : २२६
अबंध स्वभावनी द्रष्टिथी निर्जरा:
एक द्रव्यना कार्यमां बीजा द्रव्यने कर्ता
मानवो ए अज्ञानीओनो विकल्प
उपचार छे–परमार्थ नथी.
श्री समयसार निर्जरा अधिकार
गा–२२० थी २२३ उपर पू. गुरुदेवना प्रवचन
जीवोने धर्म केम थाय तेनी रीत आचार्यश्री कुन्दकुन्द भगवाने समयसार शास्त्रमां समजावेल छे.
आत्मा पोते सच्चिदानंद पूर्णज्ञान स्वभावी छे. तेवो स्पष्ट अभिप्राय होवा छतां वर्तमान दशामां अपूर्णता
अने अशुद्धताने कारणे तेमज पूर्वोपार्जित कर्मोथी मळेला संजोगोने भोगवतो देखाय, संयोग तरफ लक्ष जाय
छतां ज्ञानी ने ते कोई सामग्री अने संजोगो बंधनां कारण (निमित्त) बनता नथी. आवी रीते ज्ञानीने
बहारनां संजोगो अज्ञानी बनावी शकता नथी.
जेमके श्वेत शंख काळा कीडांनो आहार ले अने कादवमां पोतानो निवास राखे छतां आवा काळा
संजोगोने कारणे शंख पोतानुं श्वेतपणुं छोडतो नथी. कारण के दरेक द्रव्य पोतानी ज शक्तिथी, पोताने कारणे,
परिणमे छे. अन्य द्रव्यथी कोई काळे फेरफार थतो नथी. अर्थात् एक द्रव्य बीजा द्रव्यने कांई करी शकतुं नथी.
शास्त्रनां तात्पर्यने विरुद्ध रीते समजनारा निमित्त कारणने सत्यार्थ मानवानी भूल करतां होय छे.
उपादान पोतानी मेळे, पोतानी शक्तिथी पलटे त्यारे आवुं निमित्त हतुं एम ज्ञान कराववा शास्त्रमां
निमित्तनां कथनो होय छे. परंतु ए एम नथी पण निश्चयनय द्वारा जे निरूपण छे तेम समजवुं जोईए. जे
जीव उपचारना व्यवहारना कथनने निश्चयनयना कथननी जेम सत्यार्थ माने छे ते उपदेशने लायक नथी.
श्री समयसार शास्त्रनी गाथा १०प मां कह्युं छे के “आत्मा पर द्रव्यनो कर्ता छे.” आवा वचनो
उपचार मात्र छे. परमार्थ नथी. कारण के दरेक आत्मा स्वभावथी पौद्गलिक कर्मनो निमित्त नहि होवा छतां
पण, अनादिकाळथी अज्ञानने लीधे अज्ञान भावे परिणमतो होवाथी पौद्गलिक कर्मने निमित्तरूप थतां
“पौद्गलिक कर्म आत्माए कह्युं” एवो विकल्प ज्ञातास्वभावथी भष्ट, विकल्प परायण अज्ञानीओनो छे. ते
विकल्प उपचार ज छे परमार्थ नथी.
हुं ज्ञानदर्शन आनंदमय स्वभावी छुं, आवी द्रष्टि जेने थई ते जीव नवा कर्म बंधाय तेमां निमित्त
होय शके नहि, पण पोतानां आवा मूळ स्वभावने भूलीने, अज्ञानभावे परने पोतानुं मानी परमां मारूं
कर्तापणुं, भोक्तापणुं, प्रेरकपणुं छे एम मानी प्रवर्ते छे. तेमां आ जड कर्म में कर्युं, शरीर आदि परना कार्यमां
हुं निमित्त कर्ता छुं, एम ज्ञाता स्वभावनी द्रष्टिथी जे भष्ट छे, ते माने छे.