Atmadharma magazine - Ank 226
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण : २४८८ : १३ :
राधी अने कर्मना अभावथी निरपराधी थाय छे. एम नथी. लोको एम कहे छे के “कर्मे जीवने
भुलाव्यो.” तो शुं जीव भुलरूपे पोते नथी परिणमतो? परिणमे छे. अने जो पोते ज भुलरूपे
परिणमे छे तो बीजाए शुं कर्यु? कंई ज नहि. तेथी जीव पोते ज भुल करी छे त्यारे बीजी चीजने
निमित्त कारण कहेवाय छे.
श्री समयसार गाथा ८६ मां कह्युं छे के आत्मा पोताना ज परिणामनो कर्ता छे. एम
प्रतिभासो अन्यना भावोनो कर्ता छे. एम न प्रतिभासो आत्मानी तेमज जडनी (बंनेनी) क्रिया
आत्मा करे छे एम माननार द्विक्रियावादी मिथ्याद्रष्टि छे.
श्री पंचास्तिकाय गाथा ६२मां कह्युं छे के जीव अने पुद्गलनी विकारमां के अविकारमां बंनेनी
क्रिया एक ज काळे वर्तती होवा छतां बंने निश्चयनये एकबीजाथी तद्न निरपेक्षपणे परिणमे छे.
आत्मा अने जड पदार्थो स्वयंसिद्ध परिणामी वस्तु छे. दरेक द्रव्य तेनी धारावाही पर्यायपणे
परिणमे छे. तेना परिणमनरूप प्रवाहने तोडवा–पलटाववा कोई समर्थ नथी.
कळश १प१:
हे ज्ञानी! हे चैतन्यस्वभावना विलासी! तारा ज्ञाता स्वभावमां श्रद्धा, ज्ञान अने रमणता ते
ज तारो आत्मव्यवहार छे. परने व्यवहारथी पण करी के भोगवी शकतो नथी. माटे तारे कदीपण
परमां कर्तृत्व करवुं के मानवुं उचित नथी. परद्रव्य मारूं नथी छतां भोगवुं छुं एम मानीश तो पण
अपराधी थईश. वळी शास्त्रमां कह्युं छे के परद्रव्यना उपभोगथी बंध थतो नथी.” तो तने परने
भोगववानी ईच्छा छे? परनुं हुं भोगव ए तो अज्ञानमय ईच्छारूप परिणाम छे. जे तारूं नथी तेने
तुं भोगवी ज केम शके? परमां कर्ता–भोक्तापणुं माननार कदीपण सुखी थाय नहि; जे चीज पोतामां
नथी तेने भोगववानुं माने ते अपराधी छे. माटे ज्ञातामात्र स्वभावमां निश्चळ रहे, आनंद स्वरूपमां
वस (निवास कर) एटले के निज स्वरूपमां निर्मळ श्रद्धा, ज्ञान करी स्थिर थई जा. परमां
भोक्तापणानी ईच्छा करीश तो चोक्कस तुं अज्ञानरूपे थईने तारा अपराधथी बंधने पामीश.
परवस्तुथी बंध नथी, परंतु परमां कर्ताभोक्तापणानी ऊंधी वासनाथी बंध छे. परवडे बंध नथी.
परंतु संयोगमां ईष्ट अनिष्टपणुं मानवारूप मिथ्या अभिप्रायथी बंध छे. अज्ञानी आत्माने परवस्तु
मेळववानी के भोगववानी अभिलाषा छे. परवस्तुमां तथा ईच्छामां मीठास अने सुखबुद्धि जेने छे ते
आत्मा चोक्कस बंधाशे. हे आत्मा! तुं प्रभु सच्चिदानंदमूर्त्ति तारा ज्ञान प्रवाहमां वस तो बंध नथी.
पण तेने भूली ईच्छानां प्रवाहमां वस्यो तो बंध छे.
बहारमां भले त्याग देखाय परंतु अंदरमां कर्ता–भोक्तापणानी वासना जेने होय तेने बंध
छे–निर्जरा नथी. ज्ञानी सम्यग्द्रष्टि पुरुषार्थनी नबळाईथी रुचिविना उपभोगमां जोडाय त्यां तेने बंध
कह्यो नथी. परंतु जो स्वयं कर्ता थई ईच्छाथी भोगवे तो पोते स्वयं मिथ्यारुचि वडे अपराधी थयो
त्यां बंधथाय छे. अहीं अज्ञानीने बंध कह्यो छे. ज्ञानी थया पछी मिथ्यात्व नथी. तेथी अज्ञानकृत बंध
नथी एम समजवुं.