Atmadharma magazine - Ank 226
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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मोक्षगामी
चक्रवर्ती वज्रनाभि
(आदिपुराण उपरथी)
(गतांक २२४थी चालु)
(भरत क्षेत्रमां थई गयेलां श्री रूषभदेव तीर्थंकरना
पूर्वभवनी आ कथा छे. तेओश्री वज्रनाभिना भवमां
निर्ग्रंथ मुनिपद धारण करी आयुना अंतभागमां उपशान्त
मोह नामे ११मा गुणस्थाने प्राण त्याग करी सर्वार्थसिद्धि
पूर्वक वैराग्य भावनानुं चिन्तन पण करता हता, तेमां
आचार्यदेव कहे छे के– संसारमां लोको जेने सुख माने छे ते
सुख नथी केमके आ विषयो स्वप्नमां देखाता भोगो
समान क्षणभंगूर, अने दगो देनारा छे, एना माटे
निरन्तर आर्तध्यानमां रहेवावाळाने ए विषयोथी सुख
केवी रीते प्राप्त थई शके.)
भावार्थ:– पहेलां तो ईच्छानुसार विषय सामग्री बधांने प्राप्त थती नथी, तेथी एनी प्राप्ति माटे
निरंतर आर्तध्यान करवुं पडे छे. वळी प्राप्त थईने स्वप्नमां देखेला भोगो समान तुरत ज नाश पामी
जाय छे. आथी निरंतर ईष्टना वियोगथी जन्मतुं आर्तध्यान थयां ज करे छे. आ प्रकारे विचार करवाथी
मालूम पडे छे के विषय सामग्री कोईने सुखनुं कारण नथी. प्रथम तो आ जीव विषयोने एकठां करवामां
महान दुःखने प्राप्त थाय छे अने एकठा थयां पछी तेनी रक्षा करवानी चिंता करतो थको अत्यंत दुःखी
थाय छे. त्यार पछी आ विषयो नष्ट थई जवाथी अपार दुःखने पामे छे कारणके पहेलां भोगवेलां
विषयोनुं वारंवार स्मरण करीने आ जीव घणो ज दुःखी थाय छे जे विषयोनुं सेवन करवाथी संसारनो
नाश थतो नथी, जे नाशवंत छे अने जेनुं सेवन जीवोना संतापने दूर करी शकतुं नथी एवा आ
विषयोने धिक्कार छे. जेवी रीते ईंधनथी अग्निनी ज्वाला ओलवाती नथी अने नदीओना पूरथी
समुद्रनी तृष्णा दूर थती नथी एवी रीते भोगवेला विषयोथी जीवोने तृष्णा कदी पण शांत थती नथी.
जेवी रीते खारुं पाणी पीईने मनुष्य वधारे तरस्यो थाय छे तेवी रीते आ जीव विषयोना संभोगथी
एथी घणी वधारे तृष्णाने प्राप्त थाय छे. अहो! जेनो आत्मा पंचेन्द्रियोना विषयोने आधीन थई रह्यो
छे, जे विषयोरूपी मांसनी तीव्र लालसा राखे छे अने जे अचिंत्य दुःखने प्राप्त थई रह्यो छे एवा
विषयथी जीवने