Atmadharma magazine - Ank 226
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण : २४८८ : १प :
महान दुःख छे.
जंगलोमां रहेता मोटा मोटा हाथी के जे पोताना झून्डना नायक होय छे अने अति मदोन्मत्त होय छे
तेओ पण हाथणीना स्पर्शथी मोहित थई खाडामां पडी दुःखी थाय छे.
जेनुं पाणी खीलेलां कमळोथी अत्यंत स्वादिष्ट थई रह्युं छे एवां तळावमां पोतानी ईच्छानुसार
गमन करवावाळी माछली कांटाने लागेलां मांसनी अभिलाषाथी प्राण गुमावे छे.
मदोन्मत हाथीओना मदनी वास ग्रहण करवावाळो भमरो गुंजारव करतो थको हाथीओना कानरूपी
वींझणाना प्रहारथी मृत्युने आमंत्रण आपे छे–मरी जाय छे.
पतंगियुं पवनथी फेलाती दीवानी ज्योतमां वारंवार झंपलावी पडे छे जेनाथी एनुं शरीर शाही
समान काळुं थई जाय छे अने ईच्छा न होवा छतां पण मृत्युने शरणे थाय छे.
आ रीते जे हरणीओ जंगलमां पोतानी ईच्छानुसार ज्यां त्यां घुमे छे तथा कोमळ अने स्वादिष्ट
पाननां अंकुर चरीने पुष्ट रहे छे ते पण शिकारीना गीतोमां आसक्त थवाथी मृत्यु पामे छे.
आ प्रमाणे ज्यारे सेवन करवामां आवेलां एकएक ईन्द्रियविषय अनेक दुःखोथी भरेलां छे तो
पछी समस्त रीते सेवन करवामां आवेलां पांचे ईन्द्रियोना विषयोनुं शुं कहेवुं? जेवी रीते नदीओना
प्रवाहथी खेंचायेला पदार्थ कोई ऊंडा खाडामां पडीने ए भंवरमां फर्या करे छे एवी ज रीते ईन्द्रियोना
विषयोथी खेंचायेलो आ जीव नरकरूपी ऊंडा खाडामां पडीने दुःखरूपी भंवरोमां फर्या करे छे अने दुःखी
थाय छे. विषयोथी ठगायेलो आ मुर्ख आत्मा पहेलां तो अधिक धननी ईच्छा करे छे अने ए धनने माटे
प्रयत्न करती वखते दुःखी थई अनेक कलेशने प्राप्त थाय छे ए समये कलुषित होवाथी ते महान दुःखी
थाय छे. जो कदाचित् मनगमती वस्तुओनी प्राप्ति न थई तो शोकने प्राप्त थाय छे अने जो मनगमती
वस्तु प्राप्त पण थई गई तो एनाथी संतुष्ट नहीं थतां जेथी फरीने पण ए दुःखने माटे दोडे छे.
आ प्रकारे आ जीव राग–द्वेष–मोहथी पोताना आत्माने खराब करी एवा कर्मोनो बंध करे छे
के जे घणी मुश्केलीथी छूटे छे. अने जे कर्म बंधना कारणे आ जीव परलोकमां अत्यन्त दुःखी थाय छे.
आ कर्म बंधना कारणे ज आ जीव नर्कादि दुर्गतिओमां दुःखमय स्थिति ने प्राप्त थाय छे अने त्यां
लांबा समय सुधी अतिशयनिंदनीक महान दुःख भोगवतो रहे छे. त्यां दुःखी थईने आ जीव फरी पण
विषयोनी ईच्छा करे छे. अने एने प्राप्त करवामां तीव्र लालसा राखतो थको अनेक खराब काम करे
छे. जेथी दुःख देवावाळा कर्मोनो फरी पण बंध करे छे. आ प्रकारे दुःखी थईने फरीने पण विषयोनी
ईच्छा करे छे. एने माटे खराब काम करे खोटा कर्मोनो बंध करे छे अने एना उदयथी दुःख भोगवे छे
आ प्रकारे चक्ररूपे परिभ्रमण करतो थको जीव अतिप्रयत्ने तरी शकाय एवा संसाररूपी अपार
समुद्रमां पडे छे.
एटला माटे आ समस्त अनर्थ परंपराने मिथ्या मान्यता तथा विषयोनी ईच्छाथी उत्पन्न
थयेली मानीने, प्रथम तो मिथ्यात्वरूपी महापाप छोडवा माटे जिनेन्द्र कथित निश्चय सम्यग्दर्शन पामवुं
ज जोईए अने अति दुःख देवावाळा विषयोमां प्रेमनो त्याग करी देवो जोईए. वळी पुरुषवेद, स्त्रीवेद
अने नपुंसकवेद ए त्रणे वेदोनो संताप अनुक्रमे घासनी अग्नि, अडाया छाणानी अग्नि अने ईंटोनी
अग्नि समान मानवामां आवे छे. त्यारे ए वेदोने धारण करवावाळो जीव सुखी केवी रीते होई शके?
एटला माटे हे! श्रेणिक तुं नक्की कर के अहमिन्द्र देवोनुं जे प्रवीचार (मैथुन) रहित दिव्य सुख
छे. ते अस्थायी विषयथी उत्पन्न सुखथी जुदी जात छे. आ उपर कहेला कथनथी सिद्धोनां ए सुखनुं
पण कथन थई जाय छे के जे विषयोथी रहित छे–प्रमाण रहित छे–अंत रहित छे. उपमा रहित छे. अने
केवळ आत्माथी ज उत्पन्न थाय छे. स्वर्गलोक अने मनुष्य लोक संबंधी त्रणे काळनुं एकठुं करेलुं सुख
छे, ते सिद्ध परमेष्ठीनां एक क्षणना