भादरवा : २४८८ : ११ :
सुखना उपायनी शरूआतमां पण
प्रज्ञा छीणीरूपी भेदज्ञान कारण छे
(श्री समयसार मोक्षअधिकार गाथा २९४ उपर
पूज्य गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन ता. ४–६–६२)
जीव बंध बन्ने, नियत निजनिज लक्षणे छेदाय छे, प्रज्ञाछीणी थकी छेदता बन्ने जुदा पडी जाय छे.
२९४
हवे शिष्य प्रश्न पूछे छे के:–
हे प्रभु! क््या साधनवडे आत्माने अने रागादि बंध भावने जुदा करी शकाय छे? एटले कर्मना
निमित्तमां जे औपाधिक भाव थाय छे तेने जुदा करवानुं साधन शुं?
श्री गुरु कहे छे के:–
आत्मा अने रागादिरूप बहिर्वृत्तिओने जुदा करवारूप कार्यमां कर्तापणानो अधिकार आत्मानो छे.
शरीरादि तो जड छे, ते तो जुदा छे, तेना आश्रये तो धर्म नथी पण दया, दान, पूजा, भक्ति आदि
शुभभावथी पण धर्म नथी. पुण्य जुदुं छे, धर्म तेनाथी जुदो छे.
आत्मा अने विकारने द्विधा करवारूप कार्यमां तो आत्मा कर्त्ता छे, निमित्त तरफनो पक्ष अने आश्रय
छोडया विना धर्म थाय नहि. जेने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करवुं छे तथा तेना फळरूपी मुक्ति प्राप्त
करवी छे तेणे प्रथमथी ज रागादिने जुदा करवारूप कार्य करवुं जोईए.
रागादिथी जुदा पडवाना खरेखर साधन संबंधी ऊंडी विचारणा करवामां आवतां आत्मा सिवाय
भिन्न करणनो अभाव छे. व्रतादि शुभराग छे ते आत्माने भिन्न करवामां साधन नथी. कोई ठेकाणे रागने
साधन कह्युं होय ते ते अभूतार्थनयथी कहेल छे.
साधननुं कथन बे प्रकारे छे पण साधन बे प्रकारनां नथी, जेम मोक्षमार्गनुं कथन बे प्रकारे छे पण
मोक्षमार्ग बे प्रकारे नथी.
कर्ता आत्माथी करण नाम साधन जुदुं होई शके नहि. पोताथी जुदा साधननो अभाव छे. राग
आत्माथी जुदो भाव छे, तीर्थंकर गोत्रनो भाव पण आत्माने साधन नथी.
कोई जीव भगवाननी पूजा, जात्रा, विगेरेने साधन कहे छे पण ते तो शुभ भाव छे तेथी ते खरूं
साधन नथी. राग पण साधन अने स्वभाव पण साधन एम अनेकान्त होय नहि. स्वभाव साधन अने
रागादि साधन नहि तेनुं नाम अनेकान्त छे.
पोताथी भिन्न साधननो अभाव होवाथी स्वसन्मुख ज्ञाननी दशा–भगवती प्रज्ञा ज छेदन
स्वभाववाळुं करण छे–साधन छे.
अज्ञानीओ रागने साधन करे छे पण जेनाथी छुटुं पडवुं छे तेने साधन केम कहेवाय? न ज कहेवाय.