Atmadharma magazine - Ank 227
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 25

background image
: १४ : आत्मधर्म : २२७
जात, तारी पवित्रतानी भात वाणीथी कदी शकाय नहि तेवी छे. एवो आत्मा रागादिवृत्तिमां
एकमेकपणुं करीने पड्यो छे ते संसार छे.
आत्मामां जेटलुं चैतन्य प्रसरतुं भासे छे तेटला रागादि प्रसरता भासता नथी. ज्यां ज्यां
आत्मा त्यां त्यां चैतन्यना प्रकाशनो पुंज छे, रागमां चैतन्यना प्रकाशनो तथा जागृत भावनो अंश
नथी. आत्मानी बधी दशामां रागादि प्रतिभासता नथी माटे रागनो आश्रय छोडी दे. चैतन्यना
आश्रयथी आत्मानी शुद्धतानो लाभ थई शके. वळी ज्ञान उपजे छे त्यां राग ऊपजे छे. तेनां क्षेत्र–काळ
एक छतां भाव बे छे, एक मलिन, बीजो निर्मळ. अने चैत्यचेतकभाव अर्थात् जाणवा योग्य ज्ञेयभाव
अने जाणनारो ज्ञायकभाव ए बेनी अति निकटताने लीधे ज रागादिकनुं चैतन्य साथे उपजवुं थाय छे
पण एक वस्तुपणाने लीधे नहि, राग–आस्रवपणे छे, बंधपणे छे, भगवान आत्मा तो अबंधपणे छे.
सूक्ष्म राग तेने कारणे ऊभो थाय, ज्ञायक ते ज काळे जाणवा ऊभो थाय. पण बेउ वस्तु भिन्न छे.
भगवान कुन्दकुन्दाचार्य कहे छे के–तारो स्वतंत्र स्वभाव रागनी रुचिवडे परमां गुंगळाई गयो छे,
मूंझाय गयो छे, रागादि बंध स्वरूपे छे, भगवान आत्मा अबंध स्वरूपे छे, ते बन्ने वस्तुपणे एक
नथी. साथे ऊपजवुं देखाय छे ते एक वस्तुपणाने लईने नहि. ते तो ज्ञेय ज्ञायकपणाने लीधे जणाय छे.
जेम दीपक वडे प्रकाशवामां आवता घटपटादि पदार्थो दीपना प्रकाशनी बहोळताने जाहेर करे छे; तेम
चैतन्य वस्तु धु्रव अनादि–अनंत छे. राग ते अज्ञान छे, तेमां जागृत भावनो अंश नथी. रागादि
आत्मावडे जणातां आत्माना चेतकपणाने प्रकाशे छे ते चैतन्यना समर्थ पणानी प्रसिद्ध करे छे, रागनी
प्रसिद्धि करता नथी. ज्ञाने ज्ञानने जाण्युं, ज्ञाने रागने जाण्यो, ज्ञान स्वपर प्रकाशक सामर्थ्यवाळुं तत्त्व
छे. आत्मा रागादिने जाणतां पोताना ज्ञायकपणानी जाहेरात करे छे.
राग अने चैतन्यने भिन्न करे ते वीतरागमार्ग छे. बंध अने अबंध स्वरूपने जाणनारुं ज्ञान ते
ज्ञाननी बहोळतानी जाहेरात करे छे. जेम के क्रोध थयो त्यारे ज्ञायके जाण्युं के आ क्रोध छे. तेमां
ज्ञायकनी प्रसिद्धि छे. क्रोध ज्ञेय छे तेने जाणवानी ताकात ज्ञाननी छे. एमां ज्ञातानी स्व–पर प्रकाशक
ताकातनी जाहेरात छे. ज्ञान पोते प्रसिद्धि पामतुं ज्ञायकने जाहेर करे छे.
ज्ञानीने व्यवहार आवे पण तेमां व्यवहारनी प्रसिद्धि नथी, पण ज्ञाननी प्रसिद्धि छे.
जे जीवे आ चैतन्यस्वरूप आत्मानी वात पण प्रसन्न चित्तथी सांभळी छे ते भव्य पुरुष
भावीमां थनारी मुक्तिनुं अवश्य भाजन थाय छे.
हुं एक जाणनार–देखनार प्रकाश स्वरूप छुं, तेमां जणातो राग ते प्रसिद्ध थतो नथी पण अबंध
परिणाम जाहेर थाय छे, अबंधभावने पामेलुं ज्ञान अबंध भावने जाहेर करे छे.
व्यवहार पर ज्ञेय छे, स्वज्ञेय तो (आत्मा) ज्ञानस्वरूप छे. आम आत्माने बंध परिणामथी
जुदो करतां ते अबंधपणाने पामे छे. अबंधपणुं ते सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्चारित्ररूप छे.
आम होवा छतां ते बन्नेनी अत्यंत निकटताने लीधे भेद संभावनारूप भेदज्ञाननो अभाव
होवाथी अज्ञानीने अनादिथी एकपणानो भ्रम छे, तेना कारणमां अहीं भेद संभावनारूप विवेकनो
अभाव कह्यो पण बीजुं कोई परने कारण कह्युं नथी, कर्मना जोरना कारणे भ्रम थाय छे एम कह्युं
नथी.
अज्ञानीने हित–अहित, स्व–परनो भेद नहि देखातो होवाथी शुभ के अशुभ भावमां
एकपणानो व्यामोह छे, ते व्यामोह परना कारणे नथी. भूल पोते फरी छे अने तेथी भांगे पण पोते,
ते व्यामोह (भ्रम) प्रज्ञा वडे ज अवश्य छेदाय छे.