भादरवा : २४८८ : १प :
सर्वज्ञ वीतराग कथित द्रव्योनां
कारण – कार्यभावोनुं निरूपण
(स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा–लोकानुप्रेक्षा अधिकार)
पुव्व परिणाम जुत्तं कारण भावेण वट्टदे दव्वं।
उत्तर परिणाम जुदं तं चिय कज्जं हवे णियमा।। २२२।।
अर्थ:– पूर्व परिणाम सहित द्रव्य छे ते कारणरूप छे. तथा उत्तर परिणाम सहित द्रव्य छे ते नियमथी
कार्यरूप छे.
भावार्थ:– प्रत्येक द्रव्यमां प्रतिसमय परिणमन थतुं रहे छे. तेने कोईनी राह जोवी पडती नथी.
पूर्वक्षणवर्ती द्रव्य पोते ज कारण थाय छे अने उत्तरक्षणवर्ती द्रव्य कार्य थाय छे. जेम लाकडुं सळगीने कोलसां
अने कोलसा सळगीने राख थाय छे तेमां लाकडुं ते व्ययरूप कारण छे अने कोलसा कार्य छे तथा कोलसा ते
व्ययरूप कारण छे अने राख कार्य छे, आप्तमीमांसामां भगवान समंत भद्राचार्ये कह्युं छे के ‘कारणनो
विनाश ज कार्यनो उत्पाद छे’ तेथी पहेली पर्याय नष्ट थतां ज बीजी पर्याय उत्पन्न थाय छे. माटे पूर्व पर्याय
सहितनुं द्रव्य उत्तर पर्याय सहितना द्रव्यनुं कारण छे अने उत्तर पर्याय सहितनुं द्रव्य कार्य छे. आ रीते
प्रत्येक द्रव्यमां कारण–कार्यभावनी परंपराओ समजवी. २२२.
हवे त्रणे काळना वस्तुना कारण–कार्यनो निश्चय करे छे.
कारण कज्ज विसेसा तिस्सु वि कालेसु होंति वत्थूणं।
पक्के कम्मि य समये पुव्वुत्तर भाव भासिज।। २२३।।
अर्थ:– वस्तुना पूर्व अने उत्तर (पहेलाना अने पछीना) परिणामने पामीने (पोताना परिणामना
कारणे) त्रणे काळे प्रत्येक समयमां दरेक वस्तुने कारण–कार्यभाव होय छे.
भावार्थ:– वर्तमान समयमां जे पर्याय छे ते पूर्व समय सहित वस्तुनुं कार्य छे, ए ज प्रमाणे सर्व
पर्याय जाणवी.
आ प्रमाणे त्रणे काळे प्रत्येक द्रव्यमां कारण–कार्यनी परंपरा चालु ज रहे छे. जे पर्याय पोतानी पूर्व
अवस्थानुं कार्य थाय छे ते पोतानी उत्तर पर्यायनुं कारण थाय छे. ए रीते प्रत्येक द्रव्य स्वयं ज पोतानुं
कारण अने स्वयं ज पोतानुं कार्य थाय छे.
हवे प्रत्येक वस्तु अनंत धर्मस्वरूप छे एम निर्णय करे छे. –
सन्ति अणंताणंता तीसु वि कालेसु सव्वदव्वाणि।
सव्वं पि अणेयंतं तत्तो भणिदं जिणिंदेहीं।। २२४।।
अर्थ:– सर्व द्रव्य छे ते त्रणे काळमां अनंतानंत छे, अनंत पर्यायो सहित छे. तेथी श्री जिनेन्द्रदेवे सर्व
वस्तुने अनेकान्त अर्थात् अनंत धर्मस्वरूप कही छे.
भावार्थ:– विश्व एटले छ जातिना छ द्रव्यो, तेमां जीव अनंत छे, पुद्गल अनंतानंत छे, धर्म द्रव्य,