Atmadharma magazine - Ank 227
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : २२७
टीका–जेम प्रजाना गुण दोषोने अने प्रजाने व्याप्य व्यापकभाव होवाने लीधे स्व–भावथी ज (प्रजाना
पोताना भावथी ज) ते गुणदोषोनी उत्पत्ति थतां–जो के ते गुण दोषोने अने राजाने व्याप्य व्यापकभावनो
अभाव छे तो पण ‘तेमनो उत्पादक राजा छे’ एवो उपचार करवामां आवे छे; तेवी रीते पुद्गल द्रव्यना
गुण दोषोने अने पुद्गल द्रव्यने व्याप्य व्यापकभाव होवाने लीधे स्व–भावथी ज (पुद्गलद्रव्यना पोताना
भावथी ज) ते गुणदोषोनी उत्पति थतां–जो के ते गुणदोषो अने जीवने व्याप्य व्यापकभावनो अभाव छे तो
पण–तेमनो उत्पादक जीव छे’ एवो उपचार करवामां आवे छे.
भावार्थ:– जगतमां कहेवाय छे के जेवो राजा तेवी प्रजा. आम कहीने प्रजाना गुणदोषनो उत्पन्न
करनार राजाने कहेवामां आवे छे. एवी ज रीते पुद्गल द्रव्यना गुणदोषनो उत्पन्न करनार जीवने कहेवामां
आवे छे. परमार्थद्रष्टिए जोतां ए सत्य नथी उपचार छे.
अहीं टीकामां निमित्तकर्ताना व्यवहारने उपचार कहेवामां आव्यो छे अने भावार्थमां कह्युं के–
परमार्थद्रष्टि ए जोतां ए सत्य नथी–उपचार छे उपरनी चार गाथाओमां निमित्तकर्ता ते सत्यद्रष्टिए
खरेखर कर्त्ता नथी पण ते खरेखर उपचार मात्र छे–एटले के पं. श्री टोडरमल्लजीए मोक्षमार्ग प्रकाशक पृ०
२पप–२प६ मां शास्त्रोना अर्थ करवानी जे विधि कही छे ते भगवान कुन्दकुन्दाचार्य अने श्री अमृतचंद्राचार्ये
कहेला सिद्धान्तने अनुसार ज छे.
शास्त्रोनां अर्थ करवानी पद्धति पा० २पप–२प६ मां नीचे प्रमाणे कही छे.
(शास्त्रोना अर्थ करवानी पद्धति)
व्यवहारनय स्वद्रव्य–परद्रव्यने तेना भावोने वा कारण–कार्यादिकने कोईना कोईमां मेळवी निरूपण
करे छे माटे एवा ज श्रद्धानथी मिथ्यात्व छे तेथी तेनो त्याग करवो. वळी निश्चयनय तेने ज यथावत्
निरूपण करे छे तथा कोईने कोईमां मेळवतो नथी तेथी एवा ज श्रद्धानथी सम्यक्त्व थाय छे माटे तेनुं
श्रद्धान करवुं.
प्रश्न:– जो एम छे तो जिनमार्गमां बंने नयोनुं ग्रहण करवुं कह्युं छे, तेनुं शुं कारण?
उत्तर:– जिनमार्गमां कोई ठेकाणे तो निश्चयनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने तो “सत्यार्थ
एम ज छे” एम जाणवुं, तथा कोई ठेकाणे व्यवहारनयनी मुख्यता सहित व्याख्यान छे तेने “एम नथी पण
निमित्तादिनी अपेक्षाए आ उपचार कर्यो छे”एम जाणवुं; अने ए प्रमाणे जाणवानुं नाम ज बंने नयोनुं
ग्रहण छे. पण बंने नयोना व्याख्यानने समान सत्यार्थ जाणी “आ प्रमाणे पण छे तथा आ प्रमाणे पण छे”
एवा भ्रमण प्रवर्तवाथी तो बंने नयो ग्रहण करवा कह्या नथी.
प्रश्न:– जो व्यवहारनय असत्यार्थ छे तो जिनमार्गमां तेनो उपदेश शा माटे आप्यो? एक
निश्चयनयनुं ज निरूपण करवुं हतुं?
उत्तर:– एवो ज तर्क श्री समयसारमां कर्यो छे त्यां आ उत्तर आप्यो छे के जेम कोई अनार्य–म्लेच्छने
म्लेच्छभाषा विना अर्थ ग्रहण कराववा कोई समर्थ नथी, तेम व्यवहार विना परमार्थनो उपदेश अशक््य छे
तेथी व्यवहारनो उपदेश छे. वळी ए ज सूत्रनी व्याख्यामां एम कह्युं छे के–ए प्रमाणे निश्चयने अंगीकार
कराववा माटे व्यवहार वडे उपदेश आपीए छीए पण व्यवहारनय छे ते अंगीकार करवा योग्य नथी.
आ प्रमाणे नक्की थयुं के निमित्तकर्ता ते खरो कर्ता कदी पण नथी पण तेने संयोगरूप के वियोगरूप
निमित्तपणे देखीने कर्ता कहेवो ते उपचारमात्रथी कहेवामां आवे छे एम समजवुं.
वळी अज्ञानी जीवने ज निमित्तकर्तापणानो उपचार लागु पडे छे, पण ज्ञानीने नहि; ज्ञानी तो
रागनो ज्ञाता होवाथी तेने निमित्तकर्तापणानो उपचार पण लागु पडतो नथी. समयसार गा० १०० नी
टीकामां आ स्पष्टपणे बताव्युं छे.
प्रवचनसार गा० १२१ मां पण आत्माने द्रव्यकर्मनो