आत्मधर्म : २२७ : १९ :
कर्ता कहेवो ते उपचारथी ज छे एम नीचेना शब्दोमां कह्युं छे.
संस्कृतमां “तथात्माचात्मपरिणाम कर्तृत्वाद्रव्यकर्म कर्ताप्युपचारात्” कह्युं छे.
निमित्तकर्तानुं कथन ‘उपचार मात्र’ मानवुं ते ज व्याजबी सुसंगत अने परमसत्य छे. एटले
अनेकान्त सिद्धांतना प्रथम बे भंगवडे सिद्ध थयुं के निमित्तकर्ता ते उपचार कथन छे, कोई द्रव्यना
परिणामरूप कार्यनुं कर्ता कदी पण बीजुं द्रव्य के तेनी पर्याय थई शके नहि. पण दरेक द्रव्य पोते ज पोताना
कार्यरूपे परिणमे छे अने अन्य नहि, ए खरो अनेकान्त सिद्धांत छे एम समजवुं.
प्रवचनसार गाथा १६२ मां ते ज सिद्धांत नीचेना शब्दोमां कहे छे:–“आत्माने परद्रव्यपणानो
अभाव छे अने तेथी तेनामां परद्रव्यना कर्तापणानो अभाव सिद्ध करे छे.
णाहं पोग्गलमईओ ण ते मया पोग्गला कया पिंड।
तम्हा हि ण देहाऽहं कत्ता वा तस्स देहस्स।।१६२।।
हुं पौद्दलिक नथी, पुद्गल में पिंडरूप कर्या नथी;
तेथी नथी हुं देह वा ते देहनो कर्ता नथी. १६२
अर्थ:– हुं पुद्गलमय नथी अने पुद्गलो में पिंडरूप कर्यां नथी; तेथी हुं देह नथी तेमज ते देहनो कर्ता
नथी.
टीका–प्रथम तो जे आ प्रकरणथी निर्धारित पुद्गलात्मक शरीर नामनुं परद्रव्य–के जेनी अंदर वाणी
अने मन ए बे समाई जाय छे–ते हुं नथी, कारण के अपुद्गलमय एवो हुं पुद्गलात्मक शरीरपणे होवामां
विरोध छे. वळी एवी ज रीते तेना (अर्थात् शरीरना) कारणद्वारा, कर्त्ताद्वारा, कर्त्ताना प्रयोजक (प्रेरक) द्वारा
के कर्त्ताना अनुमोदकद्वारा शरीरनो कर्ता हुं नथी कारण के अनेक परमाणु द्रव्योना एकपिंड पर्यायरूप
परिणामनो अकर्त्ता एवो हुं अने परमाणु द्रव्योना एक पिंडपर्यायरूप परिणामात्मक शरीरना कर्त्तापणे
होवामां सर्वथा विरोध छे.
टीकामां “सर्वथा विरोध” शब्द एम बतावे छे के–निमित्तकर्त्ताने सत्यद्रष्टिए कर्ता मानवामां सर्वथा
विरोध आवे छे.
निमित्तने खरेखर कर्त्ता मानवाथी तो अनेकान्त सिद्धांत साथे सर्वथा विरोध आवे छे, केमके
निमित्तने कर्ता मानवाथी सप्तभंगीमांथी प्रथमना बे भंग (स्वपणे होवुं–पर पणे न होवुं) खरेखर रहेता
नथी, एटले के सप्तभंगीनो एक पण भंग रहेतो नथी.
सुचना
जेमनी पासे चालु सालना आत्मधर्मना २१७ नंबरना कारतक मासना अंको होय तेमणे
संस्थाने मोकली आपवा विनंती छे. आवा सो नंगनी संस्थाने जरूर छे.
पुजारीनी जरूर छे.
सोनगढ दिगंबर जैन मंदिर माटे पूजा, अभिषेक विगेरेनुं काम जाणनार, निव्यर्सनी दिगंबर
जैन पूजारीनी जरूर छे. वेतन लायकात प्रमाणे अनुभव उंमर साथे अरजी तुरतमां करो
मेनेजर श्री दि. जैन स्वा. मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)